मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
श्रीयुत श्रीप्रकाश मेरे ब्लॉग के नियमित पाठक हैं। जब वे (सन 2009 में) हमारे सदस्य यातायात (रेलवे के यातायात सेवा के शीर्षस्थ अधिकारी) हुआ करते थे, तब से वे लोगों को मेरे ब्लॉग के बारे में बताते रहे हैं। उस समय वे सक्रिय रूप से भारतीय रेलवे यातायात सेवा की साइट पर अधिकारियों को सम्बोधित करती पोस्टें लिखा करते थे। तब वे मुझसे कहा करते थे – मैने तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा, तुम मेरा ब्लॉग (अधिकारियों को सम्बोधन) पढ़ते हो या नहीं? उनकी एक पोस्ट का अंश अपने ब्लॉग पर मैने फरवरी’09 में प्रस्तुत भी किया था।
अभी कुछ दिन पहले श्रीप्रकाश जी इलाहाबाद आये थे। तब उन्होने बताया कि मेरा यह वर्डप्रेस का ब्लॉग (halchal.org) वे सप्ताह में एक बार खोल कर जो भी नई पोस्टें होती हैं, पढ़ लेते हैं। शायद उनको ब्लॉग की फीड सब्स्क्राइब करने में दिक्कत आई थी।
मैने उन्हे ब्लॉग की फीड भेजना प्रारम्भ कर दिया है। इसी बहाने ई-मेल से उनसे सम्पर्क हुआ। मेल में उन्होने अपने विचार व्यक्त किये –
श्रीयुत श्रीप्रकाश
तुम्हारा ब्लॉग पढ़ने का मेरा एक कारण (और बहुत से कारण हैं) यह है कि इसके माध्यम से मैं गंगा नदी से अपने जुड़ाव को पुन: महसूस करता हूं। मैं बहुधा अपने बाबाजी के साथ होता था, जब वे गांव से चार किलोमीटर दूर बहती गंगाजी में स्नान के लिये जाते थे।
इलाहाबाद में भी,पचास के दशक के उत्तरार्ध और साठ के दशक के पूर्वार्ध में गंगाजी स्टेनली रोड से करीब एक किलोमीटर दूर (म्यूराबाद के समीप) बहती थीं।[1] हम मम्फोर्डगंज में रहते थे और तब भी मैं अपने बाबाजी के साथ गंगा तट पर जाया करता था।
जब मैं अपने बच्चों को बताता हूं कि गंगाजी का पानी इतना साफ था कि उसमें हम मछलियों और कछुओं को दाना खिलाया करते थे; तब उनके चेहरों पर अविश्वास के भाव साफ दीखते हैं।
यह अलग बात है कि मैने गंगा स्नान नहीं किया (सिवाय हरिद्वार के, जब मैने सन 1972 में इलाहाबाद छोड़ा)।
तुम्हारा ब्लॉग मुझे इलाहाबाद के अपने बचपन की याद दिलाता है।
इलाहाबाद - म्यूराबाद, शिवकुटी, दारागंज और गंगा नदी।
पचास-साठ के दशक में गंगा नदी को देखने समझने वाले सज्जन जब मेरे ब्लॉग की प्रशंसा करें तब एक अलग तरह की सुखद अनुभूति होती है, ब्लॉग की सार्थकता में एक नया आयाम जुड़ जाता है।
मैने श्रीप्रकाश जी से अनुरोध किया कि अगर वे 50-60 के दशक की अपनी इलाहाबाद/गंगा विषयक यादों से मेरे पाठकों को परिचित करा सके तो बहुत अच्छा होगा। मेल से उन्होने मुझे उस समय की गंगा नदी के प्रवाह/मार्ग के बारे में यह सामग्री दी –
कम ही लोग जानते होंगे कि गंगा म्यूराबाद और बेली गांव (सप्रू अपताल के पीछे) बहा करती थी। चांदमारी घाट स्टेनली रोड से एक किलोमीटर से ज्यादा दूर न रहा होगा। नदी लगभग स्टेनली रोड के समान्तर बहती थी और उसके आगे रसूलाबाद होते हुये शिवकुटी पंहुचती थी। गंगाजी की मुख्य धारा इसी प्रकार से थी और इसी लिये चांदमारी घाट (सन् ६२ में आर्मी केण्टोनमेण्ट था और वहां चांदमारी हुआ करती थी) बना था।
स्टेनली रोड के दोनो ओर का क्षेत्र बैरीकेड किया हुआ था और सेना के नियमित स्थापत्य साठ के दशक में बने थे। सन् 1971की लड़ाई के दौरान पकड़े गये पाकिस्तानी सैनिक यहां बन्दी बना कर रखे गये थे। इस बैरीकेडिंग के कारण स्टेनली रोड से गंगा नदी तक जाना रसूलाबाद के पहले सम्भव नही था।
सन् 1967मे ममफोर्डगंज में बाढ़ का बड़ा असर पड़ा। बाढ़ का पानी लाजपत राय रोड के पास से बहते नाले से आया और म्यूराबाद, बेली तथा ममफोर्डगंज तीन-चार दिन तक पानी से भरे रहे। ये पहली और शायद अन्तिम बाढ़ थी जो ममफोर्डगंज तक आई[2]। अब तो नाले पर बाढ़ नियन्त्रण व्यवस्था बन गई है।
गंगाजी अपना मार्ग बदलती रही हैं और यही कारण है कि दोनो ओर कछारी जमीन का विस्तार है। सन् १९६६ के कुम्भ के दौरान नदी लगभग दारागंज बांध के पास से बहती थी। इस लिये मेला नदी के दोनो ओर लगा था। उस साल करीब आठ पॉण्टून पुल थे गंगा पर कुम्भ मेले के दौरान।
नदी के मार्ग बदलने का साल-दर-साल का रिकॉर्ड कहीं न कहीं रखा गया होगा। एक साल में ही कभी कभी नदी अपना मार्ग कई बार बदल लेती हैं। तुम्हें इस विषय में और जानकारी वहां के किसी बढ़े बूढ़े से मिल सकेगी। शायद रसूलाबाद मरघट का पुजारी कुछ बता पाये, यद्यपि वह उम्र में मुझसे छोटा है। उसकी मां अपने जमाने में बहुत ख्याति अर्जित कर चुकी थीं और शायद इस पेशे में वह अकेली महिला थी। वे (महराजिन बुआ) रसूलाबाद घाट पर अन्त्येष्टि का पचास साल तक इन्तजाम करती रही।
श्रीयुत श्रीप्रकाश जी अभी अपने अन्य कार्यों (जिनमें पुस्तकें लिखना भी शामिल है) में व्यस्त हैं। उनसे पुरानी गंगा/इलाहाबाद विषयक यादें साक्षात्कार के माध्यम से लेनी होंगी, जब भी वे इलाहाबाद आयें!
चालीस-पचास साल पहले की बातें सुनने, जानने और ब्लॉग पर प्रस्तुत करने का औत्सुक्य जग गया है मेरे मन में।
[1] गूगल मैप में देखने पर लगता है कि 60 के दशक से गंगा तीन-चार किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में हट गई हैं इलाहाबाद से।
[2] श्रीप्रकाश जी ने बताया कि शायद 1978 की बाढ़ में भी ममफोर्डगंज में पानी आ गया था, पर वे इलाहाबाद छोड़ सन 1971 में चुके थे, और यह बाढ़ उनके समय में नहीं थी।
आज के समय गंगा किनारे जाते लोग। वैसे ही हैं जैसे पचास-साठ के दशक में रहे होंगे?!
Exploring village life.
Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges.
Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP.
Blog: https://gyandutt.com/
Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb
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23 thoughts on ““तुम्हारा ब्लॉग पढ़ने का कारण””
गंगे तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ, जल, थल मे,
पीयूष श्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में
सर! कहीं का कहीं कट, पेस्ट कर दिया, अभी सीख रहा हूं !
कभी गंगा भारद्वाज आश्रम (वर्तमान बालसन के करीब ) बहती थीं ….ऐसा संकेत पुराकथाओं में मिलता है…
१९७८ की बाढ़ तो प्रलयंकारी थी ..अलाल्ह पुर में नावें चल रही थीं और पानी ममफोर्डगंज तक आने को व्याकुल था
गंगा के प्रति लगाव का भी एक रहस्यात्मक पहलू लगता है ,मुझे पता नहीं क्यों नदियों से विकर्षण सा होता है !
मैं तो निश्चय रूप से केवल गंगा रिपोर्टिंग के लिए नहीं आता. मैं तो कोहड़ा, भिन्डी, नेनुआ, अरविन्द के खेत, बकरी और गंगा में बहते नारियल में ज्ञान ढूंढने आता हूँ !
गंगा को करीब से देखना हुआ लेकिन पटना में वो विशाल जलराशि गंगा कम मानसून का पानी ज्यादा था. मुझे पता है गर्मीं में १०% से भी कम रह जाती होंगी.
गंगे तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ, जल, थल मे,
पीयूष श्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में
सर! कहीं का कहीं कट, पेस्ट कर दिया, अभी सीख रहा हूं !
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स्वागत!
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आपका ब्लॉग धीरे-धीरे गंगाजी के शोधार्थियों के लिए संदर्भ ग्रंथ की शक्ल लेता जा रहा है। यह हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक विशिष्ट उपलब्धि है। जारी रखिए।
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कभी गंगा भारद्वाज आश्रम (वर्तमान बालसन के करीब ) बहती थीं ….ऐसा संकेत पुराकथाओं में मिलता है…
१९७८ की बाढ़ तो प्रलयंकारी थी ..अलाल्ह पुर में नावें चल रही थीं और पानी ममफोर्डगंज तक आने को व्याकुल था
गंगा के प्रति लगाव का भी एक रहस्यात्मक पहलू लगता है ,मुझे पता नहीं क्यों नदियों से विकर्षण सा होता है !
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विकर्षण भी एक प्रकार का आकर्षण ही है!
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Here are more info about Ganges river.
http://en.wikipedia.org/wiki/Ganges
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मैं तो निश्चय रूप से केवल गंगा रिपोर्टिंग के लिए नहीं आता. मैं तो कोहड़ा, भिन्डी, नेनुआ, अरविन्द के खेत, बकरी और गंगा में बहते नारियल में ज्ञान ढूंढने आता हूँ !
गंगा को करीब से देखना हुआ लेकिन पटना में वो विशाल जलराशि गंगा कम मानसून का पानी ज्यादा था. मुझे पता है गर्मीं में १०% से भी कम रह जाती होंगी.
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