ईर्ष्या करो, विनाश पाओ!

महाभारत के तीन कारण बताये जाते हैं।

शान्तनु का काम, दुर्योधन की ईर्ष्या और द्रौपदी का क्रोध।

शान्तनु का काम भीष्म-प्रतिज्ञा का कारण बना। दुर्योधन की ईर्ष्या पाण्डवों को 5 गाँव भी न दे सकी। द्रौपदी का क्रोध विनाश पत्र के ऊपर अन्तिम हस्ताक्षर था।

यह प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है।
The Difficulty of Being Good

"गुरुचरण दास की Difficulty of Being Good पढ़ रहा हूँ। ईर्ष्या का प्रसंग रुचिकर और सार्वजनिक लगा। श्रीमती जी के मायके गमन के बाद बच्चों की देख रेख के लिये आज की छुट्टी लिये घर बैठा हूँ। बच्चों को उलझाकर ब्लॉग पोस्ट लिखने का अपराध कर चुका हूँ। ब्लॉगहित में क्षम्य हो।"

इनमें से केवल दुर्योधन की ईर्ष्या ही थी जो लम्बे समय तक इस विनाश बीज को पल्लवित किये रही, शेष दोनों कारण तो तात्कालिक थे।

ज्ञानीजन अनुभवजन्य यह तथ्य बताते हैं कि ईर्ष्या हर मानव में विद्यमान है। हम सबमें अपने अपने हिस्से का थोड़ा सा दुर्योधन है और तज्जनित महाभारत। दाँय पहले कपाल में मचती है, काल तो उसका मूर्त और धीमा एक्शन रिप्ले ही दिखाता है।

मत्सर(ईर्ष्या) हिन्दू शास्त्रों में वर्णित 6 दोषों में एक है, बाइबिल में बताये 7 पापों में स्थान रखता है, इस्लाम में हसद के नाम से है। जैन और बौद्ध ग्रन्थों में इस पर विस्तार से चर्चा की गयी है। कहीं इसे आग के समान, तो कहीं दीमक के समान और कहीं इसे न ठीक होने वाली बीमारी बताया है।

हमारे हाथ में इसका उपचार है, समग्र नाश नहीं। तीन स्तरों पर समस्या और निराकरण है। जो ईर्ष्या करता है, जिसके प्रति ईर्ष्या की जाती है, वह समाज जो 1 और 1 को 11 नहीं बना पाता है।

ग्रीक समाज में जब कोई इतना ऊपर उठ जाता था कि लोग उससे ईर्ष्या करने लगें तो उसे प्रशीतलन(Cooling off) के लिये कुछ वर्षों के लिये निर्वासित कर दिया जाता था। सुकरात को तो जीवन से ही निर्वासित होना पड़ा। भारतीय संस्कृति में यह प्रशीतलन क्रमिक है और पहले वानप्रस्थ और फिर सन्यास के रूप में जाना जाता है। अकबर के द्वारा बैरम खाँ को संभवतः इसी कारण हज पर भेजा गया हो। भारतीय राजनीति में ऐसे चेहरों की सूची बनाने से कई घाव पुनः खुल जायेंगे। अतः दिल पर मत लीजिये, यह परम्परा का अंग है, प्रशीतलन के बाद पुनः कार्य पर लग जाइये।

जो व्यक्ति बहुत ऊपर उठे, उसे भी चाहिये कि अधिक दिखावा न करे। न धन का, न ज्ञान का, न सम्मान का, न अभिमान का। चीन की संस्कृति में बड़ी ऊँचाइयाँ छूने के बाद भी लोग ‘मैं तो बड़ा तुच्छ सा प्राणी हूँ और आप के ऐश्वर्य के आगे यह उपलब्धि तो कुछ भी नहीं’ जैसे वाक्य बोलते हुये दिख जाते हैं। भारत में दान को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। कम से कम जिन्हें दान मिलेगा, वे ईर्ष्या न कर के साधुवाद देंगे। आपका धन कम होने से आपके प्रति ईर्ष्या की मात्रा भी कम हो जायेगी। और इसी बहाने आपकी भी मोह माया कम हो जाये तो क्या हानि है। कई लोग स्वयं तोप चलाने के बाद भी क्रेडिट अपनी टीम को ही दान कर देते हैं या पुष्पगुच्छ में लपेट कर बॉस के चरणों में अर्पित कर देते हैं।

भारतीय संस्कृति में यह प्रशीतलन क्रमिक है और पहले वानप्रस्थ और फिर सन्यास के रूप में जाना जाता है। अकबर के द्वारा बैरम खाँ को संभवतः इसी कारण हज पर भेजा गया हो। भारतीय राजनीति में ऐसे चेहरों की सूची बनाने से कई घाव पुनः खुल जायेंगे। अतः दिल पर मत लीजिये, यह परम्परा का अंग है, प्रशीतलन के बाद पुनः कार्य पर लग जाइये।

ज्ञानदत्त पाण्डेय उवाच – इसी परम्परा के वशीभूत बेचारे नये ब्लॉगर कुछ पोस्टें लिख कर खुद को अकबर और स्थापितों को बैरामखाँ बनाने पर प्रतिबद्ध हो जूतमपैजार करने लगते हैं!


अगर लोभ पूंजीवाद का पाप है तो ईर्ष्या समाजवाद का दुर्गुण! – गुरचरनदास की संदर्भित पुस्तक से।

जो ईर्ष्या करते हैं उनकी तो बात ही निराली है। चर्चिल व चार्ल्स डि गॉल जैसे नेता महानायक ईर्ष्यालु समाज के कारण ही भयानक हार तक निपटा दिये गये। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी । एण्टी इनकम्बेन्सी में भी इसी रणनीति की बू आती है। आशानुरूप कार्य नहीं किया तो क्रोध, आशा से बहुत अच्छा किया तो ईर्ष्या, आपका जाना तय है श्रीमन्। ‘उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद कैसे’ जैसे विज्ञापन आपके अन्दर ईर्ष्या के दबे हुये भाव को उभार कर पैसा कमा कर निकल जाते हैं।

एक सर्वे के अनुसार आस्ट्रेलिया में यह पाप(ईर्ष्या) अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक है। बेचारे भारतीय!

बर्टाण्ड रसेल के अनुसार यह भाव(ईर्ष्या) लोकतन्त्र का जनक है और सामाजिक समानता बनाये रखने के लिये बने रहना चाहिये। शौक से जलिये!

मैं इस दाह(डाह) से बचने के लिये दो सत्य जीवन में स्वीकार कर चुका हूँ। पहला संसाधनों की प्रचुरता (Abundance theory) और हर जीवन की विशिष्टता (Uniqueness of every being)। आपके सत्य क्या हैं?

Gurcharandas books


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

41 thoughts on “ईर्ष्या करो, विनाश पाओ!

  1. आपके लेखन की रोचक शैली से हमें ईर्ष्या हो रही है। हे प्रभु क्षमा करना!

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  2. mujhe kuchh bhi likhne se rok rahi he ye baat….इसी परम्परा के वशीभूत बेचारे नये ब्लॉगर कुछ पोस्टें लिख कर खुद को अकबर और स्थापितों को बैरामखाँ बनाने पर प्रतिबद्ध हो जूतमपैजार करने लगते हैं!

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  3. hmara to saty hai jab irshya ka bhav jagart ho (yh to svabhavik durgun hai) tab us bhav se vipreet disha me sochne lgte hai .jaise apki itni achhi post padhkar irshya ke bhav aaye to fat se tippniya pdhne baith gye .bhrhal bahut sundar aur mnn krne yogy post .abhar

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  4. @मनोज कुमार said…अभी तक मैं प्रवीण जी का वेट कर रहा था कि उनका अधिकारिक टिप्प्णी आ जाए और यह देख लूँ कि किसकी ईर्ष्या बड़ी है ।(ईर्ष्या पर वे कहते हैं…)मैं, बैठकर आनन्द से,वाद के विवाद से,उमड़ते अनुनाद से,ज्ञान को सुलझा रहा हूँ,सीखता हूँ,सीखने की लालसा है,व्यस्तता है इसी की,और कारण भी यही,कुछ बोल नहीँ पा रहा हूँ ।

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  5. पोस्ट और टिप्पणियां दोबारा पढने पर कुछ बातों को कहने से रोक नहीं सकता:-पोस्ट के कथानक को हिंदी ब्लौगिंग का सब-प्लॉट मिल गया. ज्ञान जी की टिपण्णी ने लोगों का ध्यान प्रवीण जी की पोस्ट से हटा दिया. यहाँ नए-पुराने और स्थापित-नवोदित का भाव इतनी गहरी जड़ पकडे बैठा है कि सयानों को भी कभी-न-कभी कालिख लग ही जाती है. और यह हालात तो तब हैं जब किसी को भी ब्लौगिंग से शुद्ध आय नहीं हो रही. मीडियोक्रिटी हिंदी मानस का अनिवार्य गुण है जिसके चलते 'पत्र सम्पादक के नाम' लिखने वाले भी मूर्धन्य रचनाकार होने का मुगालता पाले बैठे रहते हैं. ऐसे में जो भी जन सतत गुणी रचनाधर्म में लगे हुए है (और जिन्हें इसका पारितोषक भी मिलता है) उनकी मिट्टी पलीद करने के दसियों बहाने और तरीके ईजाद कर लिए जाते हैं. जिस दिन स्थापित और रचनाधर्मी ब्लौगर ब्लौगिंग से लायक कुछ कमाने होंगे उस दिन असली जूतमपैजार होगी. तब तक सब अपनी जुगाली करते रहें. ध्यान दें कि लपटें कहीं चारे को न लील बैठें.

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  6. इर्ष्या करना मामूली बात नहीं है.. इसके लिए लगातार रियाज करना पड़ता है.. सुबह उठते ही दो घंटे इर्ष्या करना चाहिए, फिर शाम में दो घंटे का रियाज फिर.. ऐसे ही १५-२० साल रियाज करते रहे तभी परफेक्शन आता है..

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  7. आज आप ने बहुत सुंदर बात लिखी, ओर यह सत्य भी है,कभी कभी ऎसी बाते पढने से हम भटकने से बच जाते है. आप का धन्यवाद

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  8. गुरुचरण दास की तो-तीन किताबों में उनकी खुद की बातों में (घोर) विरोधाभास दिख जाएगा. बाकी ईर्ष्या वाली बात तो सही है.

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  9. ईर्ष्या… किससे करें… कैसे करें.यह तो प्रेय की ओर ले जाने वाला मार्ग है.और मैं तो अक्सर इसी को गुनता रहता हूं:-"… at my back I always hearTime's winged chariot hurrying near;And yonder all before us lieDeserts of vast eternity."Poem excerpt (Andrew Marvell)

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