
मैं अर्थर हेली का उपन्यास डिटेक्टिव पढ़ रहा था। नेट पर नहीं, पुस्तक के रूप में। यह पुस्तक लगभग दस बारह साल पहले खरीदी थी। लुगदी संस्करण, फुटपाथ से। नकली छपाई होने के चलते इसमें कुछ पन्ने धुन्धले हैं – कुछ हिस्सों में। इसी पढ़ने की दिक्कत के कारण इसे पढ़ना मुल्तवी कर दिया था।
[लुगदी (पाइरेटेड) संस्करण वाली पुस्तकें लेना, अपनी माली हालत बेहतर होने के साथ साथ बन्द कर दिया है। पिछले सात आठ साल में ऐसी कोई किताब नहीं खरीदी!]
पर यूं कहें कि हर किताब के पढ़ने के दिन पूर्व नियत होते हैं! इसका नम्बर अब लगना था।
डिटेक्टिव में कई प्रकरण आते हैं जिनमें कोई भी पोलीस अधिकारी किसी व्यक्ति को तहकीकात के लिये हिरासत में लेता है तो सबसे पहले मिराण्डा शब्द/मिराण्डा चेतावनी कहता है। ये शब्द हैं –
“You have the right to remain silent. Anything you say can and will be used against you in a court of law. You have the right to
bespeak to an attorney, and to have an attorney present during any questioning. If you cannot afford a lawyer, one will be provided for you at government expense.” [तुम्हे चुप रहने का अधिकार है। तुम जो भी कहोगे उसे तुम्हारे खिलाफ अदालत में प्रयोग किया जा सकता है। तुम्हें यह अधिकार है कि तुम किसी वकील से बात कर सको, और वकील को अपने सामने बिठा कर प्रश्नों के उत्तर दो। अगर तुम किसी वकील की सेवायें अफोर्ड नहीं कर सकते तो सरकार अपने खर्चे पर तुम्हें उपलब्ध करायेगी।]
जिस व्यक्ति के नाम पर इसे मिराण्डा चेतावनी कहा जाता है, वह मिराण्डा कोई हीरो नहीं था। वह आठवीं कक्षा में स्कूल से निकल जाने वाला अपराधी था जिसे एक अठारह साल की लड़की को अगवा करने और बलात्कार करने के चार्ज में सन 1963 में फीनिक्स में पोलीस ने पकड़ा, तहकीकात की और उसके कबूलनामे के आधार पर मुकदमा चलाया। उसे बीस साल कैद की सजा हुई। पर बाद में अर्नेस्टो मिराण्डा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर दरख्वास्त दी कि मिराण्डा को कभी यह नहीं बताया गया था कि उसे पुलीस तहकीकात में चुप रहने का अधिकार है।
मिराण्डा को सुप्रीम कोर्ट ने सन 1966 में एक शानदार फैसले (5-4 जजों का फैसला था यह) में यह कहा कि किसी भी व्यक्ति को तहकीकात में चुप रहने का अधिकार है। बिना उसे उसका यह अधिकार स्पष्ट किये पुलीस उसके खिलाफ अदालती कार्रवाई में उसके कथन का प्रयोग नहीं कर सकती। इस लिये मिराण्डा बरी हो गया।
यह अलग बात है कि अर्नेस्टो मिराण्डा पर पुन: मुकदमा चला और इस बार (उसके बयान की अनुपस्थिति में) उसकी महिला मित्र की गवाही तथा अन्य सबूतों के आधार पर उसे 11 साल की सजा हुई। कुल मिला कर व्यक्ति के मानवाधिकार की भी रक्षा हुई और कानून का शासन भी चला। न्याय भी हुआ। एक बलात्कार और अगवा करने के मामले में भारत में पोलीस न्याय के लिये इतनी जद्दोजहद करेगी? मुझे नहीं लगता!
अर्थर हेली के उपन्यास का थ्रिल एक तरफ (उपन्यास का कथानक कुछ और है और उसमें अर्नेस्टो मिराण्डा का जिक्र भी नहीं है) , मैं यह सोचने को बाध्य हुआ कि मिराण्डा चेतावनी के उलट भारत में पुलीस तहकीकात कितनी वीभत्स और अश्लील होती है। यहां तो अमूमन तहकीकात की बजाय नकली तहकीकात काम आती है। व्यक्ति के फर्जी दस्तखत भी हो जाते हैं। और जब तहकीकात होती भी है तो किस शारीरिक/मानसिक यातना से व्यक्ति गुजरता है – वह पत्र पत्रिकाओं में आम रिपोर्टिंग है। आम धारणा है कि तहकीकात की शुरुआत थर्ड डिग्री तरीकों से होती है। (यही कारण है कि हर कोई पोलीस से दूर ही रहना चाहता है।) यह सब इस तर्क के साथ होता है कि हार्डकोर अपराधी से कबूलवाने का और कोई तरीका नहीं है। या फिर पोलीस के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि मामला सरलता से सुलझाया जा सके।
इसके उलट, अनेक वास्तविक अपराधी, आतंकवादी, हत्यारे, जिनके पास रसूख है या जो राजनैतिक रूप से “सही” हैं, वे आराम से हैं।

अभी हाल ही में रिलीज़ फिल्म ‘शैतान’ का एक द्दृश्य है (जो निश्चय ही सत्य पर आधारित होगा)
पुलिस द्वारा पकडे जाने पर एक लड़का कहता है…”मैं अपने वकील के सामने ही कुछ बोलूँगा”
इन्स्पेक्टर उसे दो झापड़ लगाता है…और कहता है..” बताता है या नहीं…नहीं तो यही तेरा एन्काउन्टर कर दूंगा…किसी को पता भी नहीं चलेगा ”
भारतीय पुलिस की यही असलियत है.
LikeLike
मिराण्डा वार्निंग का भारतीय अरूप – एंकाउण्टर वार्निंग!
LikeLike
लुगदी सही शब्द लगा. शेष मौन रहेंगे. और एक पूर्व चेतावनी, भविष्य में यह पोस्ट आपको ‘पाइरेटेड’ किताबें खरीदने का अपराधी साबित करने में उपयोग की जा सकती है. :)
LikeLike
ओह, क्या करें। अब तो इतनी टिप्पणियां भी आ गयी हैं, पोस्ट डिलीट करना भी ठीक नहीं होगा! :sad:
LikeLike
तब तो चुप रहने के अधिकार का सबसे ज्यादा इस्तेमाल यदि किसी शख्स ने किया होगा तो वो हमारे प्रधानमंत्री जी हो सकते हैं। जब पूरा देश हिलोर मार रहा था विभिन्न भ्रष्टाचारों, विभिन्न घटनाक्रमों – आंदोलनों के बीच तब भी प्रधानमंत्री जी चुप रहे। और हम हैं कि नाहक उनके चुप रहने के अधिकार पर छींटायन करते रहे। हम लोगों से बड़ा अपराध हुआ है। छमा प.मं. जी छमा।
आज सुना है कि चुनिंदा संपादकों के बीच अपने बोलने के अधिकार का प्रयोग करने वाले हैं।
LikeLike
नरसिन्हा गारू भी इस अधिकार का भरपूर प्रयोग करते थे!
LikeLike
इससे साबित होता है कि चुप रहने पर प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलती है :)
LikeLike
बहुत संभव है यही सब देखकर मनोहर श्याम जोशी ने चुप रहने की बांकी अदा के बारे में लिखा था –
रहिमन सिट सायलेण्टली वाचिंग वर्ल्डली वेज,
बयटर-मण्ट व्हैन कम्स दैन मेकिंग नेबर डिलेज :)
LikeLike
सही कह रहे हैं और जूते खानें वाले को जल्दी ही मंत्रीपद नवाज़ा जाता है।
LikeLike
द्विभाषी दोहे/चौपाई का अलग आनन्द है जो यूपोरियन महसूस कर सकता है। म.श्या.जो. ने ही शायद लिखा था नेताजी कहिन में –
एण्टर सिटिहिं डू एवरी थिंगा। पुटिंग हार्ट कोशलपुर किंगा॥
LikeLike
:)
LikeLike
ज्ञानभाई जरा इस परिस्थिति पर भी गौर करें…http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2011/06/110618_dog_death_fma.shtml
LikeLike
अब देखिये न, कुत्ते ने अपने मौन रहने के अधिकार का प्रयोग किया और धार्मिक अदालत से बच निकला। अगर भौकने के अधिकार का प्रयोग करता तो भाग क्या पाता, पैरोल भी न मिलती बाद के अच्छे आचरण पर! :lol:
LikeLike
एक जिज्ञासा –
ये दिल्ली के मिरांडा हाउस के नामकरण का क्या राज है ? ऐसे ही दिमाग में कौंध आया !
LikeLike
सर मॉरिस ग्वायर ने नाम दिया मिराण्डा हाउस। शायद अपनी लड़की के नाम पर। या वैसे ही। वे अब नहीं हैं – सो पता नहीं किससे पता किया जाये! :lol:
LikeLike
मिरांडा चेतावनी के बारे में जानकारी पहली बार मिली -मैं अक्सर इस वाक्य का मतलब नहीं समझ पाता था कि,”आपको आगाह किया जाता है कि आपका बयान आपके विरुद्ध भी इस्तेमाल किया जा सकता है
right to be speak to an attorney -kindly correct the sentence by deleting “be” which perhaps has inadvertently been inserted here …
LikeLike
यह स्टेण्डर्ड भाषा है जो मैने कॉपी की है। अनुवाद भर मेरा है।
LikeLike
कानून की बारीकियां और पेचीदगियां, बस सम्मान करने को मन होता है.
लुगदी और पायरेटेड को समानार्थी बनाना जमा नहीं. लुगदी- रद्दी के भाव या कागज की कीमत पर बिक जाने वाले साहित्य के लिए प्रचलित है जबकि पायरेसी किसी साहित्यिक-बौद्धिक रचना (पुस्तक, फिल्म आदि) को चोरी से अनधिकृत प्रकाशित कर लिए जाने के लिए प्रयुक्त होता है. हां, दोनों का ठौर-ठिकाना फुटपाथ ही होता है. आप भाषा और शब्दों को ले कर सजग रहते हैं, इसलिए ऐसी टिप्पणी करता हूं, जिस पर पहली स्वाभाविक और आम प्रतिक्रिया बुरा मानना होती है. यदि ऐसा हो तो आपकी ओर से इसे हटा देने का और मेरी ओर से खेद व्यक्त का निवेदन well in advance, sir, please.
LikeLike
मैं भी बहुत संतुष्ट नहीं था लुगदी शब्द से। पर पल्प लिटरेचर जैसे रद्दी कागज पर छपता है वैसे ही ये पाइरेटेड किताबें छपती हैं। इस लिये प्रयोग किया।
शब्दों के साथ बहुत पहले से लिबर्टी लेता रहा हूं, और मित्रगण टोकते रहे हैं। बुरा नहीं लगता। पर दरेरा दे कर लिखने की आदत बन गयी है जरूर! आगे भी रहेगी, काहे कि शब्द ज्ञान में हाथ तंग है!
LikeLike
आप को आश्चर्य होगा कि चुप रहने के अधिकार के बारे में यहाँ वकीलों में से 90% को कुछ पता नहीं है। वे सिर्फ ये जानते हैं कि दं.प्र.सं. की धारा 315 के अंतर्गत अभियुक्त भी एक सक्षम साक्षी हो सकता है। लेकिन उस के बयान उस के लिखित आवेदन पर मजिस्ट्रेट या जज की अनुमति मिलने पर ही कराए जा सकते हैं। वस्तुतः यह चुप रहने के अधिकार की अभिव्यक्ति है। अक्सर वकील इस का गलत उपयोग करते हैं।
चुप रहने का अधिकार वहीं उपयोग में लिया जा सकता है जहाँ किसी व्यक्ति पर लगाए आरोप पर उसे सजा दी जा सकती हो। अन्य न्यायिक और अर्ध न्यायिक कार्यवाहियों में नहीं। दीवानी मामलों में तो परिप्रश्नावली प्रस्तुत करने औऱ उस का तर्कसंगत उत्तर पाने का अधिकार है जिस का उत्तर ठीक से न मिलने पर उत्तरदाता के विरुद्ध अनुमान किया जा सकता है और किसी भी बिन्दु/तथ्य को प्रमाणित करने का भार विरोधी पक्षकार पर स्थानांतरित किया जा सकता है।
LikeLike
धन्यवाद। यहां कथित अपराधी की तहकीकात का मामला है और चुप रहने का अधिकार लागू होता है – तहकीकात उसी के खिलाफ जो होनी है।
LikeLike
यह चुप रहने का अधिकार अन्य क्षेत्रों में भी प्रचारित हो।
LikeLike
अन्य क्षेत्रों में है तो, पर कोई इस्तेमाल नहीं करता। सब बोलते हैं, सुनता कोई नहीं! :lol:
LikeLike
अरे हम सुन रहे हैं न जी! आप कहते चलिये! :)
LikeLike
पहले पुलिस का हाल इतना बुरा फिर न्याय व्यवस्था भ्रष्टाचार और अक्षमता से भरी। देश का सबसे बडा वकील खुल्लमखुल्ला लूपहोल की बात करता है और औसत वकील की दलील तो औसत जज ही समझ सकता है। उस पर तारीख पर तारीख, पिछले निर्णयों के आधार पर माखी पर माखी …. पश्चिम की व्यवस्था और संतोष से सीखने के लिये बहुत कुछ है लेकिन हमारे नव-अराजकतावादी इसका उलटा ही चाहते हैं।
LikeLike
हम बनाना रिपब्लिक होते तो कोई बात न थी। पर हम एक ओर दुनियाँ को लीड करने के सपने देखते हैं और दूसरी ओर लीद रहे हैं! :sad:
LikeLike