नाव


Ganga4 July 09 मछली पकड़ने वाले रहे होंगे। एक नाव पर बैठा था। दूसरा जमीन पर चलता नायलोन की डोरी से नाव खींच रहा था। बहुत महीन सी डोरी से बंधी नाव गंगा की धारा के विपरीत चलती चली आ रही थी। मैं अपनी चेतना के मूल में सम्मोहित महसूस कर रहा था।

एक महीन सी डोर! कभी कभी तो यूं लगे, मानो है नहीं। वह नाव को नेह्वीगेट कर रही थी। हममें भी नाव है जो न जाने कौन सी नायलोन की डोरी से बंधी बढ़ती जा रही है।

एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह  हो!

गंगा किनारे के १०-१५ मिनट आपको ठोस दार्शनिक/आध्यात्मिक अनुभव देते हैं। अभेद्य!Gyan near Ganges

आसमान में उड़ते पंक्तिबद्ध पक्षियों का झुण्ड एक लहरदार लकीर बनाता है और आपके मन में भी पैदा करता है लहरें। एक लगभग नब्बे अंश के कोण पर कमर झुका कर गंगा के घाट पर आती वृद्धा; मृत्यु, जीवन और जरा के शाश्वत प्रश्न ऐसे खड़बड़ाती है मन में; कि बरबस बुद्ध याद हो आयें!

गंगा किनारे एक मड़ई हो। एक छोटी सी नाव और यह लिखने-फोटो खींचने का ताम-झाम। अपनी बाकी जरूरतें समेट हम बन जायें आत्मन्येवात्मनातुष्ट:! जब यह वातावरण हो तो न बनने का क्वैश्चनवइ नहीं उठता।

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यह पोस्ट ड्राफ्ट में जमाने से रखी थी। पत्नीजी कहने लगीं थीं – क्या गंगा-गंगा रटते पोस्ट लिखते हो|

अब यह ७००वीं पोस्ट के रूप में पब्लिश कर रहा हूं। देखता हूं, आप गंगाजी विषयक टिप्पणी करते हैं या ७००वीं पोस्ट की बधाई ठेल अगले ब्लॉग पर चलते हैं!

और यह है गंगा किनारे गोधूलि वेला – कल की!

Ganga Twilight  


“हेलो नजीबाबाद” फोन-इन कार्यक्रम : हाय गजब!
इस फोन इन रेडियो कार्यक्रमवाले दक्षिणी सज्जन कोई प्रेम कुमार हैं। मुरादाबाद-सुल्तानपुर-एटा वाले यूपोरियन लोगों को फिल्मी गाने सुनवा रहे थे। गानो में मेरी खास दिलचस्पी नहीं थी। पर इस सज्जन का महमूद स्टाइल में हिन्दी बोलना और बात बात पर “हाय गजब” “ओय गजब” बोल कर श्रोताओं को बांधना बहुत पसन्द आया।

और एक हम हैं कि “आत्मन्येवात्मनातुष्ट:” छाप प्रस्थानत्रयी से श्लोकांश ठेल रहे हैं, इम्प्रेस करने को! लगता नहीं कि हमें भी हाय गजब छाप जुमला पकड़ना चाहिये अपना ब्लॉग हिट करने को! क्या ख्याल है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

43 thoughts on “नाव

  1. एक महीन डोर से बंधी नाव को खींचते मछुआरे को आर्किमिडीज़ प्रिंसिपल की पूरी जानकारी लगती है. गंगा तट के चित्र हमेशा की तरह मनमोहक हैं पर आप हमेशा कम रिज़ोल्यूशन में ही लगाते हैं. कभी बड़ा चित्र भी लगाइये.गंगा तट पर कुटी/मढ़ैया का आपका विचार फ़िर से अरविंद मिश्र जी को डरा देगा. :-)सात सौ का आंकड़ा छूने पर बधाई. अब बस शेन वार्न के ७०८ और फ़िर मुथैया मुरलीधरन के ७३५ का रिकॉर्ड आगे है तोड़ने के लिये. :-)

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  2. सच है ..जाने कौन अदृश्य डोर है जो उस पार से कठपुतली बना कर नचाती रही है ..गहरा अध्यात्मिक भाव…गंगा के सूर्यास्त की तस्वीर मनमोहक …और अब आपको 700 वीं पोस्ट के लिए बहुत बधाई…और शुभकामनायें आने वाली कई हजार पोस्ट के लिए ..!!

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  3. टी शर्ट में चचा यंग लग रहे हैं।@ "गंगा किनारे एक मड़ई हो। एक छोटी सी नाव और यह लिखने-फोटो खींचने का ताम-झाम। अपनी बाकी जरूरतें समेट हम बन जायें आत्मन्येवात्मनातुष्ट:! जब यह वातावरण हो तो न बनने का क्वैश्चनवइ नहीं उठता।"इतना रूमानी होने की जरूरत नहीं है, प्लेटफॉर्म पर अभी बहुत गाड़ियाँ आनी जानी हैं।सतसई पर नहीं हजारा पर बधाई देंगे। काहे ? हमरी मर्जी ;)गंगा के साथ आप का गहन जुड़ाव बहुत भावुक कर देता है। वाराणसी में रहते हुए इस क़ाफिर ने गंगा के सम्मोहन को बखूबी समझा था। हजारों वर्षों के संस्कार रक्त में घुल कर दौड़ रहे हैं, हमारे लिए यह नदी बस 'पानी' नहीं है।जाने क्यों 'नजीबाबाद' की एंटी थिसिस चुभ सी गई। लगा इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था।

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  4. बहुत बहुत बधायी ! मगर वैराग्य के वार्धक्य पर मुझे बड़ी चिंता है !

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  5. सबसे पहले गंगा तट का चित्र और शब्द-चित्र पसन्द आया।७००वीं पोस्ट की बधाई। कल आपने कहा था "तबियत नासाज चल रही है" यह पोस्ट देखकर आश्वस्त हुआ कि अब जरूर सुधार है।क्या ७०० पोस्ट होने के बाद इसे "ज्ञान-सप्तशती" कह सकते हैं?

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  6. भाई जीआप सात शतक ऐसे लगा गये जैसे गंगा में मछली पकड़ रहे हों..झउउआ भर भर…इर्ष्या का विषय होते हुए भी सदभावनावश इर्ष्या जाहिर नहीं कर रहा हूँ बल्कि हें हें करते बधाई देने को तत्पर हुआ जा रहा हूँ. ये ७०० कब हजारा होकर मूँह चिढ़ायेगी..वो दिन बड़े नजदीक मुहाने पर खड़े नजर आ रहे हैं.बढ़ती पोस्टों के साथ, मानिंद उम्र, दार्शनिकता स्वभाविक है तो कतई आश्चर्य नहीं होता आपकी आजकल की पोस्टे देख…चाहे वो नाविक की तस्वीर हो या आप बनियान में ट्रेन में बैठे भरसक मल्लिकानुमा पोज देने के प्रयास में हों.आज का शेर, जी हाँ, अगर हम यह पंक्ति लिखते तो इसे शेर कहते और ऐसे लिखते:इक बार और जरा जाल तो फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली को बंधन की तलाश हो!-ज्ञानदत्त पाण्डेय ’ज्ञान’-खैर, बाकी हिसाब किताब ७०० से १००० के बीच करेंगे मगर अभी:’सातवें सैकड़े के लिए बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं.’

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