सर्चने का नजरिया बदला!


@@ सर्चना = सर्च करना @@

मुझे एक दशक पहले की याद है। उस जमाने में इण्टरनेट एक्प्लोरर खड़खड़िया था। पॉप-अप विण्डो पटापट खोलता था। एक बन्द करो तो दूसरी खुल जाती थी। इस ब्राउजर की कमजोरी का नफा विशेषत: पॉर्नो साइट्स उठाती थीं। और कोई ब्राउजर टक्कर में थे नहीं।

बम्बई गया था मैं। एक साहब के चेम्बर में यूंही चला गया। उन्हें कम्प्यूटर बन्द करने का समय नहीं मिला। जो साइट वे देख रहे थे, उसे उन्हों नें तड़ से बन्द किया तो पट्ट से दूसरी विण्डो खुल गयी। उनकी हड़बड़ाहट में तमाशा हो गया। एक बन्द करें तो दो खुल जायें! सब देहयष्टि दिखाती तस्वीरें। वे झेंपे और मैं भी।

बाद में इण्टरनेट ब्राउजर सुधर गये। पॉप-अप विण्डो ब्लॉक करने लगे।

Rediff Search

कल रिडिफ पर पढ़ा तो बड़ा सुकून मिला – पॉर्नोग्राफी अब सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली चीज नहीं रही इण्टरनेट पर (ऊपर रिडिफ की पेज का फोटो हाइपर लिंकित है)! एक दशक पहले इण्टरनेट पर बीस प्रतिशत सर्च पॉर्न की थी। अब वह घट कर दस प्रतिशत रह गयी है। अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स ज्यादा आकर्षित कर रही हैं सर्च ट्रेफिक।

मैने अपने ब्लॉग के की-वर्ड सर्च भी देखे हैं – कुछ महीना पहले बहुत से सर्च भाभी, सेक्स, काम वासना आदि शब्दों से थे। अब इन शब्दों से नहीं वरन पशु विविधता, जनसंख्या, नेटवर्किंग, ऋग्वेद, अफीम, थानेदार साहब, भगवान, परशुराम, तिरुवल्लुवर, एनीमल, मैथिलीशरण, बुद्ध, हल्दी, भारतीय रेलवे… आदि शब्दों से लोग ब्लॉग पर पंहुच रहे हैं।

नजरिया बदल रहा है और लोग बदल रहे हैं। अब के जवान लोग तब के जवान लोगों से ज्यादा संयत हैं, ज्यादा शरीफ, ज्यादा मैच्योर!    


कल प्रमेन्द्र प्रताप सिंह महाशक्ति और अरुण अरोड़ा पंगेबाज मिले। प्रमेन्द्र किसी कोण से विशालकाय और अरुण किसी कोण से खुन्दकिया-नकचढ़े नहीं थे। ये लोग ब्लॉग जगत में गलत आइकॉन लिये घूम रहे हैं। 

बड़े भले अच्छे और प्रिय लोग हैं ये।Love Struck 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

28 thoughts on “सर्चने का नजरिया बदला!

  1. ”नजरिया बदल रहा है और लोग बदल रहे हैं। अब के जवान लोग तब के जवान लोगों से ज्यादा संयत हैं, ज्यादा शरीफ, ज्यादा मैच्योर!” जवान होने की खुशी तो हो रही है पर इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा है-मैं जवान हूँ, संयत हूँ , शरीफ हूँ पर मैच्‍योर तो बुढ़ापे में ही हो पाऊँगा।

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  2. मैं नहीं मानता की हम बदल रहे हैं।पुरुष जाती का स्वभाव ही ऐसा है।एक जमाने में नौटंकी, मुजरे, वगैरह हुआ करते थे।फ़िर आया कैबैरे, ब्लू फ़िल्म, पोर्न पत्रिकाएं इत्यादिऔर आज का आकर्षण है पोर्न जालस्थल।कल का किसको पता?जब तक कोई चीज़ वर्जित है या दुर्लाभ है उसका आकर्षण रहेगा।मैं सोचता हूँ कि फ़र्क इतना है कि पिछले सदी में केवल सम्पन्न लोगों को यह मौका मिलता था लेकिन धीरे धीरे सबको यह मौका मिल रहा है पोर्न का अनुभव करने का।जिन देशों मे पोर्न अवैध नहीं है, (जैसे स्वीडन), वहाँ पोर्न का डिमांड भी कम है। कोई ध्यान भी नहीं देता।अब पोर्न आम बन गया है। इसलिए उसकी लोकप्रियता कम होने लगी है।विषय से हटकर:जालजगत पर सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली चीज़ चाहे पोर्न हो या न हो, मेरे घर में सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली चीज है, रसोई घर में और फ़्रिज में छुपे हुए चॉकलेट/मिठाइयाँ/नमकीन इत्यादि जो पत्नि मुझ से बड़ी चालाकी से छुपाना चाहती है लेकिन किसी तरह उसका पता लगा लेता हूँ।

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  3. “अब के जवान लोग तब के जवान लोगों से ज्यादा संयत हैं, ज्यादा शरीफ, ज्यादा मैच्योर!” साधारणतया ऐसी बातें सुनाने को कम ही मिलती हैं… वर्ना यही सुनाने को मिलता है…’कैसा ज़माना आ गया है… ये आज कल के लड़के-लड़कियां…’ सर्च में बदलाव का कारण शायद दुसरे माध्यमों से आसानी से उपलब्धता हो ! समाज में बदलाव है tab तो सच में अच्छा है.

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  4. बात तो सही है कि Key word की विभिन्नता बढ़ रही है, पोर्न के अलावा। Ghost Buster ने भी ठीक ही विश्लेषण किया है।मेरे एक ब्लॉग ये मेरा इंडिया! पर भी लोग क्या-क्या ढ़ूँढ़ते हुये आते हैं, बेचारे जरूर निराश होते होंगे!

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  5. sahi kahaa.. mere chitthe par to abhi bhi sabse jyada “bhabhi” ko search karte huye hi aate hain, dusara number “Blue Film” hai.. bechare aakar mujhe jaroor galiyan dete huye jate honge..magar ek IP hai Delhi ka.. jo pichhale 4-5 mahine se ek hi page par har din kam se kam 30-40 bar aata hai bhabhi ko search karte huye.. pata nahi kya dhundhana chahta hai vo..vaise Arun ji mujhe to bahut hi jindadil insaan lage the.. kaash thori jinda dili mujhe bhi de dete.. kabhi kabhi to lagta hai ki main javani me hi budha gaya hun aur vo mujhase itane bare hokar bhi javaan hain.. :)

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  6. सन १४४० में जर्मनी में जोहांस गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार किया. उस समय सम्पूर्ण विश्व में साक्षरता का प्रतिशत शून्य से बहुत ऊपर नहीं था. छापेखाने से छपकर आयी किताबों को खरीदने वाले न के बराबर थे. अगर प्रेस जिन्दा रह पायी तो इसके लिए दो बड़े कारण थे:(१) धार्मिक पुस्तकें, जैसे बाइबल, कुरान, रामायण (बाद में रामचरितमानस भी) आदि. लोग भले पढ़ना ना जानते हों, पर श्रद्धावश इन पुस्तकों को खरीदकर घर में जरूर रखते आए हैं.(२) पोर्नोग्राफिकल मटेरियल. चित्र देखने के लिए कोई पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं. और अगर किसी एक केटेगरी के चित्रों की बात करें तो पोर्नोग्राफी सबको आसानी से पछाड़ देगी.इन दोनों वजहों से प्रिंटिंग प्रेस बची रही, क्योंकि छपे हुए मटेरियल के खरीदार मिलते रहे. बाद में जब लोगों में साक्षरता का पर्याप्त प्रसार हुआ तो अन्य विषयों की भी पुस्तकें पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होने लगीं.यही बात इंटरनेट के साथ भी है. शुरू-शुरू में न तो पर्याप्त कंटेंट उपलब्ध था, ना ही ज्यादा लोग जुड़े थे. तो इंटरनेट के आन्दोलन को जिलाए रखने में सबसे बड़ा योगदान पोर्नोग्राफी का ही रहा. उसे भरपूर उपभोक्ता मिलते रहे. अब जबकि घर-घर में इंटरनेट की पहुँच होने लगी है और विविध रूपों में नेट हमारी व्यक्तिगत और सामाजिक आवश्यकताओं का केन्द्र बिन्दु बन चुका है, तो अब पोर्नोग्राफी बैकसीट पर जा रही है. ये तो होना ही है और ऐसा होते देखना बड़ा सुखद है. ——————————————————–और हम आपसे कब और कहाँ मिल सकते हैं? ई-मेज तो हमारी भी ग़लत ही बनती जा रही है. शायद थोड़ी सुधर जाए. :-)

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  7. हुम्म, हम कैसे माने जी, अपने ब्लॉग पर तो आज भी लोग “सेक्स”, “सेक्सी” सर्च करते हैं, पता नहीं क्यों!! ;) कसम से, सेक्स की तो एक ही पोस्ट छापे थे – इट्स ऑल अबाऊट सेक्स बेबी!!! :)बाकी समीर जी की बात हमेशा की भांति गौर करने वाली है। :)रहा सवाल मिलने मिलाने का, तो प्रमेन्द्र से अपना मिलना नहीं हुआ है अभी साक्षात तो इसलिए कुछ कहना बेइमानी होगी लेकिन पंगेबाज़ अरुण जी के मामले में आप धोखा नहीं खाए, बहुत पहुँची हुए बंदे हैं वो!! ;)

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  8. जो चीज मिल जाए उसका आकर्षण कम हो जाता है. यही कारण होगा की पोर्न पर कम सामाजिक साइटो पर ज्यादा लोग जाते है.ब्लॉग पढ़ छवियाँ बनाना गलत साबित होती रही है.

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