मेरा वोटर कार्ड घर में आलमारी में बन्द था और चाभी पत्नीजी ले कर बोकारो गई थीं। लिहाजा मैने (अपने आलस्य को तार्किक रूप देते हुये) तय किया कि वोट डालने नहीं जाना है। यह तेईस अप्रेल की बात है।

मेरे ऑब्जर्वेशन:
१. पार्टियों के एजेण्ट अगर पर्चियां न बना कर दें तो चुनाव बन्दोबस्त लोगों का नाम ढूंढ कर बूथ पर भेजने के लिये अपर्याप्त है। मेरे जैसे आठ-दस कस्टमर भी पूरी प्रक्रिया में देरी करा सकते हैं।
२. बूथ-लोकेटर का फंक्शन कम्प्यूटराइज होना चाहिये।
३. एक अल्फाबेटिकल लिस्ट, जो लोकेटर के पास उपलब्ध है, वह बूथ पर भी होनी चाहिये।
४. सम्भव हो तो यह सब नेट पर उपलब्ध होना चाहिये। लोग खुद ही अपना बूथ ऑनलाइन तलाश सकें और पार्टी एजेण्टों का रोल समाप्त हो सके।
पर शाम को सवा चार बजे अचानक मन बना वोट डालने का। मैं दफ्तर का आइडेण्टिटी कार्ड जेब में डाल कर मतदान केन्द्र पर पंहुचा और बूथ-लोकेटर से पूछा कि हमें किस बूथ पर जाना है? वोटर कार्ड न होने की दशा में लोकेटर महोदय को हमारा नाम लिस्ट में तलाशना था। उन्होंने मुझसे कहा कि बाहर बहुत से पार्टी वाले हैं, उनसे पर्ची बनवा लाइये। मैने अपनी बात रखी कि मैं किसी दल वाले के पास क्यों जाऊं? मेरे पास आइडेण्टिटी कार्ड है और इण्डिपेण्डेण्ट विचार रखता हूँ। अत: आप ही लोकेट करें।
लोकेटर महोदय ने ११ बूथ की लिस्टों में मेरा नाम छांटने का असफल काम किया। फिर उनसे लिस्टें ले कर मैने अपना नाम छांटा। तब तक पांच बजने में कुछ ही मिनट रह गये थे। लोकेटर जी ने मुझे झट से बूथ पर जाने को कहा। बूथ में घुसने वाला मैं अन्तिम आदमी था। उसके बाद पांच बजे के अनुसार दरवाजा बन्द कर दिया गया था।
असली ड्रामा बूथ में हुआ। कर्मचारी ने मुझसे पर्ची मांगी। मैने कहा – “लोकेटर जी ने मेरा कोई नम्बर लिख कर तो दिया नहीं। यह जरूर है कि इसी बूथ पर है मेरा नाम। अब आप मुझे वोट डालने दें।”
“हम कहां छांटेंगे आपका नाम। आप वापस जा कर पता कर आयें।”
“वापस तो नहीं जाऊंगा। तब आप कहेंगे कि पांच बजे के बाद आया हूं और वोट देने नहीं देंगे। आप तो अपने पास की लिस्ट में देखें और मुझे वोट देने दें।”
उन कर्मियों ने मुझ नौकरशाह पर सरकारी टरकाऊलॉजी चलाने की पूरी कोशिश की। पर मैने तो कहा कि समय सीमा में वोट डालने आया हूं। खुद ही पता किया है अपना बूथ। लिहाजा वोट डाल कर ही जाऊंगा। बूथ पर एल्फाबेटिकल लिस्ट नहीं थी। ढेरों पन्नों में मेरे नाम की खुजाई शुरू हुई। बाकी कर्मी सामान सील कर जाने की जल्दी में थे। एक ने सुझाव दिया कि किसी वोट न डालने वाले के नाम से इनको वोट देने दो। मैने मना कर दिया – वोट तो अपना ही देना है – फर्जी नहीं। इस बीच एक कॉस्टेबल हडकाने आया मुझे। उसे मैने कहा कि तुम अलग रहो, यह कायदे की बात है और तुम्हारे टांग अड़ाने का काम नहीं है।
खैर, जब मैं नाम ढूंढने के बाद (यहां भी नाम अन्तत: मैने तलाशा) वोट डाल कर निकला तो पांच बज कर इकत्तीस मिनट हो रहे थे। हड़बड़ी में मेरी उंगली पर स्याही का निशान लगाना भी भूल गये थे बूथ कर्मी। पर यह संतोषप्रद था कि उन्होंने मेरा वोटर-अधिकार ट्रेम्पल (trample – पददलित) नहीं किया।
वो मन ही मन सोच रहे होंगे …कि ये भला आदमी कहाँ से आ गया …
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बहादुरी से कर्तव्य का पालन करने पर बधाई! शायद आप का ही एक वोट सफल और स्थिर सरकार बनवा दे।
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बहुत बधाई आपको अंतत: वोट डाल आने के लिये. वैसे इन्ही परेशानियों के चलते भी कई लोग वोट डालने नही जाते.रामराम.
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मतदान के लिये “बधाई”! ब्लाग पर तो आपने लिख लिया, अब कहीं और भी लिखा जाये। मतदान प्रक्रिया के बारे में अपने सुझाये हुये विचार कृपया चुनाव आयोग को चिट्ठी डालकर अवगत करा दें। हस्ताक्षर अभियान चाहिये हों तो हम हाजिर हैं।
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आप जैसी परिस्थिति में फँसने के बाद ज्यादातर मेरे जैसे वोटर तो बिना वोट डाले ही वापिस हो लेते।आप ने सच में बहुत हिम्मत दिखाई।आप एक जागरूक और बहादुर वोटर हैं।बधाई।
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अंत भला तो सब भला !
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सही लिखा है आपने। आपकी दिक्कत जायज है।वोट डालने में इन दिक्कतों की वजह से ही तो वोट प्रतिशत कम है। पहले .तो स्थिति यह थी कि तमाम अनपढ़, पिछड़ों को वोट ही नहीं डालने दिया जाता था।
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बधाई कि आप वोट डालने में सक्सेस्फुल रहे। क्यों न हो- अफसरी रोब कब काम आएगा – आखीरउस नौकरशाह पर सरकारी टरकाऊलॉजी चलाने की सैकोलोजी से आप भलीभांति परिचित जो हैं 🙂
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जागरुक वोटर तो मै उसे कहूँगा जो मतदान केंद्र में वोटर लिस्ट में अंकित सरल क्रमांक खुद पहले से खोज कर ले जाये वैसे मैंने भी अनुभव किया है कि मतदान अधिकारी वोटर लिस्ट में किसी का नाम खोजते नहीं है .और नाम न मिलने कि स्थिति में वोटर को टरकाने का भरसक प्रयास करते है . निर्वाचन आयोग की बेव साइड में अपनी आई. डी. नंबर डालकर मतदाता सूची में से अपना नाम और सरल क्रमांक खोजा जा सकता है . मताधिकार का प्रयोग करने के लिए आपको धन्यवाद और मसक्कत कर आपने आपने वोटिंग पावर का प्रयोग किया . सर जी आपने वोट दर्शन किया और मै चुनाव कार्य में लिप्त होकर लोटा दर्शन करने के लिए तरस गया .जिस गाँव में डियूटी लगी थी वहां पानी भी मुश्किल से नसीब हो रहा था .
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रायपुर में अप्रैल को मैं वोट डालने गया। एक घंटे से भी अधिक देर तक लाइन में खड़ा रहा। बूथ में जाने के बाद पता चला कि मेरा नाम डिलीट कर दिया गया है। कारण पूछने पर बताया गया कि मैं रायपुर में नहीं रहता। क्या करें, बिना वोट डाले लौट आना पड़ा।
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