आतंक की आसुरिक ताकतों से जद्दोजहद अन्तत: तृतीय विश्वयुद्ध और नाभिकीय अस्त्रों के प्रयोग में परिणत हो सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने ऐसा कहा है।
यह केवल श्री कुप्पु. सी सुदर्शन के आकलन की बात नहीं है। आतंक के विषय को लेकर इस सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता। द गार्डियन में छपे सन २००५ के एक लेख में कहा गया था कि आतंक के रूप में तृतीय विश्व युद्ध तो प्रारम्भ हो ही चुका है। और यह किसी वैचारिक अवधारणा के आधार पर नहीं, सांख्यिकीय मॉडल के आधार पर कहा गया था लेख में।
भारत में अब बहुत से लोग आतंक का तनाव महसूस कर रहे हैं। रतन टाटा तो आतंक से लड़ने को “नॉन स्टेट इनीशियेटिव” की भी बात करते पाये गये हैं। यह एक संयत और सेंसिबल आदमी की हताशा दर्शाता हैं। मैने कहीं पढ़ा कि मुम्बई में मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों की मांग अचानक बढ़ गई है। समाज तनाव में आ गया है। यह दशा बहुत से देशों में है जो आतंक के शिकार हैं।
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मौतें, —बिजनेस टुडे के बुलेट प्वाइण्ट। |
ऐसे में करकरे जी की शहादत के बारे में अनावश्यक सवाल उछाल कर तनाव बढ़ाना उचित नहीं जान पड़ता। जरूरी है कि हिन्दू समाज को प्रोवोक न किया जाये। मुस्लिम समाज को सामुहिक रूप से आतंक से सहानुभूति रखने वाला चिन्हित न किया जाये। रोग (rogue – धूर्त) स्टेट के साथ सही कूटनीति से निपटा जाये और इसके लिये सरकार में लोग आस्था रखें।
मेरे बचपन से – जब अमेरिका-रूस के सम्बन्ध बहुत तनावपूर्ण थे, नाटो और वारसा सन्धि के खेमे थे, तब से, तृतीय विश्व युद्ध की बात होती आयी है। चार-पांच दशक हम उस सम्भावना से बचते आये हैं। आगे भी बचते रहें, यह सोचना है।
इसके लिये संयत नेतृत्व की आवश्यकता है। और उसके लिये, आप विश्वास करें, देश के दोनो प्रमुख दलों में संयत व्यक्ति नजर आते हैं। यह नियामत है। यह भी अच्छा रहा है कि पिछले विधान सभा चुनावों में जनता ने आतंक के मुद्दे पर हिस्टीरिकल (hysterical – उन्मादयुक्त) वोटिंग नहीं की है। तृतीय विश्व युद्ध जहां सम्भावना है, वहीं वह न हो, इसके लिये भी शक्तियां कार्यरत हैं।
भविष्य में मां माहेश्वरी अपने महालक्ष्मी और महासरस्वती रूप में कार्यरत रहें, महाकाली का रौद्र रूप न दिखायें, यही कामना है।

आपका लेख वर्तमान हालात मे सिर्फ़ भारतिय ही नही बल्कि मानव मात्र की चिन्ता को व्यक्त करता है ! सबकी अपनी अपनी सोच है पर मैं आपकी राय से सहमत हूं ! और शायद कहीं ना कहीं मन मे ये बात भी है कि अन्तोतगत्वा विनाश भी होना ही है और आज आपने सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद अगले विश्व्युद्ध की यही शुरुआत हो चुकी हो ?राम राम !
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असुरी ताकतों से सहानुभुति रखने वालो से कैसे निपटें. ये लोग भी कम जिम्मेदार नहीं. सभ्य समाज की बर्बर समाज पर जीत हो यही कामना है.
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आपकी चिंता जायज है।
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पांडे जी, आपकी राय से सहमत हूँ>
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हमारे ख़याल से इस्लामी कट्टरवाद पूरे विश्व के लिए ख़तरा है. भले ही हम सब युद्ध को टलने का प्रयास करें, इन मूर्खों को कौन समझाए.
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भविष्य में मां माहेश्वरी अपने महालक्ष्मी और महासरस्वती रूप में कार्यरत रहें, महाकाली का रौद्र रूप न दिखायें, यही कामना है। “सत्य और अनमोल वचन , सभी की यही प्रार्थना है “regards
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आमीन
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WAR is an inevitable end on a long road of failed diplomacy. – Lavanya
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पिछले विश्वयु्द्धों के पीछे महामंदियाँ कारण रही हैं। वर्तमान में यह सोच गैरवाजिब नहीं प्रतीत होता है। मगर खतरे को भांप लिया जाए तो उसे टाला भी जा सकता है।
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अभिनव जी को शुक्रिया ,दिनकर जी के जरिये सब कुछतो कह दिया !
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