खतम हो लिये जीडी?

शारीरिक फैकेल्टीज में गिराव तो चलेबल है। जोड़ों में दर्द, स्पॉण्डिलाइटिस, चश्मे का नम्बर बढ़ना …  यह सब तो होता रहा है। रक्तचाप की दवा भी इस बार बदल दी है डाक्टर साहब ने। वह भी चलता है। पर मेण्टल फैकेल्टीज में गिराव तो बड़ा डरावना है। आप को कभी अपने बारे में यह लगता है?

डाक्टर साहब के पास उस आदमी को देखता हूं। डाक्टर उससे आम पूछ रहे हैं तो वह इमली बता रहा है। अन्दर से भयभीत है – सो अनवरत बोल रहा है – अंग्रेजी में। मरियल दुबला सा आदमी। जबरदस्त एनिमिक। उससे डाक्टर पूछ रहे हैं कितने साल रिटायर हुये हो गये। वह कहता है कि अभी वह नौकरी में है – सन 2011 में रिटायरमेण्ट है। सत्तर से कम उम्र नहीं लगती चेहरे से। बार बार कहता है कि इससे पहले उसे कोई समस्या नहीं थी। पर वह यह नहीं बता पाता कि समस्या क्या है?!

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और आदतन मैं अपने को उस व्यक्ति के शरीर में रूपांतरित कर लेता हूं। और तब मुझे जो लगता है, वह डराने वाला है – बहुत भयावह! अपने कोर में भयभीत होने पर मैं अपने आप से मन में अनवरत बोलने लगता हूं – अंग्रेजी में!

ओह, किसी को सुनाई तो नहीं दे रहा है? एक पॉज में मैं सोचता हूं – क्या जरा, रोग या मृत्यु का अनुभव किये बिना बुद्धत्व सम्भव है? क्या खतम हुये बिना ‘ज्ञान” मिल सकता है?


डॉक्टर के पास डेढ़ साल बाद गया। इस लिये कि बिना देखे, मेरी दवायें आगे चलाते रहने पर उन्हे आपत्ति थी। और उनके पास जाने पर उनके चेम्बर में आधा घण्टा प्रतीक्षा करनी पड़ी – जब तक वे पहले के दो मरीज निपटाने में लगे थे।

और यह आधा घण्टे का ऑब्जर्वेशन माइनर बुद्धत्व उभार गया मुझमें। उस बुद्धत्व को कहां सरकाऊं, सिवाय ब्लॉग के? :mrgreen:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

39 thoughts on “खतम हो लिये जीडी?

  1. 1. होनी तो हो के रहे …2. जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु…. 3. मृत्यु सर्वहरश्चाहम…4. जन्म मृत्यु जरा व्याधि दु:ख दोषानुदर्शनम… आप तो गीता के पाठक हैं फिर यह पलायनवादी विचारधारा कैसी? अपनी तरफ से जो हो सकता है यथाशक्ति कीजिये, साथ ही याद रखिये कि यह कुछ भी टाला नहीं जा सकता है। अनंतकाल से काल का चक्र चलता रहा है और अनंतकाल तक चलता रहेगा। 5. कर्मण्येवाधिकारस्ते …

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  2. मुझे तो ऐसा कुछ भी न तो हुआ और न ही हो रहा है। बस, यह याद नहीं आ रहा कि इस समय आयु के कितने वर्ष पूरे कर लिए।

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  3. प्रतिशत की बात कर रहा था अनीता जी ! और आप तो अलग ही हैं, ज्ञान भाई को हौसला दीजिये , भाई लोग तो बुद्धत्व की बातों को आगे बढ़ा रहे हैं ! :-)

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  4. सतीश सक्सेना जी की बात सुन कर रुक गये। लीजिए सतीश जी कम से कम दो महिलाएं तो आ गयी टिपि्याने। तनु जी के बारे में तो मुझे ज्यादा पता नहीं पर मैं तो ज्ञान जी की ही उम्र की हूँ और इस लिए उनसे आइडेंटिफ़ाई कर पाऊं ये नेचुरल है। मुसीबत ये है कि मैं ऐसा नहीं कर पा रही। अभी तक ऐसा कोई अनुभव हुआ नहीं, डाक्टर हमसे और हम डाक्टरों से कौसों दूर भागते हैं। ऐसे में हम भी उस माइनर बुद्धत्व के इंतजार में हैं। वैसे संजीत की बात से सहमत हैं ज्यादा इस बारे में सोचने का नहीं…।:)

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  5. हालात ने चेहरे की दमक छीन ली वरनादो-चार बरस में तो बुढ़ापा नहीं आता । नहीं-नहीं, ये आपसे नहीं कह रहा, अपने आप से कह रहा हूँ। आपका आलेख पढने के बाद खुद को दिलासा जो देना था।

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  6. अब इसे संजोग कहूँ या कुछ और….आज सुबह ही पडोस के घर में अस्पताल से एक घायल का फोन आया कि फलां गाडी का एक्सीडेंट हुआ है। उसमें सवार मेरे पडोसी मित्र का पता नहीं चल रहा कि वह कहां है। सुनते ही पडोस के घर में कोहराम सा मच गया….क्या हुआ होगा…कहां होंगे वो…..बात बात में फोन लगाया गया पर कुछ पता नही चल रहा था। लोग दौडाए गए उस ओर…….इस बीच मेरे घर में यह उहोपोह चल रहा था कि कम से कम हाथ पैर में चोट लग जाय तो भी ठीक है….इंसान का जिवित रहना और अपने बच्चों के सामने रहना ही काफी होता है। इस बीच लगातार फोन पर ढूँढने वालों से संपर्क चलता रहा। उम्मीद रही कि कहीं कुछ न हुआ होगा….शायद मेरे पडोसी मित्र घायल हो गये होंगे बस इतना ही हुआ होगा। मन को हटाने के लिये मैंने अखबार वगैरह देखा, ब्लॉगिंग आदि पर थोडा खुद को लगाया। इधर समय बीतता जा रहा था। मन में आशंका घर करती जा रही थी……तभी पता चला कि वह शख्स अब नहीं रहा । सुनते ही मन सन्न रह गया…. विडंबना यह कि जहां एक्सिडेंट हुआ वह मित्र के गाँव के पास है और उनके बीवी बच्चों को यह कह कर बहका कर गाँव ले जाया जा रहा है कि तुम्हारे पापा गाँव के अस्पताल में एडमिट हैं। उन मासूम अबोध बच्चों को देख कलेजा मुंह को आ रहा है। उनकी बिटिया ने मेरे घर आकर अपने घर का दूध दिया यह कह कर कि आंटी इसे यूज कर लो, पापा गाँव में एडमिट हैं हम लोग जा रहे हैं। इस तरह के माहौल के बीच जो मन: स्थिति बनी है, कि जिस तरह से पहले केवल हाथ पैर में चोट लग जाने पर संतोष किया जा रहा था, फिर छुप छुपा कर बच्चों को बहका कर गाँव ले जाया जा रहा है ताकि रास्ते में डेड बॉडी पहुंचने तक वो फूट न पडें तो यकीन मानिए एकदम से हिल गया हूँ। लेकिन यहां भी समय का फेर देखिये कि थोडी देर तक सब लोग स्तब्धता को जी लेने के बाद उनको याद कर लेने के बाद अनमने ही सही, अपने अपने काम में लग से गये हैं। शायद ऐसे ही क्षण जब प्रत्यक्ष सामने आ जाते हैं तो जो मन:स्थिति बनती है वही बोधिसत्व बनाने के लिये काफी है। लेकिन यह मनो स्थिति लगातार नहीं बनी रहती हमारी, इसलिये न तो हम तथागत बन पाते हैं और न तो कोई गहन बोध का अनुभव कर पाते हैं । तभी तो अभी कुछ घंटे हुए हैं इस माहौल से गुजरे हुए और मैं यहां कम्प्यूटर पर अधमन हो लिख रहा हूँ।

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  7. देव !बड़ा कारुणिक लग रहा है , पढ़कर !एक एक शब्द जैसे आइना दिखा रहा हो !पर यह भी सत्य है की यही करुणा शक्ति और शान्ति भी देती है , आचार्य रामचंद्र शुक्ल इसे करुणा का लोकोपकारक धर्म कहते है ! अतः डर तो कतई नहीं रहा हूँ !विचार कर रहा हूँ —यमराज के सम्मुख एक आकृति सी दिखती है !यह आकृति क्या आसन्न – मृत्यु वाले व्यक्ति की है !न देव न !यह तो एक बालक की है ! गौर से देखता हूँ तो पाता हूँ की यह बालक कोई और नहीं नचिकेता है , जो यम से सवाल कर रहा है ! और फिर वही तीन वरदान याद आ रहे हैं जिनसे यम को भी जीत लिया था नचिकेता ने ! देव जी ! हम सबमें वही मानव 'नचिकेता' है , बस पहचानते कब है ? यही अहम सवाल है … पहचान लिए तो समझिये यम पर विजय !मृत्यु पर विजय !भ्रम पर बोध की विजय !भौतिकता पर विचार की विजय !जन्म-जरा-मरण पर बुद्ध की विजय !.जन्म-जरा-मरण पर विभ्रम रहित चिंतन तोष-प्रद होता है !आज आपकी पोस्ट पढ़ते हुए हृद्तंत्री के तार स्वतः झंकृत हो उठे !अब अपने प्रिय अवधी कवि जायसी के सन्दर्भ के साथ विदा लूँगा —………………..'' मुहमद बिरिध बैस जो भई । जोबन हुत, सो अवस्था गई ॥बल जो गएउ कै खीन सरीरू । दीस्टि गई नैनहिं देइ नीरू ॥दसन गए कै पचा कपोला । बैन गए अनरुच देइ बोला ॥बुधि जो गई देई हिय बोराई । गरब गएउ तरहुँत सिर नाई ॥सरवन गए ऊँच जो सुना । स्याही गई, सीस भा धुना ॥भवँर गए केसहि देइ भूवा । जोबन गएउ जीति लेइ जूवा ॥जौ लहि जीवन जोबन-साथा । पुनि सो मीचु पराए हाथा ॥बिरिध जो सीस डोलावै, सीस धुनै तेहि रीस ।बूढी आऊ होहु तुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस ? || '' ———– इन्हीं जायसी जी ने फिर कहा है ;'' धनि सोई जस कीरति जासू । फूल मरै, पै मरै न बासू ॥ ''………. बस यही बुद्धत्व की बास ( सुगंध ) बचा लेती है न !,,,,, हाँ . इलाहाबाद में होता तो आपसे मिलने जरूर आता ! .प्रणाम !

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