बुढ़िया चपरासी


बुढिया चपरासी
गलियारे में धूप सेंकती बुढ़िया चपरासी

वह जब भी गलियारे में मुझे मिलती है, हाथ जोड़ कर नमस्ते करती है। उसका नाम मैं नहीं जानता। मैने बात करने का कभी यत्न नहीं किया – उसके अभिवादन का उत्तर भर दे देता हूं।

उसे देख कर मुझे अपनी आजी की याद हो आती है। इतने छोटे कद की थीं वे (तनिक भी और छोटी होने पर बौनी मानी जाती)। ऐसे ही सीधे पल्लू की धोती पहनती थीं। ऐसी ही उम्र हो गयी थी उनकी। अंतर यही है कि वे ब्लाउज भी नहीं पहनती थीं, यह स्त्री ब्लाउज पहनती है। अन्यथा यह भी ठेठ मेरे गांव की लगती है।

चपरासी के काम में दक्ष नहीं है यह, ऐसा मुझे बताया गया था। अत: कर्मचारियों के कहने पर मैने एक बार फाइल पर यह भी लिखा था कि इसे यहां की बजाय कहीं और (कहां, मुझे नहीं मालुम) लगाया जाये। यह तो समय के साथ यूं हुआ कि वह इसी जगह बरकरार है, और मुझे इसका कोई दुख नहीं है।

सर्दी में मैने उसे बहुत ज्यादा कपड़ों में नहीं देखा – शायद एक आध सलूका (पूरी बान्ह का ब्लाउज) पहने हो और एक स्वेटर। बहुत ज्यादा कोहरे में दिखी नहीं। पर अब जब धूप निकलती है तो उसे बरामदे में अकेले जमीन पर बैठे धूप सेंकते पाता हूं। अन्य कर्मचारियों के साथ बहुत हिल मिल कर बतियाते भी नहीं देखा उसे। एकाकी महिला। एकाकी वृद्धावस्था। कुछ देर बाद धूप ढ़ल जायेगी तो यह वृद्धा भी यहां से उठ जायेगी।

मैं उससे बात करने में झिझकता हूं – वह पता नहीं सुखी हो या दुखी; पर उसके बारे में ज्यादा जान कर मैं उसके बारे में ज्यादा सोचूंगा और ज्यादा दुखी होऊगा। तय है। एक पूर्णत घर में रहने वाली गांव की महिला को चपरासी की नौकरी करनी पड़े अनुकम्पा के आधार पर तो उसका अर्थ यह है कि उसके घर में उसका कोई जवान लड़का नहीं है जो नौकरी पाता और इस वृद्धा की देखभाल करता।

अपना दुख हम झेल लेते हैं, पर किसी दूसरे का अज्ञात दुख जानने का भय डराता है। यह कैसा भय है बन्धु?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

40 thoughts on “बुढ़िया चपरासी

  1. कुछ तो इतिहास होगा ही
    सांझा करना चाहे न चाहे
    दुनिया का बोझा बढ़ाना चाहे न चाहे

    हो सकता है निदा फाज़ली साहब ने जिन लोगों के लिये लिखा हो वृद्धा उन्ही में से एक हों

    ’अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये’

    उनका तो वे ही बता पायेंगी|

    पर फिर औरों के लिये भी निदा साहब की ही तर्ज पर बातें हैं…

    घर से मंदिर मस्जिद चर्च गुरद्वारे हैं बहुत दूर
    चलो किसी ग़मगीन का दुख ही बाँटा जाये

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  2. ‘उसके अभिवादन का उत्तर भर दे देता हूं’

    शुक्र है… वर्ना बडे अफसर तो उत्तर देना भी शान के खिलाफ़ समझते हैं॥

    परपीड़ा का बोझ भी बडा पीडादायक होता है, इसीलिए तो लोग इससे बचते हैं।

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  3. ज्ञानदत्त जी, आप काफी interact कर रहें हैं पाठकों से, वर्डप्रेस पर आने के बाद.

    फ़िलहाल आपकी सवेंदनशीलता ही है जो आपने इस चपरासी के बारे में देखा सोचा और लिखा, मुझे अपने करीम चा (ऑटोवाले) की याद हो आई http://manojkhatrijaipur.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

    मनोज

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    1. धन्यवाद मनोज जी। इण्टरेक्शन का भी एक फेज है। अगर यह मेरे पर्सोना को सुधारे या नये आयाम देगा तो स्थाई रहेगा। वैसे ही जैसे यह ब्लॉगिंग टिक गई है!

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  4. aap unse baat karen…….aur batayen………..’unko/aapko/humsabko achha lagega………

    pranam.

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  5. पहले ही आपको इतना होमवर्क मिल चुका है कि हमरा चुप रहना ही ठीक है। वैसे भी आपकी सहृदयता और सदाशयता पर अक्सर गर्व सा हो आता है।

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    1. गर्व! और मैं सदा इस भाव से ग्रस्त रहता हूं कि मैं पाठकों के साथ वह गर्मजोशी नहीं दिखा पाता जो जरूरी है!

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  6. ज्ञानदत जी,
    मुझे तो ख़ुशी है कि वह ये नौकरी कर रही है और चार पैसे उसके हाथ में आ रहे हैं….इस उम्र में शायद ही किसी वृद्धा के पास अपने पैसे होते हैं ( पति के पेंशन के रुपये भी, उसके बेटे छीन लेते हैं )

    वो व्यस्त है…पैसे कमा रही है…घर में जो भी हो….भतीजे..दामाद या रिश्तेदार, सब उसकी इज्जत करते होंगे(भले ही पैसे की वजह से ही )…इस से अच्छी वृद्धावस्था शायद नहीं होती होगी किसी की (आपलोग सहृदय अफसर हैं…बीमार पड़ने पर छुट्टियाँ दे ही देते होंगे)

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    1. इस वृद्धा की छुट्टियों का तो पता नहीं, पर एक है जो शादी के मौसम में बैण्डमास्टरी करता है। तब उसे छुट्टी मिले न मिले – गायब उसे होना ही है।
      सरकारी नौकरी में मात्र कर्मठ को छुट्टी मिलने में दिक्कत होती है!

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  7. ऐसी स्थिति में बात न करने का कारण भी उलझन में डाल देता है – हमें हेठी लगती हो या कि उसकी किसी समस्‍या का निदान न करना पड जाए, कहीं हमारी कोई बात उसके सामने न खुल जाए।

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  8. मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि बात करना ज्यादा ठीक रहा है न करने की अपेक्षा.

    आपका ब्लॉग सही अर्थों में ब्लॉग है. आदर्श फादर्श से परे, आस-पास का देखा-सुना.

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    1. संजय जी, आप बतौर ब्लॉग मेरा ब्लॉग सदा पसन्द करते रहे हैं – और यह मुझे ठेलता रहता है ब्लॉगिंग जिन्दा रखने को! :)

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  9. आपका यह पक्ष मुझे बहुत अच्छा लगता है।
    उन से आपका एक बार हाल चाल पूछना आपके लिए भी आत्मसंतोष देगा और उनके लिए वरदान जैसा लगेगा…

    बेबाक और पूरी संवेदनशीलता के साथ दुनिया को महसूस करना एक कवि या कलाकार का आवश्यक तत्व और उसकी अभिव्यक्ति का तरीका उसकी दक्षता है…

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    1. कवि या कलाकार का आवश्यक तत्व जरूर है पद्म सिंह जी। पर सरकारी बाबू/अफसर का अनावश्यक तत्व है – यह तत्व न होता तो मजे में फाइलें निकालते और इंक्रीमेण्ट/डीए की कैल्क्यूलेशन करते! :)

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  10. बचपन में कहानी की किताबों में पढ़ते थे कि भेष/रूप बदलकर भगवान ऐसे जनो से मिल लेते थे और सारी इच्छाएं पूरी कर देते थे| लगता है आजकल वे कुछ ज्यादा ही व्यस्त है| इसलिए मुझे लगता है कि अब हमें ही यह भूमिका निभा लेनी चाहिए|

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    1. उमा दारुजोषित की नाईं। सबहि नचावत राम गोसांईं॥

      जैसा वे करायेंगे, वैसा हम करेंगे ही! रूप धरने को करायेंगे तो वह भी करेंगे! :)

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