ऑफ्टर लंच वॉक


आज कोहरे में मालगाड़ियां फंसते – चलते चौथा दिन हो गया। कल सवेरे साढे दस – इग्यारह बजे तक कोहरा था। शाम सवा सात बजे वह पुन: विद्यमान हो गया। टूण्डला-आगरा में अधिकारी फोन कर बता रहे थे कि पचास मीटर दूर स्टेशन की इमारत साफ साफ नही दिख रही। उनके लिये यह बताना जरूरीContinue reading “ऑफ्टर लंच वॉक”

कुहासे में भटकन


आज सवेरे घना कोहरा था। सवेरे घर से निकलना नहीं हो पाया। सवेरे साढ़े छ-पौने सात बजे से मुझे उत्तर मध्य रेलवे की मालगाड़ी परिचालन की स्थिति लेनी प्रारम्भ करनी होती है और यह क्रम सवेरे साढ़े नौ बजे तक चलता है। आज यह बताया गया कि पूरा जोन – गाजियाबाद से मुगलसराय और तुगलकाबादContinue reading “कुहासे में भटकन”

इलाहाबाद और किताबों पर केन्द्रित एक मुलाकात


वे सुबोध पाण्डे हैं। किताबों में बसते हैं। पुस्तकों में रमने वाले जीव। भीषण पढ़ाकू। मैं उनसे कहता हूं कि उनकी तरह पढ़ने वाला बनना चाहता हूं, पर बन नहीं सकता मैं – किताबें खरीदने का चाव है, पर अनपढ़ी किताबें घर में गंजती जा रही हैं। इस पर सुबोध पाण्डे जी का कहना हैContinue reading “इलाहाबाद और किताबों पर केन्द्रित एक मुलाकात”

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