मैने उसका नाम नहीं पूछा। “हटु रे” वाली पोस्ट पर लोग लजा रहे थे टिपेरते, पर कृष्ण मोहन ने उस पात्र को सही चीन्हा – रागदरबारी का मंगलदास उर्फ सनीचरा। नया दिया नाम – सतीश पंचम जी का; “जियालाल” भी उत्तमोत्तम है!
मंगल महत्वपूर्ण चरित्र है रागदरबारी का। आप उस पुस्तक की सनिचरा के बगैर कल्पना नहीं कर सकते। और मेरी “हटु रे” वाली पोस्ट के इस पात्र को मेरे व्यक्तित्व के कृष्ण पक्ष का फसाड मानने वाले मानते रहें – उसकी क्या केयर करूं! केयर करते रहते तो बने रहते घुन्ना!
खैर, “मंगलदास” पुन: मिल गया। इस बार अपने स्थान पर बैठे नहीं; कछार में सम्भवत: निपटान के बाद लौट रहा था। एक काले रंग का कुता दौड़ कर उसके पास गया। मंगल दास वहीं बैठ गया। कुत्ता उसके पास लेट उससे खेलने लगा। मंगल ने कुत्ते का नाम बताया – तिलंगी!
बड़े इत्मीनान से मंगल ने वहीं बैठे बैठे बीड़ी सुलगाई। तिलंगी खेलता रहा उससे तो वह बोला – एक दाईं एकरे नकिया में छुआइ देहे रहे बीड़ी (एक बार तिलंगी की नाक में छुआ दी थी मैने बीड़ी)!
मंगल से लोग ज्यादा बातचीत नहीं करते। घाट पर लोग तख्ते पर बैठते हैं या सीढ़ियों पर। वह अलग थलग जमीन पर बैठा मिलता है। मैने पाया है कि लोग बहुधा उसके कहे का जवाब नहीं देते। वह खंखारता, दतुअन करता या बीड़ी पीता पाया जाता है। पर तिलंगी और उसकी प्रकार के अन्य कुत्ते और बकरियां बहुत हिले मिले हैं उससे। सम्भवत सभी के नाम रखे हों उसने।
मैने उससे बात की तो वह बड़ा असहज लग रहा था – बार बार पूछ रहा था कि फोटो क्यों खींच रहे हैं? (फोटो काहे घईंचत हयें; लई जाई क ओथा में देब्यअ का – फोटो क्यों खींच रहे हैं, ले जा कर उसमें – अखबार में – देंगे क्या?) शायद इससे भी असहज था कि मैं उससे बात कर रहा हूं।
फिर कभी “मंगल” का नाम भी पूछूंगा। अभी आप छोटा सा वीडियो देखें। इसमें मंगल की नैसर्गिक भाषा का नमूना भी है!
अगले रोज का अपडेट:
पण्डाजी ने “मंगल” के बारे में बताया। नाम है जवहिर लाल। यहां घर दुआर, परिजन नहीं हैं। छोटा मोटा काम कर गुजारा करता है। यहीं रहता है। मूलत: मछलीशहर (जौनपुर के पास) का रहने वाला है।
जवाहिर लाल उस समय पास में बैठा मुखारी कर रहा था। उससे पूछा तिलंगी कहां है। बताया – “खेलत होये सार (खेलता होगा साला)”। और भी कुत्तों के नाम रखे हैं – किसी का नेकुर किसी का कजरी। बकरी का नाम नहीं रखा।
अगले चार पांच दिन यात्रा पर रहूंगा। लिहाजा गंगा जी और उनके परिवेश से मुक्ति मिली रहेगी आपको! और मुझे खेद है कि मेरे टिप्पणी मॉडरेशन मेँ भी देरी सम्भव है।
नहीं मालूम बाकि लोग ऐसे व्यक्तियों कि उपेक्षा क्यों करते हैं.. मैं कई बार ऐसे लोगों से बात करने कि कोशिश करता हूँ, कई बार बात होती है कई बार नहीं..
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मनोज जी, सामान्यत: लोगों में आपकी भावनायें समझने की क्षमता होती है। कई बार बातचीत नहीं होती पर बॉडी लेंगवेज बता देती है उनका कथ्य।
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यद्यपि लोग जवहिर जी की बात का उत्तर देना उचित नहीं समझते हैं परन्तु जवहिर जी का संवाद ज्ञान की पराकष्ठा में डूबा है । जो अपने में जीना सीख गया हो और जानवर भी जिसके भाव समझते हों उसके लिये ध्यान देने न देने का क्या मतलब । भले शब्द गूढ़ न हों पर बातें गूढ़ कहेंगे जवहिर जी ।
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