गंगा भयीं पोखरा!

Bhains पानी कम हो रहा है। कम गंगा में। उभर रहे हैं द्वीप। तट पर कटान करने वाली गंगा अब उथली होती जा रही हैं। माने पोखरा की माफिक!

जैसे पोखरा में भैंसे हिलकर बैठती और मड़ियाती हैं, वही दृष्य था। सेम टु सेम। अन्तर इतना भर कि उनके आस पास का जल रुका नहीं, मन्थर गति से बह रहा था। भैंसें सांस छोड़ रही थीं तो आवाज आ रही थी। दूर फाफामऊ के पुल पर पसीजर गाड़ी के जाने और सीटी की आवाज भी थी।

अब बन्धुओं, हाईली इण्टेलेक्चुअल गद्य-पद्य लेखन के बीच यह भैंस-पुराण क्या शोभा देता है?! पर क्या करें अपने पास यही मसाला है।

बचपन में जब कविता ट्राई करी थी, तब भी ऐसा ही कुछ लिखा था – बीच तैरता भैंसों का दल, गंगा के नयनों में काजल। तब गंगा स्वच्छ थीं। धवल। उसमें भैंसें काजल सी सजी लगती थीं। अब तो पीले-ललछरहों पानी में ऐसा लगता है मानो कुपोषित नारी ने जबरी काजल ढेपार लिया हो।

खैर एक उच्छवास के साथ यह वीडियो प्रस्तुत कर रहा हूं – गंगा में हिलती-बैठी-मड़ियाती भैंसों के।  

पानी में जा रही भैंसें

मड़ियाती भैंस


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

28 thoughts on “गंगा भयीं पोखरा!

  1. आभार, सुबह सुबह गंगा माई के दर्शन करवाने के लिये और फ़िर से अपनी ही शैली मे एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाने के लिये..लखनऊ मे गोमती के हालात बदतर थे..आजकल कुछ पहल देख रहा हू..सुना है world bank ने कुछ अरब रुपये भेजे है गोमती की सफ़ाई के लिये…काफ़ी साफ़ हो गयी है अब और पैसे भी साफ़ हुए ही होगे…शायद गंगा सफ़ाई इन लोगो के लिये एक ऐसा ही बहुत बडा प्रोजेक्ट हो…इसलिये इन्तजार कर रहे हो उसके गन्दे होने का..वैसे आपकी पिछ्ली पोस्ट मे मैने भी sanjeet साहब की तरह ’ओ गंगा बहती हो क्यू’ का लिन्क दिया था…भूपेन हज़ारिका का एक अच्छा गाना है… :)

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  2. गंगा नदी की स्थिति पर चिंता जनक पोस्ट आप ने ही सब से अधिक लिखी हैं.इस तरह जल स्तर कम होता रहेगा तो बेचारी भेंसे गरमियों में कहाँ जाएँगी?फिलहाल तो आप को सपरिवार होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं देने आई हूँ.पिछले साल आप ने अम्मा जी के हाथों की बनी गुझिया खिलाyee थी सब को! इस बार?आभार.

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  3. सर जी,अभी-अभी हरिद्वार में गंगा स्नान करके आया हूँ। बहुद पवित्र है। आप भी कुंभ स्नान कर ही लो। बहुत पवित्र हो जाएगा मन।होली की शुभकामनाएँ।

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