ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। भदोही (पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारत) में ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।
आज सवेरे सब यथावत था। सूरज भी समय पर उगे। घूमने वाले भी थे। घाट पर गंगाजी में पानी कुछ बढ़ा हुआ था। वह भैंसासुर की अर्ध-विसर्जित प्रतिमा पानी बढ़ने के कारण पानी में लोट गई थी।
किनारे पर पण्डा यथावत संकल्प करा रहे थे कार्तिक मास का। पास में सनीचरा रहता था कऊड़ा जलाये। आज वह नहीं था। एक और आदमी कऊड़ा जलाये था।
सनीचरा के सृजक नहीं रहे। “रागदरबारी” सूना है। सनीचरा भी जाने कहां गया आज!
Exploring village life.
Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges.
Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP.
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23 thoughts on “घाट पर सनिचरा नहीं था”
शनीचरा प्रधान: स: एमपीयो: बन गईल है।
आजकल ओकर नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पदकंजारूणम होत बाटे।
शनीचरा प्रधान: स: एमपीयो: बन गईल है।
आजकल ओकर नवकंज लोचन कंजमुख कर कंज पदकंजारूणम होत बाटे।
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दोनों की ही अनुपस्थिति दुख दे रही है ……
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शुक्ल जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
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श्रीलाळ शुक्ल जी को श्रद्धांजलि॥
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ओह!!
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सनीचरा से उसके सृजक की स्मृति जुड़ जाना अनिवार्य ही तो था …
श्रद्धांजलि !
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sahitya ke aakash se……………..ek chmakta sitara
‘Raagdarbari’ ke rachyita nahi rahe
vinamra shradhanjali
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विनम्र श्रद्धांजलि।
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विनम्र श्रद्धांजलि.
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uske anupasthiti ka hetu……kya pata kya bhed ho……….
pranam.
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भेद तो शायद कोई नहीं है, यह तो मन है जो अनुपस्थिति को शुक्ल जी से जोड़ कर देख रहा है।
मन ऐसे ही जोड़ता है घटनाओं को।
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sayad yahi bhaw the jo na khulne se ‘bhed’ laga ho…..
pranam
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