शराफत अली नहीं मिले!


पुरानी पोस्ट: शराफत अली ताला चाभी वर्क्समैने शराफत अली को देखा नहीं है। सुलेम सराय/धूमन गंज से उत्तर-मध्य रेलवे के दफ्तर की ओर जो सड़क मुड़ती है, उसपर एक प्राइम लोकेशन पर शराफत अली की औजार पेटी एक मेज नुमा तख्ते पर रखी रहती है। उसकी बगल में टीन का बोर्ड टिका रहता है जिसपरContinue reading “शराफत अली नहीं मिले!”

दो नदियाँ और विनोद-प्वॉइण्ट


घाट की सीढ़ियों से आगे चलो तो दो नदियां दिखती हैं। पहले है रेत की नदी। चमकती सफेद गंगा की रेत। महीन। पैर में चुभती नहीं, पैर धंसता है उसमें। सड़क-पगडंडी में चलने में जो रफ्तार होती है, उसकी आधी से कम हो जाती है इस रेत की नदी में। रफ्तार आधी और मेहनत डब्बल।Continue reading “दो नदियाँ और विनोद-प्वॉइण्ट”

इलाहाबाद में सीवेज-लाइन बिछाने का काम


लोग जहां रहते हों, वहां मल विसर्जन की मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिये। पर यहां यूपोरियन शहर कस्बे से शहर और शहर से मेट्रो/मेगापोली में तब्दील होते जा रहे हैं और जल मल सीधा पास की नदी में सरका कर कर्तव्य की इतिश्री समझ ले रही हैं नगरपालिकायें। लोगों को भी इस में कुछ अनुचित नहींContinue reading “इलाहाबाद में सीवेज-लाइन बिछाने का काम”

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