मैने एक बार अपने एक मित्र से मिलने का समय माँगा तो उन्होने बड़ी गूढ़ बात कह दी। ’यहाँ तो हमेशा व्यस्त रहा जा सकता है और हमेशा खाली।’ मैं सहसा चिन्तन में उतरा गया। ऐसी बात या तो बहुत बड़े मैनेजमेन्ट गुरू कह सकते हैं या किसी सरकारी विभाग में कार्यरत कर्मचारी।
आप यदि अपने कार्य क्षेत्र में देखें तो व्यक्तित्वों के ४ आयाम दिखायी पड़ेंगे।
- पहले लोग वो हैं जो न केवल अपना कार्य समुचित ढंग से करते हैं अपितु अपने वरिष्ठ व कनिष्ठ सहयोगियों के द्वारा ठेले गये कार्यों को मना नहीं कर पाते हैं। कर्मशीलता को समर्पित ऐसे सज्जन अपने व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान न देते हुये औरों को सुविधाभोगी बनाते हैं।
- दूसरे लोग वो हैं जो सुविधावश वह कार्य करने लगते हैं जो कि उन्हें आता है और वह कार्य छोड़ देते हैं जो कि उन्हें करना चाहिये। यद्यपि उनके कनिष्ठ सहयोगी सक्षम हैं और अपना कार्य ढंग से कर सकते हैं पर कुछ नया न सीखने के सुविधा में उन्हें पुराना कार्य करने में ही मन लगता है। इस दशा में उनके द्वारा छोड़ा हुया कार्य या तो उनका वरिष्ठ सहयोगी करता है या कोई नहीं करता है।
- तीसरे लोग वो हैं जिन्हें कार्य को खेल रूप में खेलने में मजा आता है। यदि कार्य तुरन्त हो गया तो उसमें रोमान्च नहीं आता है। कार्य को बढ़ा चढ़ा कर बताने व पूर्ण होने के बाद उसका श्रेय लेने की प्रक्रिया में उन्हें आनन्द की अनुभूति होती है।
- चौथे लोग वो हैं जो सक्षम हैं पर उन्हें यह भी लगता है कि सरकार उनके द्वारा किये हुये कार्यों के अनुरूप वेतन नहीं दे रही है तो वे कार्य के प्रवाह में ही जगह जगह बाँध बनाकर बिजली पैदा कर लेते हैं।
इन चारों व्यक्तित्वों से आप के कार्य क्षेत्र में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न होती है और जिसके द्वारा मित्र द्वारा कहे हुये गूढ़ दर्शन को भी समझा जा सकता है।
यदि समय कभी भी निकाला जा सकता है और कितनी भी मात्रा में निकाला जा सकता है, इस दशा में भी यदि मेरे मित्र अपने काम में लगनशीलता से लगे हैं तो उनका समर्पण तुलसीदास के स्वान्तः सुखाय से किसी भी स्तर में कम नहीं हैं। श्रीमान बधाई के पात्र हैं।
उक्त चार प्रकार के बारे में पढ़ते ही हम अपने को देखने लगते हैं कि कौन से प्रकार में आते हैं। मैं तो पहले अपने आप को प्रकार 1 में पाता था, पर अब उत्तरोत्तर प्रकार 2 में पाने लगा हूं। बहुधा जैसे जैसे हम अपनी दक्षता के बल पर प्रोमोशन पाते हैं तो जो कार्य दक्षता से कर रहे होते हैं, वही करते चले जाते हैं। यह सोचते ही नहीं कि हमारा काम बदल गया है और जो काम हम पहले करते थे, वह औरों से कराना है। एक प्रकार का फेक वर्क करने लगते हैं हम!
बाकी, बड़बोले और खुरपेंचिये (प्रकार – 3 और 4) की क्या बात करें!
बड़बोले और खुरपैंचिये? मैने इन शब्दों का प्रयोग किया कोई बहुत मनन कर नहीं। मुझे नहीं मालुम कि प्रवीण सभी कार्य करने वालों को चार प्रकार में बांट रहे हैं, या मात्र कुछ प्रकार बता रहे हैं [1]। यदि पूरे का वर्गीकरण है तो हर प्रकार का एक सुगठित नाम होना चाहिये। और अन्य प्रकार के काम करने वाले हैं तो आप चुप क्यों हैं? उनके प्रकार/विवरण और नामकरण के लिये मंच खुला है! ओवर टू यू!
[1] – प्रवीण ने अपना स्पष्टीकरण टिप्पणी में दे दिया है। कृपया उसे ले कर चलें:
यह वर्गीकरण किसी कार्यव्यवस्था में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न करने वाले कारकों के लिये ही है । हम सभी को इन प्रभावों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिये । यह पोस्ट आदरणीय ज्ञानदत्त जी की फेक कार्य पोस्ट से प्रेरित है ।

sir ,namaskar…apne desh ki govt managed companies ke baare me accha vishleshan hai .. jab bhi main kisi govt. kaaryalaya me jaata hoon … mujhe yahi chaaro divisions nazar aate hai..is post ke liye meri badhai sweekar kare..dhanywadvijay http://www.poemofvijay.blogspot.com
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बड़ा ही सही और सार्थक वर्गीकरण और विवेचना की है आपने…..
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एक वर्ग वो है जिसे काम करना ही पड़ता है… वर्ना कोई गुन्जाईस नहीं ! अगर आप केवल सरकारी की बात कर रहे हैं तो और बात है. इसलिए लिख गया क्योंकि मुझे ये पोस्ट याद आ गयी. http://feedproxy.google.com/~r/TheBigPicture/~3/ZEXRnn1qB20/
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सरल सी भाषा में कहें तो- वो जो कर सकते हैं और करते हैं, वो जो कर सकते हैं और नहीं करते, वो जो नहीं कर सकते पर कर रहे हैं और वो जो नहीं कर सकते और नहीं कर रहे हैं:)
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हमारी तो बस हाजिरी लगा लीजिए,इससे ज्यादा कुछ कहा तो न जाने किसके पेट में दर्द हो जाय :)
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wakai main satish ji,gyndutt ji, praveen ji…jyun hi is post ko padha 12 angry man ki yaad taaza ho aaiye.waise praveen ka vishleshan accha hai….aur apka PS bhi.
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हमें तो खुद की श्रेणी मिल गई परंतु हम उसे गोपनीय ही रखेंगे। बताने से हमें नुकसान हो सकता है। :) प्रबंधन पर अच्छा आलेख।
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गुरूदेव,प्रवीण जी से कहिये हम जैसे निट्ठल्ले लोगों के लिये भी केटेगरी बनायें।ये शायद पब्लिक डिमांड है और आप ज़रा ब्लागरो पर भी अपनी पैनी नज़र डालियेगा।प्रवीण जी की पोस्ट पढकर अब फ़ुरसत से खुद के बारे मे सोचूंगा।
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वे कार्य के प्रवाह में ही जगह जगह बाँध बनाकर बिजली पैदा कर लेते हैं। ठीक ही कहा, और आजकल ऐसे लोग इतनी बिजली पैदा कर रहे हैं कि स्विस बैंक तक को सप्लाई कर रहे हैं.वैसे मैंने तो कर्मचारियों, मातहतों, अधिकारीयों की गुणवत्ता समझाने और उसके अंकुल व्यव्हार करने के जो नुख्से पड़े थे वे इस प्रकार थे—– . He who knows not, and knows not he knows not he is a fool–shun him He who knows not, and knows he knows not– he is a child– help him He who knows, and knows not he knows— He is asleep—-wake him He who knows, and knows he knows—- He is a wise—-follow him. चन्द्र मोहन गुप्तजयपुरwww.cmgupta.blogspot.com
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बात निर्गुण से शुरू हो सगुण तक आ गयी -बढियां !
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