अपने आप से झूठ

Devid Law पता नहीं यह यहां स्वीकार या अस्वीकार करने से फर्क पड़ता है मैं झूठ भी बोलता हूं। झूठ बोलना मानव स्वभाव का बहुत स्वाभाविक अंग है। यह इससे भी सही लगता है कि सदाचार की पुस्तकों और पत्रिकाओं में बहुत कुछ बल इस बात पर होता है कि सच बोला जाये। पर मूल बात यह है कि आदमी अपने आप से कितना झूठ बोलता है।

यह मैने प्रॉस्पेक्ट्स मैगजीन के डेविड लॉ पर लिखे इस लेख को पढ़ने के बाद लिखा है। मेरे मन में कई भारतीय चरित्र घूम रहे हैं। विशेषत: राजनीति में!

कौन अपने आप से ज्यादा झूठ बोलता होगा – एक आम आदमी या एक हाई प्रोफाइल राजनेता? मेरे ख्याल में जो ज्यादा बोलता है, जो ज्यादा इमप्रॉम्ट्यू कम्यूनिकेट (impromptu communicate) करता है – वह ज्यादा झूठ बोलता है। और जो ज्यादा झूठ बोलता है, कमोबेश वह अपने आप से भी उतना अधिक झूठ बोलता है!

यह तो कॉमन प्रेक्टिस है, मैने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसी को हानि हो, मैने जान बूझ कर यह नहीं किया, उस दशा में कोई भी व्यक्ति ऐसा ही करता, पहले इस तरह की अवस्था हो ही नहीं सकती थी (तकनीकी विकास न होने से इसके नॉर्म्स ही नहीं बने हैं)” – आदि कुछ तर्क आदमी सेल्फ डिफेंस में बनाता है। पर वह गहरे में जाये तो जान जाता है कि वह सब सही नहीं है।

अपने आप से झूठ बोलना हम स्वीकार करें या न करें, घोर झूठ होता है। झूठ सामान्यत: अप्रिय दशा से बचने के लिये कहा जाता है, और अवचेतन में अपने आप से अपनी ईमेज बचाने के लिये कहा जाता है। सम्भव है नरो वा कुंजरो वा वाला अपने आप से बोला गया युधिष्ठिर का झूठ इसी तरह का रहा हो। और युधिष्ठिर अपने चरित्र के एक स्तर पर उसे सच मानते रहे हों। 

यह टेक्टिकल सच हम यदा कदा बोलते हैं। स्थिति से आत्म दिलासा के साथ निकल लेते हैं कि हमने अपने आप से झूठ नहीं बोला। पर वह होता झूठ ही है। वह जब हस्तामलकवत हमें घेरता है, तब घोर आत्म पीड़ा होती है। कैसे पार पाया जाय उस पीड़ा से। कैसे हो उसका प्रायश्चित?

एक तरीका तो मुझे यह लगता है कि डैमेज कंट्रोल किया जाय। जहां तक उस झूठ की मार पंहुची है, वहां तक उसे स्वीकार से समाप्त किया जाये। उसके प्रभाव से जो प्रभावित हुये हैं, उनसे क्षमा याचना की जाये।

पर उससे तो एक राजनेता की सारी इमारत ध्वस्त हो जायेगी?! नहीं? 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “अपने आप से झूठ

  1. झूठ हमारी आदत मे शुमार हो चुका है . कौन है जो अपने से,अपनो से,समाज से झूठ नही बोलता . राज नेता तो एक प्रतीक बना दिया गया है लेकिन अटकने पर कौन नही जो राजनेताओ की चौखट पर नाक रगडता हो .

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  2. @ भारतीय नागरिक – और जहां अफसर की बात है, मेरा सोचना था कि नौकरी के बाद वे अपने और अपनी सेवा के बारे में साफगोई से काम लेते होंगे अपने संस्मरणों में। वह सही नहीं था, जब मैने पाया कि रिटायरमेण्ट के बाद लिखी पुस्तकों में अपने और विभाग के प्रति हेगियोग्राफी (hagiography) ही लिखी उन्होने! :(

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  3. सम्बन्धों की अंतरंगता झूठ को सहन नहीं कर पाती है। झूठ दूरियाँ बढ़ाता है, आप स्वयं से झूठ बोलेगें, तो आप आप नहीं रहेंगे। नरो वा कुंजरो वा की स्थिति नित्य ही आती है, हम सबके जीवन में।

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  4. @ भारतीय नागरिक – अफसर, व्यापारी, वकील की सार्वजनिक क्षमा याचना की बात से शायद मीडिया उसे सूली पर न टांगे। राजनेता का तो करीयर खत्म हो सकता है! :)

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  5. झूठ बोलना बीमारी भी है, शौक भी, आदत भी और मजबूरी भी. लेकिन आपने सबसे बड़ी चीज अन्तिम पंक्तियों में कह दी. नेताओं के साथ, अफसर, व्यौपारी और उकील सभी आ जायेंगे इस दायरे में. नहीं ?

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