आँखों के दो तारे तुम


आत्म-अधिक हो प्यारे तुम, आँखों के दो तारे तुम । रात शयन से प्रात वचन तक, सपनों, तानों-बानों में, सीख सीख कर क्या भर लाते विस्तृत बुद्धि वितानों में, नहीं कहीं भी यह लगता है, मन सोता या खोता है, निशायन्त तुम जो भी पाते, दिनभर चित्रित होता है, कृत्य तुम्हारे, सूची लम्बी, जानो उपक्रमContinue reading “आँखों के दो तारे तुम”

टिप्पणीयन


सब के प्रति समान दुर्भावना के साथ (खुशवन्त सिंह का कबाड़ा पंच लाइन) – By Anonymous on 6:12 AM बाबा समीरानन्द ji ne Anup ji ki to baja baja diya aur aab agla number apka hi hai. ———– हिन्दी भाषियों के लिये अनुवाद – बेनामी जी की टिप्पणी मसिजीवी के ब्लॉग पर –बाबा समीरानन्द जीContinue reading “टिप्पणीयन”

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