कुहासे में भटकन

आज सवेरे घना कोहरा था। सवेरे घर से निकलना नहीं हो पाया। सवेरे साढ़े छ-पौने सात बजे से मुझे उत्तर मध्य रेलवे की मालगाड़ी परिचालन की स्थिति लेनी प्रारम्भ करनी होती है और यह क्रम सवेरे साढ़े नौ बजे तक चलता है। आज यह बताया गया कि पूरा जोन – गाजियाबाद से मुगलसराय और तुगलकाबाद से बीना तक रात बारह बजे से कोहरे में लिप्त है। ऐसे में सुरक्षा के मद्देनजर गाड़ियों की रफ्तार कम कर दी जाती है और एक गाड़ी को रोक कर दूसरी को आगे नहीं बढ़ाया जाता। लिहाजा सब कुछ धीमा हो जाता है। जब गाड़ियां धीमे चलें तो मालगाड़ियों के चालक अपने गन्तव्य तक नहीं पंहुचा पाते। अत: बीच रास्ते में दूसरा चालक भेजने की व्यवस्था करनी पड़ती है। अतिरिक्त सिरदर्द!

शिवकुटी का चित्र गंगाजी के कछार से। सवेरे सवा दस बजे भी कोहरा पटाया नहीं था।

इन सब से निपटने के बाद गंगाजी के किनारे जाने का मन हुआ लगभग सवा दस बजे। तब तक कोहरा पटाया नहीं था। शिवकुटी घाट के परिवर्धन का काम करने वाले वहां पर थे। पण्डाजी भी अपनी गद्दी पर थे। स्नानार्थी निपट चुके थे। गंगाजी की जल धारा कल के मुकाबले और क्षीण हुयी थी और बीच में एक टापू, जो दो तीन दिन से बन रहा था – आज और बड़ा हो गया था। कुछ ही दिनों में उसपर खेती करने वाले पंहुच जायेंगे।

कल्लू की झोंपड़ी में दो कथरी बिछी थीं। पास में रखे खाद के बोरे हवा से आड़ भी दे रहे थे।

कल्लू की झोंपड़ी में कोई नहीं था, पर जमीन पर बिछी पुआल तथा उसपर सटाई दो कथरी थीं। पास में रखी खाद की बोरियों से यह साफ लग रहा था कि रात में कोई वहां सोता है जरूर। इतने कोहरे में किसी का कछार में रहना बड़ा रोमांचक ख्याल है। झोंपड़ी के पीछे एक दो अद्धे की खाली बोतलें देखीं। ऊर्जा का इन्तजाम रहा होगा उनके द्वारा। ऊर्जा निकल जाने के बाद परित्यक्त सी पड़ी थीं। एक छोटा गिरगिटान भर था वहां, उससे बातचीत हो नहीं सकती थी। मुझसे या मेरे मोबाइल से भय नहीं था उसको। अपनी गर्दन बड़ी तेजी से दायें बायें हिला रहा था, मानो कह रहा हो – मुझसे कोई सवाल न करो, कल्लू आयेगा, उससे पूछना बोतलों के बारे में! (इत्ता मरियल सा था वह गिरगिटान कि सुरा का दो बून्द भी आचमन कर ले तो उलट जाये! 🙂 )

खाद की बोरी पर छोटा गिरगिट - यही जीव था झोंपड़ी में।

कोहरे के बारे में कई लोग बात करते पाये गये। एक जवान ने कोटेश्वर महादेव पर बताया कि वह उभर रहे टापू पर भुला गया था। पण्डाजी ने बताया कि सवेरे गंगा किनारे गये तो घने कोहरे में वापसी का रास्ता भूल गये। इधर उधर भटकने लगे तो अकल आई गंगाजी के किनारे किनारे चलने की। फाफामऊ पुल की ओर जा कर करीब ड़ेढ़ किलोमीटर चल कर वापस शिवकुटी घाट पर आये; जो रास्ता सीधे सीधे ३०० मीटर का होता।

पण्डाजी ने ही बताया कि सवेरे एक नाव वाला भी दिशा भूल गया था। इधर उधर जा रहा था। पण्डाजी ने उसे एक जगह स्थिर रहने की सलाह दी, जब तक सूरज का उजाला कोहरे को कुछ भेद न दे।

इस साल नमी ज्यादा है। बारिश के मौसम में कस के बारिश होने का परिणाम है यह। इसलिये हल्की सर्दी पड़ने पर भी नमी कोहरे के रूप में परिवर्तित हो जा रही है। उत्तर भारत के लिये कोहरा लिये ये सर्दियां बहुत कष्टप्रद होने जा रही हैं। जब कोहरा अधिक होगा तो धूप कम मिलेगी और सर्दी और तेज होगी।

कोहरे के लिये कमर कसी जाये! 😆

घाट के परिवर्धन का काम। एक रैम्प बन रहा है वृद्धों के लिये। घाट के नीचे का क्षेत्र और पक्का किया जा रहा है। शायद आगामी कुम्भ के मद्देनजर। आगे गंगा नदी कोहरे में हैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

21 thoughts on “कुहासे में भटकन

  1. अजब संयोग है आज एक कार्यक्रम में लोकगायिका मालिनी अवस्थी जी को गाना/आना था भयंकर कुंहरे के कारण उन्हें बहुत देर हुयी …इस कोहरे की जिक्र के बाद आगे बढ़ा और एक ओपन एयर स्थल पर लघु शंका को उद्यत हुआ तो सर ऊपर नीचे की मुद्रा में गिरगिट दिखा -आपकी घटना से ये दोनों दृष्टांत कितना मिलते जुलते हैं -हम आप किसी एक ही समय गुहा में तो कैद नहीं हो गए हैं ? 🙂

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट पढने को मिली। इस बार हमारे इधर भी सर्दी के रिकॉर्ड टूटने आसार दिख रहे हैं। जमकर ठण्ड बरस रही है अभी से। कुहरा इधर बूँदाबाँदी होने पर ही छाता है, शुष्क एरिया है न! सूखी ठण्ड पङती है…हाङ कँपाने वाली। खैर, तस्वीरें आज कुहासे के बावजूद साफ मिली, बजाए और दिनों के। हो सके तो जवाहिरलाल को एक मोबाईल दिला दीजिए।

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  3. खाली बोतलों से निकली उर्जा का गिरगिटान महोदय साक्षी रहा होगा….

    बाकि रेल यात्रियों का बुरा समय शुरू हो चूका है.

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  4. यहाँ अभी ठंड शुरू नहीं हुई है. प्रतिक्षा है.
    रेल के लिए कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है जो कुहासा उसकी गति को न रोक सके?
    तस्वीरें ज्यादा साफ है. मोबाइल बदला है क्या?

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    1. मोबाइल वही है। रोज सवेरे सवा छ बजे के चित्र होते थे, आज सवा दस बजे के हैं, यही फर्क है।

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  5. लगता है कि कंपास के अविष्कारक की मेहनत बेकार ही गई.

    एंड्रायड में एक फ़ायदा ये भी है कि एक एप्लीकेशन कंपास भी है, कहीं भटकने का डर नहीं रहता 🙂

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    1. इस भाग में दिशा जानने के लिये अभी भी सुकुआ (शुक्र तारा), सप्तर्षि, ध्रुव तारा और दिन मेँ सूर्य का प्रयोग होता है। मोबाइल केवल वॉइस कॉल के लिये। एसएमएस भी कम ही लोग करते हैँ।
      आज जवाहिरलाल वापस आ गया था, मैने कहा कि उसकी फिकर लगी रहती है, जवाहिर का मोबाइल नम्बर होना चाहिये। तब पण्डाजी ने यूं देखा मानो मैँ मजाक कर रहा होऊं – जवाहिरलाल और मोबाइल?! सर्दी मेँ लुंगी के साथ ऊपर एक सदरी पहन ले वही बहुत है! 😆

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      1. 🙂 जरूर मोबाइल होना चाहिए…. हमारे ब्लॉग कर नायक है… कछार के इतर वो क्या करता है.. और इसका मालूमात होना चाहिए.

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  6. कमर कसी हुई है जी आलरेडी 🙂
    धुंध, कुहासा फ़िल्मों में या फ़िर पर्यटन के दौरान अलग इफ़ैक्ट लिये रहते हैं और रोजाना के कार्यक्रमों में अलग इफ़ैक्ट। फ़िर भी हम खुशकिस्मत हैं कि अलग अलग मौसम देखने को मिलते हैं, वरना जायरे और अलास्का, अंटार्कटिका जैसा हाल होता तो जिंदगी कितनी नीरस होती।

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  7. नवम्बर बीता जा रहा है और यहाँ तो अभी सर्दी का आरंभ भी नहीं हो सका है। अभी नल के पानी से स्नान हो रहा है। रात को अवश्य कंबल लेना पड़ता है लेकिन साथ ही पंखा चलाना जरूरी है वर्ना गरमी लगने लगती है। ऐसा लगता है दिसंबर के पहले सर्दी का आनन्द ही न मिलेगा। गर्म कपड़े तैयार हो कर पहने जाने की प्रतीक्षा में उदास हैं।

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