यह कटिंग मैने बीबीसी हिन्दी की साइट से उतारी है। मुझे यह नहीं मालुम कि नेपाल में क्या होने जा रहा है। पर यह अच्छा लगा कि सेना में माओवादी दखलंदाजी को नेपाल की जनता ने सही नहीं माना।
दहाल ने कहा; "मैंने (नेपाल के) प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। राष्ट्रपति का क़दम असंवैधानिक और लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है। देश का अंतरिम संविधान राष्ट्रपति को एक समांतर शक्ति के रूप में काम करने की अनुमति नहीं देता।" अगर राष्ट्रपति असंवैधानिक हैं तो दहाल उन्हे हटाने का उपक्रम करते। इस्तीफा का मतलब तो राष्ट्र उनके साथ नहीं है।
भारत में भी अनेक प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवारों की बात है। साम्यवादी प्रधानमन्त्री भी उसमें चर्चा में हैं। अगर वैसा हुआ तो भारतीय सेना में भी साम्यवादी दखल सम्भव है? कल्पना करना बहुत प्रिय नहीं लगता।
सहमत हूं सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ से
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@दिनेशराय द्विवेदी जी राय दे रहे हैं “नेपाल में परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है, वर्तमान घटना क्रम उसी का एक अंग है। वहाँ विभिन्न शक्तियाँ संघर्षरत हैं। इन घटनाओं से क्या निकल कर आएगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है। माओवादी लड़ाकों को सेना में स्थान देने के प्रश्न पर वर्तमान घटनाओं को जन्म दिया है। पर उन्हें क्या बाहर रखा जा सकता है? इन्हें बाहर रख कर क्या देश में सत्ता के दो केंद्र न हो जाएंगे? या फिर इस का विकल्प क्या है?”और रवीन्द्र प्रभात जी असल इशारा समझे बिना उनकी बात का समर्थन कर रहे हैः@“दिनेश राय द्विवेदी जी ने इस दिशा में बड़ी ही सटीक बातें कही है,कि “नेपाल में परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है, वर्तमान घटना क्रम उसी का एक अंग है। वहाँ विभिन्न शक्तियाँ संघर्षरत हैं। इन घटनाओं से क्या निकल कर आएगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है।”किन्तु जहां तक सेना में राजनीतिक दखल का प्रश्न है तो यह किसी भी राष्ट्र के लिए शुभ नहीं माना जा सकता !नेपाल वाकई गंभिर स्थिति में है.. !” द्विवेदी जी की टिप्पड़ी का यह भाग गौर करनें लायक है “माओवादी लड़ाकों को सेना में स्थान देने के प्रश्न पर वर्तमान घटनाओं को जन्म दिया है। पर उन्हें क्या बाहर रखा जा सकता है? इन्हें बाहर रख कर क्या देश में सत्ता के दो केंद्र न हो जाएंगे?”द्विवेदी जी जो एक खतरनाक बात कह रहे है,से एक प्रश्न है भारत की आजादी की लड़ाई में क्रान्तिकारियों को और विशेषकर सुभाष की इण्डियन नेशनल आर्मी को सेना में स्थान देंना चाहिये था? क्या एक देशज राष्ट्र्वादी भावना रखनें वाले सिपाही और एक अन्तर्राष्ट्रीय गठजोड़ रखनेंवाली माओवादी भावना के सिपाही आपस में टकरायेंगे नहीं? विशेषकर तब जब कि १९४९ में बनीं नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी आज १-१/२ दर्जन धड़ों में बँटी हुई है और मूल पार्टी सोवियतसंघ से प्रेरणा लेती थी जब कि मोहन बैद्य धडे के पुष्पकमल दहल प्रचण्ड चीन के इशारे पर काम कर रहे हैं। क्या द्विवेदी जी को यह मालूम है कि प्रचण्ड नें अपना एक अलग दर्शन प्रचारित किया है जिसे वह “मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद-प्रचण्ड पाथ” कहते हैं? क्या उन्हें मालूम है कि इस बार के चुनाव मे केरल मे चे ग्वेरा के पोस्टर लगे हैं? क्या कम्यूनिस्टों को भारत के किसी भी महापुरुष में आस्था है जिसका वो सम्मान करते है?
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भारत में तो सेना में राजनीतिक दखल कब का होगया ! क्या सचमुच आपको पता नहीं ? सेना में हिन्दू मुसलमानों की गिनती कराना और क्या था ?
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