विल्वपत्र की टेरी तोड़ रही थीं कोटेश्वर महादेव की मालिनें। एक बकरी उनसे स्पर्धा कर रही थी विल्वपत्र और गेंदे के फूल चबाने में। पर स्पर्धा इतनी विकट नहीं थी कि बकरी पर कोई डण्डा पड़ता। हटाने पर वह एक स्थान से दूसरे पर जा कर कुछ न कुछ चबाने को पा जा रही थी। कुल मिला कर कोटेश्वर महादेव पर समरसता का माहौल था; जो सामान्यत: पाया जाता है। शिव जी और गौरा पार्वती की पूजा करने को लोग थे – न कम न ज्यादा।
यह कार्तिक अमावस की सांझ थी। रात में दीपावली का पर्व मनने जा रहा है।

घाट पर दो वीर दिखे। हाला उनके उदर में इतना नहीं गई थी कि लोट जाते रेती में। पर इतना जरूर थी कि पग डगमग चल रहे थे। पास में खड़ी नाव पर बैठे व्यक्ति से शायद हाला को ले कर टिर्रपिर्र हो गयी थी। जाते जाते वे बोल रहे थे – अरे न देई क होई त जिनि द भाई, पर हमहू बिरादरी के हैं। हमार नाम लिखि लो – चिण्टू मल्लाह (अरे शराब न देनी हो तो न दो भाई; पर हम भी बिरादरी के हैं। हमारा नाम लिख लो – चिण्टू मल्लाह)। तब तक दूसरे ने भी सम्पुट लगाया – खुशीराम मल्लाह।

चिण्टू और खुशीराम लटपटाते चले गये घाट से मन्दिर की ओर। नाव वाले ने हाथ हिलाया, मानो कह रहा हो – जाओ जाओ!

एक महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा का विसर्जन किया गया रहा होगा। पर प्रतिमा पूरी विसर्जित कहां हुई?! सीधी खड़ी थी। सम्भवत: महिषासुर वाला अंश था वह। गंगाजी में पानी उतर गया था। अब यह प्रतिमा एक मॉन्यूमेण्ट की तरह काफी समय तक किनारे पर बनी रहेगी। रात में कोई अनजाना घाट पर चला जाये तो प्रतिमा देख भय-हदस के मारे उसका बुरा हाल हो जाये! आजकल भक्त लोग पूजा और विसर्जन में 20-20 मैच सा खेलते हैं। गंगाघाट की भी ऐसी तैसी करते हैं और धर्म की भी!
साझ होने को थी। दो औरतें बीज रोप रही थीं कछार में। आदमी होते तो मैं बातचीत करता, पर देखा कि थोड़ी ही देर वें वे अपना आज का काम निपटा कर बस्ती की तरफ लौट रही थीं। शाम को दिवाली भी मनायेंगी, जरूर!

कछार में सीधी सपाट रेतीली जमीन है। खेती करने को जमीन बांटने के लिये कोई चिन्ह नहीं हैं। लिहाजा लोग चिन्ह गाड़ते हैं। कई चिन्ह तो कलात्मक बन जाते हैं!

एक नाव के साइड पर लिखा था – “जिन्दगी के साथ भी, जिन्दगी के बाद भी; जीवन बीमा”। जो लिखा था, वह नाव के जीते जी बदरंग हो चला था, जीवन बीमा की तरह। नाव में एक पॉलीथीन थी और एक थर्मोकोल का कण्टेनर। लगता था कि नाव मदिरा उद्योग की लॉजिस्टिक का अंग थी, जो बदरंग होने पर भी लोगों के जीवन को रंग प्रदान करती है। नाव, मदिरा, जीवन बीमा, गंगा नदी – सब गड्डमड्ड कोलाज है! सब बिखरा है। यह तो आप पर है कि आप अपने कैमरे या शब्दों में कैसे उतार पाते हैं।
दो-तीन नौजवान मिले। एक छोटी खांची में दोने, दिये और तेल बाती ले कर गंगा तट पर जा रहे थे। पूछने पर बताया कि दीपावली की सन्ध्या में दीपदान का कार्यक्रम है। बस्ती से दूर, वीरान गंगातट पर ये जवान इस तरह का काम कर रहे हैं – देख कर बहुत अच्छा लगा। रात घिरेगी तो बहते दिये कितने मनमोहक लगेंगे। कितनी दूर तक जायेंगे – दारागंज या संगम तक जायेंगे ही!

वापसी में बस्ती के ऊपर सूर्यास्त देखने को मिला। कोटेश्वर महादेव के पीछे से दीख रहा था – सूरज डूब रहे थे। बहुत मनोरम लगा। धुन्धलके में मोबाइल का कैमरा तो वास्तविक मनोरमता का अंशमात्र भी न संजो पाया। क्या बतायें, पत्नीजी बढ़िया कैमरा खरीदने के लिये मुद्रा ही नहीं अलॉकेट करतीं! 😆
अमावस की सांझ गंगा किनारे हो आया। रात में दीपावली मनेगी।
मेरी अम्मा बताती हैं कि जब मैं पैदा हुआ था तो भी कार्तिक अमावस का दिन था। एक तरह से मेरा जन्मदिन।
जय कोटेश्वर महादेव!
मुबारक, शुभकामनाएं, बधाई…
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चिंटू मल्लाह को यदि विजय मल्लया से मिलाया जाता तो भी वह यही कहता – देना हो तो दो वरना मेरा नाम लिख लो….हम भी आप ही के ….. 🙂
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अच्छा, असली नाम विजय मल्लाह है!
हमें मलुमै न था! 😆
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जन्मदिन की शुभकामनायें।
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जन्मदिन की बधाई ,और दीपावली हेतु हार्दिक शुभ कामनायें !
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‘पत्नीजी बढ़िया कैमरा खरीदने के लिये मुद्रा ही नहीं अलॉकेट करतीं’
– यह पोस्ट पढ़वा दीजिये उन्हें ,फृौरन ‘हाँ’ कर देंगी -रिपोर्टिंग है ही इतनी बढ़िया !
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शायद अब समय आ गया है कि विसर्जन की प्रथा को विसर्जित किया जाय। इससे दो लाभ होंगे। एक तो प्रदूषण से बचा जा सकेगा और दूसरा यह कि हमारे देवी-देवताओं की अस्मिता भी बच जाएगी॥
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कछार भ्रमण-जीवन दर्शन।
दीपावली पर्व और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें।
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अमावस की सांझ का यह आँखों देखा हाल सुनाने के लिए आपका बेहद शुक्रिया! चिंटू और खुशीराम जैसे लोग हमारे यहाँ भी बहुत है, जो हर पर्व-त्यौहार पर हाला गटककर हुङदंग मचाने के लिए काफी मशहूर हैं। जहाँ तक मैं देख रहा हूँ, तस्वीरें बुरी नहीं है। बाकी कैमरा बदलने के बारे में मेरे और सिदार्थ जी के विचार एक हैं।
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घाट की हलचल का आँखों देखा हाल बहुत प्रभावी रहा. जन्म दिवस पर बोरों में भर भर बधाईयाँ. (थोड़ी बासी हो गयी)!
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बासी नहीं जी, ये तो बोनस हैं। अंग्रेजी महीने से जन्म दिन और है। सरकारी रिकार्ड में तीसरा है! 🙂
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यह कोलॉजी पोस्ट बहुत मनभावन है। भाभी जी ‘बढ़िया कैमरा खरीदने के लिये मुद्रा ही नहीं अलॉकेट करतीं’ क्योंकि यह कैमरा भी अच्छा भला काम कर रहा है। गैरजरूरी मदों में व्यय का प्राविधान न करना कुशल वित्तीय प्रबंधन का महत्वपूर्ण सूत्र है।
दीपावली की पूर्व संध्या और जन्मदिन का संयोग मुबारक हो। आप शतायु हों और हमें गंगाजी के तट से विविध दर्शन कराते रहें व दार्शनिक सूक्ति वाक्य पिरोते रहें यही कामना है। ढेरों शुभकामनाएँ।
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पोस्ट हमारी है, मस्का आप भाभीजी को लगा रहे हैं। ये ठीक नहीं है! 😆
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दीपावली की ढेरों शुभकामनायें और साथ ही जन्म दिन की बधाई
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