वेब २.० (Web 2.0) और रेल महकमा


web2वेब २.० के प्रतीक

मैं अपने ब्लॉग को ले कर रेलवे सर्किल में जिज्ञासाहीनता से पहले कुछ निराश था, अब उदासीन हूं। लगता है रेलवे का जीव अभी भी कम्प्यूटर और इण्टरनेट के प्रयोग में एक पीढ़ी पहले चल रहा है। प्रबन्धन के स्तर पर तो वेब २.० (Web 2.0) की तकनीक का प्रयोग सोचा नहीं जाता।

वेब २.० तकनीक का अर्थ ब्लॉग, विकी, पॉडकास्ट, यू-ट्यूब/नेट आर्धारित स्लाइड शो छाप प्रयोग करना है। अभी तो रेलवे में जो कुछ हाइटेक हैं – वे पेन ड्राइव लिये घूमते हैं, जिसमें वाइरस का जखीरा होता है। कुछ लोगों को रेलवे की पीत-पत्रकारिता आर्धारित ब्लॉग पर जाते देखता हूं। वह चार पन्ने के लुगदी टेबलॉइड का विकल्प है। कुछ अन्य विस्पर की साइट पर पोस्टिंग ट्रान्सफर की कयास लगाने वाली खबरें लेने जाते हैं। पर वेब २.० का रचनात्मक उपयोग तो रेलवे में संस्थागत रूप में नजर नहीं आता।

पिछले हफ्ते उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबन्धक और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने कानपुर के मालगोदाम का निरीक्षण कर उसमें सुधार की सम्भावनाओं को तलाशने की कोशिश की थी। और मेरे लिये यह सुखद आश्चर्य था कि महाप्रबन्धक मालगोदाम क्षेत्र का गूगल अर्थ से व्यू का प्रिण्ट-आउट ले कर सडक-मार्ग बेहतर करने की सम्भावनायें तलाश रहे थे।  कार्य योजना बनाने में यह प्रयोग बहुत प्रभावी रहा।

ब्लॉग तकनीक का आंशिक प्रयोग मुझे इण्डियन रेलवे ट्रेफिक सर्विस (IRTS) एसोसियेशन की साइट पर नजर आया (यह साइट बहुधा सर्वर की समस्या से ग्रस्त दिखती है)। आई.आर.टी.एस. के प्रधान के रूप में हैं रेलवे बोर्ड के सदस्य यातायात (Member Traffic – MT)। वे MT’s DESK नाम से एक कॉलम लिखते हैं। इसे ब्लॉग पोस्ट के समतुल्य नहीं माना जा सकता – चूंकि इसमें टिप्पणी के रूप में फीडबैक का ऑप्शन नहीं है। आप उनकी यातायात अधिकारी के असमंजस@ (Dilemmas of a Traffic Officer) नामक पोस्ट देखने का कष्ट करें। यह शुष्क सरकारी सम्बोधन नहीं है, इसलिये यह काम का सम्प्रेषण है। । काश यह इण्टरेक्टिव होता! वेब २.० तकनीक की डिमाण्ड होती है कि नेट पर कण्टेण्ट इण्टरेक्टिव तरीके से विकसित हो।

बहुत से शीर्षस्थ लोग अपने संस्थान में नियमित खुले पत्र लिखते हैं। उसकी बजाय वेब २.० तकनीकों का प्रयोग बहुत कारगर रहेगा। इसी बहाने अधिकारी-कर्मचारी वेब तकनीक प्रयोग में हाथ आजमायेंगे और ज्यादा कार्यकुशल बनेंगे। इन तकनीकों के सामुहिक प्रयोग से व्यक्ति की कार्यकुशलता ३-४ गुणा तो बढ़ ही सकती है। मुझे तो ब्लॉगजगत की सिनर्जी की याद आती है। अगर लूज बॉण्ड से जुड़े ब्लॉगर्स रचनात्मक सिनर्जी दिखा सकते हैं तो एक संस्थान में एक ध्येय से जुड़े लोग तो चमत्कार कर सकते हैं।

लोग मिलते नहीं, आदान-प्रदान नहीं करते। वेब २.० तकनीक के प्रयोग से एक नया माहौल बन सकता है। कई बॉस यह सोच कर दुबले हो सकते हैं कि इस इण्टरेक्टिविटी से उनके नीचे के लोग ज्यादा लिबर्टी ले लेंगे और उनकी “खुर्राट” वाली इमेज भंजित हो जायेगी। पर क्रियेटिव – प्रोडक्टिविटी (रचनात्मक उत्पादकता) के लिये कुछ तो भंजित करना होगा ही।


 

श्रीयुत श्री प्रकाश, सदस्य यातायात।

@ श्रीयुत श्री प्रकाश, रेलवे बोर्ड के सदस्य-यातायात की पोस्ट के अंश का अविकल अनुवाद:

हम आई.आर.टी.एस. ज्वाइन करते हैं — बहुत सी आशायें और अपेक्षाओं के साथ कि यह “दमदार” और “एलीट” सर्विस है। यह सोच पहले पहल ही ध्वस्त होती है; जब हम नहीं पाते एक बड़ा बंगला; जिसके साथ बड़ा लॉन, स्विमिंग पूल, टेनिस कोर्ट और शोफर चालित गाड़ी और जवाबदेही बिना नौकरी — जो मिलता है वह इसका उल्टा होता है – कंट्रोल या यार्ड में ट्रेन परिचालन की दिन भर की घिसाई, कमरतोड़ फुटप्लेट निरीक्षण, बहुधा बिना खाना खाये रहना (लदान के और इण्टरचेंज के लक्ष्य जो नित्य चेज करने होते हैं!) और घर लौटने पर इस बात पर लताड़ कि न मूवी दिखाने ले जा पा रहे हैं न बाहर डिनर पर जा पा रहे हैं। — हम सब ने यह विभिन्न मात्रा में देखा है और हम सब आई.आर.टी.एस. के फण्डामेण्टल्स पर विश्वास खोते प्रतीत होते हैं — आपको यह कठिन और कन्फ्यूजिंग लग सकता है, पर जैसे जैसे अपने काम में लगना और आत्मविकास करना सीखने लगते हैं, स्थिति सामान्य होने लगती है और समझ में आने लगती है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

29 thoughts on “वेब २.० (Web 2.0) और रेल महकमा

  1. शायद यह कहना कि रेलवे में लोग इन्टरनेट के प्रति उदासीन हैं पूर्ण रूप से सत्य न हो पर उत्साह भी देखने को नही मिलता है. इन्टरनेट का प्रयोग ब्लॉग्गिंग के लिए नहीं किया जा रहा है. आपकी साईट मेरे गूगल रीडर का नियमित हिस्सा है और मैं उसे पढ़कर लाभान्वित भी होता रहा हूँ. आई आर टी यस् साईट में डिस्कशन फॉरम में कमेन्ट पोस्ट करने की व्यवस्था है. जिन लोंगो को अपने विण्डो मोबाइल में हिन्दी का सपोर्ट चाहिए वो Eyron.in वो पर जा कर सॉफ्टवेर डाउनलोड कर सकते हैं. प्रवीण पाण्डेय

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  2. रचनात्मक उत्पादकता के लिये कुछ तो भंजित करना होगा ही। नवनिर्माण के लिए विध्वंस अनिवार्य है. तोड़ दें.

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  3. फ़ालो करें और नयी सरकारी नौकरियों की जानकारी प्राप्त करें:सरकारी नौकरियाँ

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  4. रेलों का इस्तेमाल अब रेलवे के फ़ायदे के लिये नही नेताओ के फ़ायदे के लिये हो रहा है।इसके कर्मचारियो-अधिकारियो को दुसरी सेवाओ के समकक्ष ले जाने का खयाल तो नेताओं को तब आयेगा जब उन्हे अपना फ़ायदा देखने से फ़ुर्सत मिलेगी।वैसे ये खुर्राट इमेज वाला मामला बहुत सही है,ये धीरे-धीरे बनती है लेकिन बनने के बाद ना टूटती है और ना कोई चाह कर भी इसे तोड़ पाता है।

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  5. १-अन्य सरकारी सेवाओ की तुलना में रेल अंतर्जाल युग में जन सेवार्थ काफी पहले ही आ चुकी है !२.हम तो अब भी यही जानते हैं कि रेल की सेवा बहुत मौज मस्ती वाली होती है -वहां भी क्या काम ज्यादा होता गया है ?

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  6. इंटरनेट अभी भी आम उपयोग की वस्तु नहीं है। जब तक इस का विस्तार आम पढ़े लिखे लोगों तक नहीं पहुँचता। ये समस्याएँ आती रहेंगी। लेकिन अब लोग इस तरफ रुख करने लगे हैं। यह भविष्य को विश्वस्त करता है।

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  7. “क्रियेटिव – प्रोडक्टिविटी (रचनात्मक उत्पादकता) के लिये कुछ तो भंजित करना होगा ही।” बात ही नहीं करनी कुछ भी इस बात के बाद.

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  8. रेलवे के बारे मे कहा जाता है जब से वाकी टाकी मिली तब से ज्यादा दुर्घटना होती है कहाँ तक सच है पता नही लेकिन रेलवे जैसे विभाग के कर्मचारी नई टेकनोलजी से परहेज करते है .

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  9. इस इण्टरेक्टिविटी से उनके नीचे के लोग ज्यादा लिबर्टी ले लेंगे और उनकी “खुर्राट” वाली इमेज भंजित हो जायेगी।–शायद यही सबसे बड़ा कारण होगा. बहुत विचारणीय लेख है. काश, विभाग के कुछ अन्य लोग भी आपकी तरह इस दिशा में सोचें.

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  10. चलिए, कम से कम हमारे संयंत्र के इंट्रानेट पर ऐसा कुछ नहीं है। इंटरएक्शन भरपूर है, प्रबंध निदेशक तक के साथ सबका संवाद है, अपने सुझाव, अपना ज्ञान, अपनी बातें, सबके कार्य समूह, सभी आंतरिक प्रकाशन, सभी प्रतियोगितायें, सबके जनमदिन, मिनट दर मिनट अपडेट होते आंकड़े, सब खुली किताब जैसा मौज़ूद है।और होना भी चाहिए।यही कारण है कि हमारा कोई भी बॉस दुबला नहीं हुआ :-)

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