मधुगिरि के चित्र

यह स्लाइड-शो है मधुगिरि के चित्रों का। पिकासा पर अप-लोड करना, चित्रों पर कैप्शन देना और पोस्ट बनाना काफी उबाऊ काम है। पर मैने पूरा कर ही लिया!

ललकारती-गरियाती पोस्टें लिखना सबसे सरल ब्लॉगिंग है। परिवेश का वैल्यू-बढ़ाती पोस्टें लिखना कठिन, और मोनोटोनी वाला काम कर पोस्ट करना उससे भी कठिन! :-)

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fist चर्चायनललकार छाप ब्लॉगिंग के मध्य कल एक विज्ञान के प्रयोगों पर ब्लॉग देखा श्री दर्शन लाल बावेजा का – यमुना नगर हरियाणा से। वास्तव में यह ब्लॉग, हिन्दी ब्लॉगिंग में आ रही सही विविधता का सूचक है! यहां देखें मच्छर रिपेलेंट लैम्प के बारे में।

काश बावेजा जी जैसे कोई मास्टर उस समय मुझे भी मिले होते जब मैं नेशनल साइंस टैलेण्ट सर्च परीक्षा के लिये प्रयोग की तैयारी कर रहा था – सन् १९७०-७१ में! 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

52 thoughts on “मधुगिरि के चित्र

  1. @प्रवीण पाण्डेय गुड़ के साथ रोटी खाना तो मेरा भी एक प्रिय शगल है, कभी कभी घर मे बनी सब्जी को साईड में रख, गुड से ही रोटी चबा चबा कर खाता हूँ….एकदम स्वादिष्ट लगता है। अपने ऑफिस में एक दिन टिफिन में गाँव वाला लाल गुड़ लेकर गया था। दोपहर में जब खाने बैठा तो जिसने अब तक नहीं चखा था उसने भी रोटी के साथ उसका आनंद लिया था। नतीजा, अगला एक हफ्ता गंवई गुड़ और रोटी के नाम रहा :)

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  2. ब्लॉग विचार विनिमय का एक स्थान है । जितने अधिक विषय होंगे उतना ही सुन्दर । नीम के तेल वाली पोस्ट पढ़कर अब एक प्रयोग होगा और यदि ठीक ठाक चला तो स्वास्थ्य नाशक गुडनाइट रिपेलेन्ट को तड़ीपार घोषित कर दिया जायेगा ।बच्चों को भी ब्लॉग पसन्द आया ।

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  3. @3724281443423012824.0थ्रेशर से तुलना बड़ी ही उपयुक्त है । पर गेहूँ मात्र से ही आनन्द नहीं आयेगा । गेहूँ को साफकर, धोकर, सुखाकर, पीसकर, माड़कर और अन्ततः सेंककर रोटी खाईयेगा, घी और गुड़ के साथ, तब आयेगा असली आनन्द । भूसा भी व्यर्थ नहीं जायेगा, वह भी अन्ततः खाया ही जायेगा ।

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  4. @3724281443423012824.0 >>>सतीश पंचमशायद थ्रेशर्ब्लॉगिंग नौ लोगों को आकर्षित करती होगी तो एक को रिपेल भी करती होगी। पर जहां मामला भाषा के इण्टरनेटीय विकास का है तो थ्रेशर्ब्लॉगिंग महत्वपूर्ण है। बहुत कुछ वैसे जैसे चन्द्रकान्ता सन्तति हिन्दी के लिये किसी जमाने मे रही होगी!

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  5. बढिया चित्र हैं। रही ललकार छाप ब्लॉगिंग की बात कि इस तरह की ब्लॉगिंग काफी सरल है तो इस पर सहमत हूँ। अभी जब ब्लॉगवाणी रूका हुआ है तो पिछले तीस दिनों की पोस्टें सेलेक्ट कर शीर्षक देख रहा था और सब से ज्यादातर वही ललकार टाईप। यहां एक चीज और नोटिस की है कि यदि आपके शीर्षक में ब्लॉगिंग या ब्लॉग जैसा एकाध शब्द आ जाय तो पढ़ने वालो का जमघट लग जायगा लेकिन किसी विषय से संबंधित कोई सहज शीर्षक लगाया जाय तो कम लोग पढ़ते हैं। जाहिर है लोगों को मजमा लगाना पसंद है और मजमें में शामिल हो देखना कि भई क्या हो रहा है। यह एक तरह की झगड़ही ब्लॉगिंग का दौर सा लग रहा है। यदि मुझे ललकारती फुफकारती और मजमा जुटाती पोस्टों की सहज-ब्लॉगिंग के क्रियाकलापों से तुलना करनी हो तो मैं गेहूँ की दंवाई करते थ्रेशर से तुलना करूंगा। ये क्रियाकलाप एक तरह की थ्रेशर ब्लॉगिंग ही हैं। थ्रेशर से भूसा, डंठल आदि को पंखे के जरिए उड़ा कर एक जगह ढेर सा लगा दिया जाता है….भूसे का उंचा डीह बन जाता है और देखने में लगता है कि यही असल सत्व है लेकिन असली चीज तो थ्रेशर के पास वाले हिस्से में होता है जहां कि गेहूँ के दाने अपने वजन के कारण जमा होते जाते हैं। जबकि हल्की चीजें दूर एक जगह जमा होती जाती हैं। सहज ब्लॉग पोस्टों को मैं वहीं गेहूँ के दाने समझूंगा और ढेर लगे, मजमा जुटाती पोस्टों को भूसे का ढेर। बाकि तो भूसे के ढेर का भी अपना महत्व है ही…बिना उसके तो गाय भैंसों का भी गुजारा नहीं हो पाता…. तो ….जरूरत तो भूसे की भी है ही। चलने दिजिए थ्रेशर ब्लॉगिंग….यह भी एक फिनोमिना है :)

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  6. चित्र सुन्दर है |बावेला जी का विज्ञान ब्लॉग देखकर तो मजा आ गया | बहुत बढ़िया व् काम का ब्लॉग है |

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