नत्तू "भागीरथ" पांड़े

NattuBahgirath Pandey कल मैं नत्तू पांड़े से बात कर रहा था कि उन्हे इस युग में भागीरथ बन कर मृतप्राय गंगा को पुन: जीवन्त करना है। नत्तू पांड़े सात महीने के हो रहे हैं। पता नहीं अगर भागीरथ बन भी पायेंगे तो कैसे बनेंगे। उसके बाबा तो शायद उससे अपनी राजनैतिक विरासत संभालने की बात करें। उसके पिता उसे एक सफल व्यवसायी/उद्योगपति बनाने के स्वप्न देखें। पर उसे अगर भागीरथ बनना है तो भारत के सूक्ष्म तत्व को पहचान कर बहुत चमत्कारी परिवर्तन करने होंगे भारतीय मेधा और जीवन पद्यति में।

Ashwath बरगद के चौतरे पर गणेश। बनवारी की पुस्तक "पंचवटी" का एक पन्ना

प्राचीन काल के भागीरथ प्रयत्न से कहीं अधिक कठिन प्रयास की दरकार होगी। भागीरथ को चुनौतियां केवल भौगोलिक थीं। अब चुनौतियां अत्यधिक बुद्धिनिर्भर मानव की भोग लिप्सा से पार पाने की हैं। वह कहीं ज्यादा दुरुह काम है।

मुझे इतना तो लगता है कि पर्यावरण को ठीक करने के पश्चिमी मॉडल से तो यह होने से रहा। नत्तू पांड़े को इस प्रान्त-प्रान्तर के बारे में बहुत कुछ समझना होगा। जीवन में अश्वथ, शमी, यज्ञ, वन, गौ, आयुर्वेद, अथर्वण, उद्योग, अरण्य, कृषि और न जाने कितने प्रतीकों को नये सन्दर्भों में स्थापित करना होगा। जैसे कृष्ण ने समझा था इस देश के मानस को, उससे कम में काम नहीं चलने वाला।

प्राचीन से अर्वाचीन जहां जुड़ते हैं, वहां भविष्य का भारत जन्म लेता है। वहीं भविष्य के सभी समाधान भी रहते हैं! 

बेचारा नत्तू पांड़े! कितनी अपेक्षा है उससे!


मुझे जनसत्ता में बनवारी जी को पढ़ना अच्छी तरह याद है। दिनमान में पढ़ा था या नहीं, वह स्मृति में नहीं है। उनकी पंचवटी मेरे पास अंग्रेजी अनुवाद (आशा वोहरा द्वारा) में है। यह सन १९९२ में श्री विनायक पब्लिकेशंस, दिल्ली ने छापी है। इसमें एनविरॉनमेण्ट (पर्यावरण) पर भारतीय दृष्टि है। यह जरूर है कि कुछ आधुनिक लोगों को यह अव्यवहारिक लगे। पर मैं इस पुस्तक के पुनर्पठन की सोच रहा हूं।   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

29 thoughts on “नत्तू "भागीरथ" पांड़े

  1. आदरणीय पाण्डेय जी,नत्तू जी की तस्वीर ने तो मन मोह लिया—इस बार इनसे मुलाकात जरूर करूंगा।हेमन्त कुमार

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  2. यह रचना सामयिक प्रश्नों का उत्तर देने के साथ-साथ जीवन के शाश्वत मूल्यों से भी जुड़ी है। मानव बाह्य जगत से जितना जुड़ा है; उतना ही वह अन्तर्जगत् में भी जी रहा है। बाहरी संसार के नदी, पर्वत, पशु-पक्षी उसके मन से जुड़े हैं ; तो वह मानव होकर भी मानवेतर पात्रों से जुड़ा है। गतिशील होकर भी वह स्थिर,गतिशील मूर्त्त-अमूर्त्त सभी का सगा -संबंधी है। आपने बिल्कुल ठीक कहा है नत्तू पांड़े को इस प्रान्त-प्रान्तर के बारे में बहुत कुछ समझना होगा। आपका आभार।

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  3. बेहतरीन आलेख, सम-सामयिक भी और generation-next को संबोधित. एक पीढी पर कितना दबाव होता है अपेक्षाओं का…अपेक्षाओं का भी एक hierarchy है..वैसे इससे प्रत्येक पीढी गुजरे ना गुजरे इस कसौटी पे कसी जरूर जाती है. पर्यावरण की बहस कोई भी हो मुझे गांधी सबसे प्रासंगिक लगते हैं. सिर्फ बाहरी उपाय काफी नहीं होंगे..प्रयासों की उम्र लम्बी हो जिसके सार्थक परिणाम भी हों तो अपने भीतर कुछ परिवर्तन करने होंगे. वस्तुओं का न्यूनतम प्रयोग..मितव्ययी जीवन शैली और एक साफ़-सुथरी आध्यामिकता को भी अपनाना होगा जिससे जो भी समक्ष है जड़-चेतन..उसकी ईज्जत हो मन में. कई बार सोचता हूँ, हर जड़-चेतन में देवत्व देखना कितना ठीक था अपने पर्यावरण के लिए..खैर उचित और श्रेष्ठ के चयन की आवश्यक प्रज्ञा के साथ नत्तू "भागीरथ" पांड़े को अपनी चुनौती स्वीकारनी होगी. इस भागीरथ प्रयास में नत्तू बाबु को अकेले छोड़ना ठीक नहीं होगा. वर्तमान की सारी पीढ़ियों को अपना योग देना होगा. अक्सर आगत पीढी से हम अपेक्षा ज्यादा रखते हैं और उसकी चुनौतियों को हम underestimate करते हैं पर यहाँ इस पोस्ट में दो पीढियां एक-दूसरे की सीमाओं से और क्षमताओं से भली-भांति अवगत लगती हैं..इस शुभ लक्षण के शुभ मायने हैं…आभार इस बेहतरीन पोस्ट के लिए.

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  4. आदरणीय पाण्डेय जी,आपने नत्तू जी की बहुत खूबसूरत फ़ोटो लगाई है।इस बार इलाहाबाद आऊंगी तो इनसे मिलने जरूर आऊंगी।पूनम

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  5. गिरिजेश राव जी की टिप्पणी: आप की ताजी पोस्ट पर मेरी यह टिप्पणी:_______________कोपेनहेगन के होपेनहेगन .. होने की सम्भावना/आशा पर जो टिप्पणी दी थी, यहाँ भी दे रहा हूँ:"हिन्दी ब्लॉगरी में ऐसे लेखों की कमी है। अच्छी पोस्ट।भोगवादी विकास की अवधारणा ने बहुत से ऐसी प्रक्रियाएँ शुरू कर स्थापित कर दी हैं जिनको रिवर्स करने के लिए बहुत ही दृढ़ इच्छाशक्ति और जनता को समझाने की आवश्यकता पड़ेगी। सवाल यह है कि क्या वैश्विक नेतृत्त्व इसमें सक्षम है? क्या वाकई रोकथाम और रिवर्सल के लिए ईमानदार है? आर्थिक विकास और रोजगार के मुद्दे भी इनसे जुड़े हुए हैं। बहुत जटिल सा मामला है। जाने क्यों भूटान जैसे छोटे देश से सीख लेने को मन करता है !"

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  6. नत्तू पांड़े! आय हाय!! कित्ते प्यारे..हम तो उन पर मोहाय बकिया पढ़े ही नहीं…

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  7. ज़बरदस्‍त बात कही. चुनौतियां अब सिर्फ भौगोलिक नहीं है नत्‍तू जी का काम अधिक दुष्‍कर होगा इसमें शक नहीं पर देखिये तो आपकी बात पर वे कितने आराम से हल निकाल लेने की मुद्रा में दिख रहे है.

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  8. आपने बहुत सही कहा "प्राचीन काल के भागीरथ प्रयत्न से कहीं अधिक कठिन प्रयास की दरकार होगी। भागीरथ को चुनौतियां केवल भौगोलिक थीं। अब चुनौतियां अत्यधिक बुद्धिनिर्भर मानव की भोग लिप्सा से पार पाने की हैं। वह कहीं ज्यादा दुरुह काम है।"

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  9. सोचिये मत कर डालिए ताकि बनवारी जी को हम भी पढ़ लें वैसे आवश्यकता तो है भागीरथ की और प्रांत – प्रांतर को समझने की

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