रविवार भोर ६ बजे

तख्ती पर बैठे पण्डा। जजमानों के इन्तजार में। गंगा तट पर नहाते पुरुष और स्त्रियां। पण्डा के बाईं ओर जमीन पर बैठा मुखारी करता जवाहिर लाल। गंगा बढ़ी हुई हैं। सावन में ही भदईं गंगा का अहसास!

DSC02422

मात्र ९० डिग्री के कोण घूम कर उसी स्थान से लिया यह कोटेश्वर महादेव के मंदिर का चित्र! श्रावण मास की गहमागहमी। शंकर जी पर इतना पानी और दूध चढ़ाया जाता है कि वे जरूर भाग खड़े होते होंगे!

 DSC02423

और कुछ दूर यह आम के ठेले पर बैठा बच्चा। मुझसे पूछता है – का लेब्यअ! मानो आम के अलावा और कुछ भी बेचने को हो ठेले पर!

DSC02424 सांध्य अपडेट - 

रविवार की संझा

सांझ अलसाई सी। छुट्टी का दिन, सो बहुत से लोग और अनेक लुगाईयां। गंगा के किनारे खेलते अनेक बच्चे भी।

Ghat Evening 

कोटेश्वर महादेव मन्दिर के पास घाट की सीढ़ियों पर बहुत सी औरतें बैठीं थीं। कुछ यूं ही और कुछ किसी अनुष्ठान की प्रतीक्षा में। कोने की कोठरी में रहने वाले चुटपुटी महाशय एक मोटर साइकल वाले से उलझ रहे थे।

चुटपुटी एक क्लासिक चरित्र हैं। और भी बहुत से हैं। जिन्दगी जीने बखानने को बस डेढ़ किलोमीटर का दायरा चाहिये। बस! कोई ढ़ंग का लिखने वाला हो तो कोटेश्वर महादेव पर उपन्यास ठेल दे!

Koteshvar Evening


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

45 thoughts on “रविवार भोर ६ बजे

  1. सुन्दर चित्र। शीघ्र स्वास्थ्य लाभ लें और नियमित हलचल बनाए रखें। हम जैसा निष्क्रियपना आप पर सुहाता नहीं है।

    Like

  2. सावन में शिव जी के अभी तक दर्शन नहीं किये थे । आपने मंदिर के ही दर्शन करा दिये । कृतार्थ हुये । जय हो शिव शंभू की । गंगा जी के भी दर्शन हो गये । घर बैठे तीर्थ यात्रा भी हो गयी और पुण्य भी अर्जित कर लिया । इसे कहते हैं बजुर्गों की कृपा । काका स्वास्थ्य का ध्यान रखियेगा । आजकल गंगा में पानी साफ नहीं होता है । नहाने का जोखिम मत उठाईयेगा । प्रणाम ।

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started