घाट पर सनिचरा नहीं था

आज सवेरे सब यथावत था। सूरज भी समय पर उगे। घूमने वाले भी थे। घाट पर गंगाजी में पानी कुछ बढ़ा हुआ था। वह भैंसासुर की अर्ध-विसर्जित प्रतिमा पानी बढ़ने के कारण पानी में लोट गई थी।

किनारे पर पण्डा यथावत संकल्प करा रहे थे कार्तिक मास का। पास में सनीचरा रहता था कऊड़ा जलाये। आज वह नहीं था। एक और आदमी कऊड़ा जलाये था।

सनीचरा के सृजक नहीं रहे। “रागदरबारी” सूना है। सनीचरा भी जाने कहां गया आज!

आज सनीचरा नहीं था।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

23 thoughts on “घाट पर सनिचरा नहीं था

  1. शनीचरा प्रधान: स: एमपीयो: बन गईल है।
    आजकल ओकर नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पदकंजारूणम होत बाटे।

    Like

  2. सनीचरा से उसके सृजक की स्मृति जुड़ जाना अनिवार्य ही तो था …
    श्रद्धांजलि !

    Like

    1. भेद तो शायद कोई नहीं है, यह तो मन है जो अनुपस्थिति को शुक्ल जी से जोड़ कर देख रहा है।
      मन ऐसे ही जोड़ता है घटनाओं को।

      Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading