आरोपों के काल में कुत्ते बिल्लियों के ऊपर लिखे गये ब्लॉग हेय दृष्टि से देखे गये थे। इसलिये जब बिटिया ने बिल्ली पालने के लिये हठ किया तो उसको समझाया कि गाय, कुत्ते, बिल्ली यदि हिन्दी ब्लॉग में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं तो उनको घर में लाने से मेरी भी हिन्दी ब्लॉगिंग प्रतिभा व रैंकिंग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
बालमन पशुओं के प्रेम व आत्मीयता से इतने ओतप्रोत रहते हैं कि उन्हें ब्लॉगिंग के सौन्दर्यबोध का ज्ञान ही नहीं। बिटिया ने मेरे तर्कों पर भौंहे सिकोड़कर एक अवर्णनीय विचित्र सा मुँह बनाया और साथ ही साथ याद दिलाया कि कुछ दिनों पहले तक इसी घर में सात गायें और दो कुत्ते रहते थे। यह देख सुन कर मेरा सारा ब्लॉगरतत्व पंचतत्व में विलीन हो गया।
हम विदेशियों से प्रथम दृष्ट्या अभिभूत रहते हैं और जिज्ञासा के स्तर को चढ़ाये रहते हैं। विदेशी बिल्लियाँ, यह शब्द ही मन में एक सलोनी छवि बनाता है। देखने गये एक दुकान में। सुन्दरतम पर्सियन कैट्स 15000 से 20000 के बीच मिल रही थीं। उनकी दिखाई का भी मूल्य होगा, यह सोचकर अंग्रेजी में उनके प्रशंसा गीत गाकर उसे चुकाया और ससम्मान बाहर आ गये।
बिटिया को लगा कि उसे टहला दिया गया है। अब देश की अर्थ व्यवस्था तो समझाने लायक नहीं रही तो कुछ धार्मिक व स्वास्थ्य सम्बन्धी तर्क छोड़े गये। हमारे चिन्तित चेहरे से हमारी घेरी जा चुकी स्थिति का पता चल रहा था। इस दयनीयता से हमारे ड्राइवर महोदय हमें उबार कर ले गये। दैव संयोग से चार दिन पहले उनके पड़ोस में कुछ बिल्ली के बच्चों का जन्म हुआ था।
घर में एक नहीं दो बिल्लियाँ पधारीं। तर्क यह कि आपस में खेलती रहेंगी। नाम रखे गये सोनी, मोनी। कोई संस्कृतनिष्ठ नाम रखने से हिन्दी की अवमानना का लांछन लगने की संभावना थी। अब जब घर का अंग बन ही चुके थे दोनों तो उनके योगक्षेम के लिये हमारा भी कर्तव्य बनता था। डूबते का सहारा इण्टरनेट क्योंकि शास्त्रों से कोई सहायता नहीं मिलने वाली थी। ब्लॉगीय सौन्दर्यबोध के परित्यक्त इनका अस्तित्व इण्टरनेट पर मिलेगा, इसकी भी संभावना कम ही थी। अनमने गूगलवा बटन दबा दिया।
बिल्लिया-ब्लॉग का एक पूरा संसार था। हम तो दार्शनिक ज्ञान में उतरा रहे थे पर बिटिया बगल में बैठ हमारी सर्च को और नैरो कर रही थी। खाना, पीना, सोना, नित्यकर्म, व्यवहार, एलर्जी और मनोरंजन, सबके बारे में व्यवहारिक ज्ञान समेटा गया।
तीन बातें मुझे भी अच्छी लगीं और कदाचित ब्लॉगजगत के लिये भी उपयोगी हों।
- बिल्लियों को खेलना बहुत पसंद है। अतः उनके साथ खेल कर समय व्यतीत कीजिये।
- बिल्लियाँ अपने मालिक से बहुत प्रेम करती हैं और उसे अपने अगले पंजों से खुरच कर व्यक्त करती हैं।
- बिल्लियाँ एक ऊँचाई से बैठकर पूरे घर पर दृष्टि रखती हैं। सतत सजग।
पिछले चार दिनों से दोनों को सुबह सुबह किसी न किसी उपक्रम में व्यस्त देखता हूँ। मेरी ओर सशंकित दृष्टि फेंक पुनः सरक लेती हैं। आपस में कुश्ती, खेल, अन्वेषण, उछल कूद, बीच में दो घंटे की नींद और पुनः वही प्रक्रिया।
देखिये तो, बचपन का एक क्षण भी नहीं व्यर्थ करती हैं बिल्लियाँ, तभी कहलाती हैं शेर की मौसी, बिल्ली मौसी।
प्रवीण भी कुकुर-बिलार के स्तर पर उतर आये पोस्टों में। अत, इस ब्लॉग की अतिथि पोस्टों के माध्यम से ही सही, इमेज बनाने के सम्भावनायें नहीं रहीं। पर मेरे विचार से कुत्तों-बिल्लियों पर समग्र मानवीयता से पोस्ट लिखना कहीं बेहतर ब्लॉगिंग है, बनिस्पत मानवीय मामलों पर व्युत्क्रमित प्रकार से!
प्रवीण ने एक फुटकर रूप से कविता भी भेजी थी; उसे भी यहां चिपका देता हूं (कु.बि. लेखन – कुकुर-बिलार लेखन की विण्डो ड्रेसिंग को!):
व्यक्त कर उद्गार मन के
व्यक्त कर उद्गार मन के,
क्यों खड़ा है मूक बन के ।
व्यथा के आगार हों जब,
सुखों के आलाप क्यों तब,
नहीं जीवन की मधुरता को विकट विषधर बना ले ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।१।।
चलो कुछ पल चल सको पर,
घिसटना तुम नहीं पल भर,
समय की स्पष्ट थापों को अमिट दर्शन बना ले ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।२।।
तोड़ दे तू बन्धनों को,
छोड़ दे आश्रित क्षणों को,
खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।३।।
यहाँ दुविधा जी रही है,
व्यर्थ की ऊष्मा भरी है,
अगर अन्तः चाहता है, उसे खुल कर चीखने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।४।।

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
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रोचक लेख …व्यक्त कर उदगार मन के ..कविता बहुत अच्छी लगी ..मगर भारतीय नागरिक की टिप्पणी भी गौर करने योग्य है …शीघ्र स्वास्थय लाभ करे …शुभकामनायें …!!
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कु.बि. पोस्ट लिखने पर दस बारह किलो बधाई स्वीकार करें। ज्यादा हो तो वापस भी कर सकते हैं, जवाबी थैला साथ भेज रहा हूँ :) भई ये बिलार पालन से अपना भी सामना हो चुका है। करीब चार साल पहले मेरे घर में बिल्ली ने तीन बच्चे जने थे गैलरी में। बड़े प्यारे प्यारे। उनकी सेवा में पूरा घर पहले तो डटा रहा। समय पर दूध वगैरह दे दिया जाता। उनकी माँ भी इसी बहाने दूध पाने लगी। बिल्ली दिन भर बाहर बाहर रहती लेकिन समय पर घर में दूध पीने के लिए निश्चित स्थान पर बैठ जाती। अम्मा ने उस दौरान जमकर बिलार परिवार की सेवा की। लेकिन मुसीबत तब शुरू हुई जब तीनों बच्चों ने घर में गंदगी करना शुरू किया। कभी इस कोने तो उस कोने। हरदम घर साफ करते रहो। धीरे धीरे बच्चे बड़े होते रहे और गंदगी बढ़ती रही। बिलार पालन का खुमार उतरने लगा और एक दिन तीनों बच्चो को घर से दूर छोड आया गया। इधर अम्मा अलग चिंतित कि – काहे रे, कैसे होंगे बच्चे….क्या खा रहे होंगे वगैरह वगैरह। दूर से अम्मा देख भी आई कि बच्चों की मम्मी बिलार उन बच्चों के साथ ही है सुरक्षित हैं बच्चे। इतने पर भी मन नहीं माना और दूध का कटोरा ले पहुंची बिलार परिवार के पास। देखते ही तीनों बच्चे और बिलार पास आ गये। पहचान गए। विचार हुआ कि वापस इनको ले चलूँ लेकिन घर में मची गंदगी की बात ने रोक लिया :) कु.बि. पोस्ट लेखन भी अपना महत्व रखते हैं। लेकिन कोफ्त तब होती है जब कु.बि. की तरह मनुष्य भी झगड़ने लगते हैं….तब ऐसे में कु.बि. खटकता है :)
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@1098400716385793049.0> निशान्त मिश्र को जेन कथाओं के साथ सामान्य व्यक्तियों के कथन में भी कुछ सहमत होने लायक ढूंढ़ निकालने की महारत मिल गयी है! :)
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कभी कभी मन के सत्य उद्गार व्यक्त कर देना बड़ी मुश्किल में डाल देते हैं :)बहुत ही बिल्लीमय पोस्ट है :))प्रवीण जी ने एक रोचक लेख लिखा है, आपके उत्तम बल्कि चकाचक स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना..
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Welcome back Gyan sahaab !
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मैं किन्ही को जानता हूं जिन्होंने बच्चों के ख़रगोश पाल लिया था फिर बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया. धन्य हैं जानवर पालने वाले.
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"कुत्तों-बिल्लियों पर समग्र मानवीयता से पोस्ट लिखना कहीं बेहतर ब्लॉगिंग है, बनिस्पत मानवीय मामलों पर व्युत्क्रमित प्रकार से!"सहमत.
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एक उम्दा ब्लॉग पोस्ट और साथ ही एक बोनस कविता प्यारी !व्यक्त कर उद्गार मन के -ऐसी प्रबोधात्मक कवितायेँ कितनी कम हो गयीं है न अब …शायद लिखी ही नहीं जा रहींसोनी मोनी के शुभागमन पर परिवार का आनंद समझ सकता हूँ -बधाई !बिल्ली पालन यूरोप में अच्छा खासा प्रचलित है -बिल्ली व्यवहार -वे खुद को घर की मालकिन समझती हैं ( सावधान श्रद्धा जी! )लोग बाग़ घर भले छोड़ दें वे जिस घर में रहने लगती हैं नहीं छोड़ना चाहतीं (कुत्तों से पृथक व्यवहार ,कुत्ते मकान स्वामी की स्वामिभक्ति करते हैं ,बिल्ली घर को समर्पित होती है )यह जानना कैसा लगा ?हैं दोनो बहुत प्यारी ? देवला और पृथु तो अभिभूत होंगे !
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आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।आचार्य जी
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