बिम्ब, उपमा और न जाने क्या!?


कल सुकुल कहे कि फलानी पोस्ट देखें, उसमें बिम्ब है, उपमा है, साहित्त है, नोक झोंक है।

हम देखे। साहित्त जो है सो ढेर नहीं बुझाता। बुझाता तो ब्लॉग लिखते? बड़ा बड़ा साहित्त – ग्रन्थ लिखते। ढेर पैसा पीटते। पिछलग्गू बनाते!

ऊ पोस्ट में गंगा के पोखरा बनाये। ई में गंगा माई! एक डेढ़ किलोमीटर की गंगा आई हैं अपने हिस्से। उसी को बिछायें, उसी को ओढ़ें। अमृतलाल वेगड़ जी की तरह परकम्मावासी होते तो कहां कहां के लोग गोड़ छूने आते!

यदि होता किन्नर नरेश मैं! पर वह गाने  में क्या – भाग में लिखी है लिट्टी और भावे मलाई-पूड़ी!

कौन बिम्ब उकेरें जी गंगा का। जब उकेरना न आये तो उकेरना-ढेपारना सब एक जैसा।

आदरणीय अमृतलाल वेगड़ की नर्मदामाई पर तीसरी किताब
प्रकाशक मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल; मूल्य ७०/-

मित्र सैयद निशात अली ने भोपाल से वेगड़ जी की किताब मंगवा कर भेज दी है। अब उसे पढ़ने में आनन्द आयेगा। उसको पढ़िये तो लगेगा जैसे नदी बहती है, वैसे बहती है किताब की लेखनी। कहीं कोई अड़पेंच नहीं, कोई खुरपेंच नहीं!  बाकी, ज्यादा पढ़े की मानसिक मथनी से नवनीत नहीं निकलता।  जो निकलता है, उसे क्या बखानना!

नर्मदामाई से कम्पेयर करें तो गंगा बहती नदी नहीं लगतीं – गंवई/कस्बाई अस्पताल के आई.सी.यू. में भर्ती मरीज सी लगती हैं। क्या कहेंगे इस उपमा का? कहेंगे तो कह लें – कोई साहित्त बन्दन थोड़े ही कर रहे हैं!  


अपडेट:
और वेगड़ जी की इसी किताब में भी लिखा मिला –

… नदियों को बेदखल करके उनके घरों में नालों को बसा रहे हैं। आबादी का विस्फोट इस सुन्दर देश को नरक बना रहा है। यह ठीक है कि हमने नर्मदा के प्रति वैसी क्रूरता नहीं दिखाई जैसी गंगा और यमुना के प्रति। (वे दोनों I.C.U. में पड़ी कराह रही हैं और उनमें पानी नहीं रासायनिक घोल बह रहा है।)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “बिम्ब, उपमा और न जाने क्या!?

  1. हमारे कस्बे के दक्खिन में रेलवे लाइन निकलती थी। उसी से कोई एक-दो फर्लांग में धरती से कुछ सोते फूटे पड़े थे। जिन से साफ, शीतल मीठा पानी निकलता रहता था जो कस्बे के पूरब में बहता हुआ आगे उत्तर की ओर निकल जाता था। इसी का नाम था बाणगंगा। बचपन से इसी में नहाए, तैरना सीखा। अब वो बाणगंगा कस्बे से गायब है। आगे दक्खिन में कहीं पाँच सात किलोमीटर पर प्रकट होती है। कस्बे में बाणगंगा एक सड़ता हुआ नाला बन गई है। उस के लिए तो कोई आईसीयू भी नहीं है। यही बाणगंगा पहले पार्वती में, फिर पार्वती चंबल में, चम्बल जमुना में और जमुना गंगा में मिलती है। इस में से बहे पानी का कोई अंश तो इलाहाबाद संगम में जा मिलता होगा और इस की दुर्दशा पर बहाए आँसुओँ का भी।

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  2. नर्मदामाई से कम्पेयर करें तो गंगा बहती नदी नहीं लगतीं – गंवई/कस्बाई अस्पताल के आई.सी.यू. में भर्ती मरीज सी लगती हैं। क्या कहेंगे इस उपमा का? कहेंगे तो कह लें – कोई साहित्त बन्दन थोड़े ही कर रहे हैं! कोई कुछ ही कहे हमें तो ये उपमा एकदम सच्ची और अच्छी लगी । देस की नदियों मे सच ही हमने नाले बसाये हैं इतनी जनता इतने हाथ पर काम के लिये कोई नही । कि गरमियों में मेहनत से नदी ही साप करलें ताकि बारिश के बाद उसमें स्वछ्च सुंदर जल बहे ।

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