शराब पर सीरियस सोच

Mallya Point1 प्रवीण जिस शराब के गंगा की रेती में दबाये जाने की बात कर रहे हैं, वह शायद अंग्रेजी शराब है। यहां शिवकुटी के माल्या-प्वाइण्ट पर डालडा के पीपों में शराब बनती/रेत में गाड़ी जाती और फिर नाव से ले जाई जाती है। यह चित्र बोरी से ढके कुछ पीपों का है जो नाव के पार्क किये जाने की प्रतीक्षा में रखे गये हैं। ये नाव में लाद कर गंगा के बहाव के विपरीत दिशा में ले जाये जायेंगे।

प्रवीण इस समय बेंगलुरू में पदस्थ हैं और वह विजय माल्या का शहर है।

विजय माल्या की नगरी में पहुँचने के बाद श्री ज्ञानदत्त जी के गंगा-मय प्रवाह में ’माल्या प्वाइण्ट’ [1] के संदर्भ में लिखी एक पोस्ट प्रवाहित कर रहा हूँ। ’माल्या प्वाइण्ट’ मुझे भी गंगा किनारे मिला था।

सन १९८९ में, मुझे हरिद्वार के रेतीले तटों पर स्वच्छन्द टहलते हुये रेत के अन्दर दबी हुयी पूरी कि पूरी असली मधुशाला (अमिताभ बच्चन की नयी वाली नहीं) दिखी थी। हरिद्वार में उस समय शराब पर पाबन्दी थी।

आज से बीस वर्ष पूर्व भी गंगा निर्लिप्त/निस्पृह भाव से बही जा रही थी और आज भी वही हाल है।

अनावश्यक रुचि लेने पर एक स्थानीय मित्र ने बताया कि यह बहुत ही सुनियोजित व्यवसाय है और यह अधिक आकर्षक तब और हो जाता है जब वहाँ पर पाबन्दी लगी हो। इसे माफिया व कानून का मिश्रित प्रश्रय प्राप्त है अतएव तुम भी निर्लिप्त भाव से टहलो और गंगा की पीड़ा को समझने का प्रयास करो।

वैसे रेत में बोतल दबाने के और भी लाभ हैं। ईन्वेन्टरी व्यय शून्य है। खपत गंगा तटों पर होने के कारण परिवहन व्यय भी कम है। बीयर को ठण्डा रखने के लिये फ्रिज व बिजली की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसमें गंगा की शीतलता समाहित है। माल बरामद होने पर जेल जाने खतरा भी नहीं है। ऐसा लॉजिस्टिक मैनेजमेन्ट व रिस्क मिटिगेशन मैने आज तक नहीं देखा है। आई आई एम में इस पर एक केस पेपर तैयार हो सकता है।

praveen यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है।

अभी प्रशिक्षण प्राप्त करने वडोदरा जाना हुआ। गुजरात में भी शराब पर पाबन्दी है लेकिन पीने वालों को कभी कोई समस्या नहीं है। हाँ उसके लिये पैसे अधिक देने पड़ते हैं। पर इतनी मेहनत से मुहैया करायी गयी शराब का नशा अपने आप बढ़ जाता है। बिना पुरुषार्थ के यदि आनन्द लिया तो तृप्ति कहाँ?

जहाँ एक ओर गाँधीजी का गुजरात नशे में मस्त है वहीं दूसरी ओर गुजरात सरकार इस बात से आहत है कि उसे इतनी बड़ी मात्रा में एक्साइस ड्यूटी का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

गुजरात में विदेशी सैलानियों को परमिट पर शराब पीने की छूट है। यह तो सच में बहुत ही बड़ा अन्याय है। जिन भारतीयों ने गाँधीजी का साथ दिया तो उन पर पाबन्दी और जिन्होने हमेशा गाँधीजी का मजाक उड़ाया, उन्हें छूट?

समस्या शायद यही है कि शराब जैसे नशे को तो हम लोग सीरियसली लेते हैं परन्तु सीरियस नशों (धन का नशा, सत्ता का नशा, पद का नशा इत्यादि) पर किसी भी राज्य में कोई भी पाबन्दी नहीं!


[1] माल्या प्वाइण्ट – गंगा तट का स्थान जहां अवैध शराब रेत में दबा कर स्टोर की गयी है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “शराब पर सीरियस सोच

  1. "रेत में बोतल दबाने के और भी लाभ हैं। ईन्वेन्टरी व्यय शून्य है। खपत गंगा तटों पर होने के कारण परिवहन व्यय भी कम है। बीयर को ठण्डा रखने के लिये फ्रिज व बिजली की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसमें गंगा की शीतलता समाहित है। माल बरामद होने पर जेल जाने खतरा भी नहीं है।"काश! हमारा निवासस्थान भी गंगातट पर होता।

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  2. '' समस्या शायद यही है कि शराब जैसे नशे को तो हम लोग सीरियसली लेते हैं परन्तु सीरियस नशों (धन का नशा, सत्ता का नशा, पद का नशा इत्यादि) पर किसी भी राज्य में कोई भी पाबन्दी नहीं! ''………….. सही कहा आपने , और अब एक शेर का एक मिसरा बोलना चाहूँगा …………………………'' लोग लोगों का खून पीते हैं वो तो फिर भी शराब पीता है '' मैं तो अयोध्या के पास का हूँ , वहाँ भी यही हाल है | सबसे महगी शराब सरयू की सेवा करने वाले स्वनामधन्य 'बाबाओं' के पास मिल जायेगी …………….

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  3. शराब का माफिया इसी तरह काम करता है । जहाँ शराबबन्दी होती है ज़हरीली शराब की घटनाये भी वहीं अधिक होती हैं । लेकिन इसका कोई हल नही है क्योंकि यह सर्वाधिक राजस्व देने वाला धन्धा है ।

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  4. प्रवीण पांडेय जी ने शराब पर सीरियस चिंतन किया .. और सतीश पंचम जी द्वारा निष्‍कर्ष निकाल लिया गया .. छठा महाभूत बन गया ये शराब .. वाह क्‍या कहने !!

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  5. शराब एक धीमा जहर है इसीलिए विदेशियों को पीने की छूट है …स्वदेशियों को तो इस जहर से बचाना ही होगा ना…Heights of positive thinking

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  6. यानि कि शराब पांच महाभूतों से तैयार एक छठा भूत है जिसे पीने के बाद अच्छे अच्छे लोग लंठायमान हो जाते हैं :) पंच महाभूत – आकाश में झूलते ताड से पहले महातत्व निकालना (आकाश), अवैध भट्टी में आग से पकाना (अग्नि), फिर बोतल में भर जमीन के भीतर गाडना (थल) और फिर उसे जलमार्ग से जगह जगह पहुंचाया जाना (जल)। इसके आलावा वहीं गंगा जी के शीतल हवा से चिल्ल करवाना (वायु) :) और इन सब के मिक्शचर से तैयार जो वस्तु है वह छठा महाभूत है….अब माल्या जी को तो मैं परिष्कारक ही मानूंगा कि वे छठे महाभूत की रचना में अपने आप को होम कर रहे हैं….बावजूद तमाम आसुरी शक्तियों के (शराबबंदी, जकडबंदी)के बीच यह सब कर ले जाना भी अपने आप में कूट तपस्या है :) किसी शायर ने शराब को मधु से श्रेष्ठ मानते हुए ताना मारा था कि अरे यह मय है मय, मगस (मधुमक्खी) की कै तो नहीं :)

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  7. शराब जैसे नशे को तो हम लोग सीरियसली लेते हैं परन्तु सीरियस नशों (धन का नशा, सत्ता का नशा, पद का नशा इत्यादि) पर किसी भी राज्य में कोई भी पाबन्दी नहीं!'नशा सिर्फ पीने से नहीं होता है ज़िन्दगी जीना भी तो एक नशा है.

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