जवाहिरलाल कई दिन से शिवकुटी घाट पर नहीं था। पण्डाजी ने बताया कि झूंसी में बोण्ड्री (बाउण्ड्री) बनाने का ठेका ले लिया था उसने। उसका काम खतम कर दो-तीन दिन हुये वापस लौटे।
आज (फरवरी 14’2012) को जवाहिरलाल अलाव जलाये बैठा था। साथ में एक और जीव। उसी ने बताया कि “कालियु जलाये रहे, परऊं भी”। अर्थात कल परसों से वापस आकर सवेरे अलाव जलाने का कार्यक्रम प्रारम्भ कर दिया है उसने। अलाव की क्वालिटी बढ़िया थी। ए ग्रेड। लोग ज्यादा होते तो जमावड़ा बेहतर होता। पर आजकल सर्दी एक्स्टेण्ड हो गयी है। हल्की धुन्ध थी। सूर्योदय अलबत्ता चटक थे। प्रात: भ्रमण वाले भी नहीं दीखते। गंगा स्नान करने वाले भी इक्का दुक्का लोग ही थे।

जवाहिरलाल के ठेके के बारे में उसीसे पूछा। झूंसी में कोई बाउण्ड्री वॉल बनाने का काम था। जवाहिरलाल 12-14 मजदूरों के साथ काम कराने गया था। काम पूरा हो गया। मिस्त्री-मजदूरों को उनका पैसा दे दिया है उसने पर उसको अभी कुछ पैसा मिलना बकाया है। … जवाहिरलाल को मैं मजदूर समझता था, वह मजदूरी का ठेका भी लेने की हैसियत रखता है, यह जानकर उसके प्रति लौकिक इज्जत भी बढ़ गयी। पैर में चप्पल नहीं, एक लुंगी पहने सर्दी में एक चारखाने की चादर ओढ़ लेता है। पहले सर्दी में भी कोई अधोवस्त्र नहीं पहनता था, इस साल एक स्वेटर पा गया है कहीं से पहनने को। सवेरे अलाव जलाये मुंह में मुखारी दबाये दीखता है। यह ठेकेदारी भी कर सकता है! कोटेश्वर महादेव भगवान किसके क्या क्या काम करवा लेते हैं!
एक बसप्पा का आदमी कल होने वाले विधान सभा के चुनाव के लिये अपने कैण्डीडेट का पर्चा बांट गया। जवाहिरलाल पर्चा उलट-पलट कर देख रहा था। मैने पूछा – तुम्हारा नाम है कि नहीं वोटर लिस्ट में?
नाहीं। गाऊं (मछलीशहर में बहादुरपुर गांव है उसका) में होये। पर कब्भौं गये नाहीं वोट देई। (नहीं, गांव में होगा, पर कभी गया नहीं वोट देने)। पण्डाजी ने बताया कि रहने की जगह पक्की न होने के कारण जवाहिर का वोटर कार्ड नहीं बना।
रहने के पक्की जगह? हमसे कोई पूछे – मानसिक हलचल ब्लॉग और शिवकुटी का घाट उसका परमानेण्ट एड्रेस है। 😆
खैर, बहुत दिनों बाद आज जवाहिर मिला तो दिन मानो सफल शुरू हुआ!

जवाहिर का जो कद हमारे सामने है उसका पता जवाहिरलाल को है भी या नहीं? एक दिन इसका प्रिन्टआउट दे दीजिए उसे। खुश हो जाएगा।
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मन होता है गंगा किनारे लैपटॉप ले कर बैठूं और ब्लॉग के सभी पात्रों को आप सबके बारे में बताऊं!
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जब जवाहिरलाल जैसे छोटे लोग ठेका लेने से डरते नहीं और सफ़ल बन सकते हैं, क्यों हम पढे लिखे लोग ठेका लेने से डरते हैं ? मैंने देखा है कि, काम के अनुसार, ठेका या तो गरीब लोग या अमीर लोग लेते हैं।
यह ठेका लेना हम middle class वालों की बस की बात नहीं।
जी विश्वनाथ
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हम अपने नेचर में रिस्क न लेने वाले लोग हैं! 🙂
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जवाहिर बाउण्ड्री बनाने/बनवाने गया और खुद लोकतंत्र की बाउण्ड्री से बाहर है.. उसका पता देश के लोकतांत्रिक नक़्शे पर नहीं आता.. पता नहीं कैसे वो बचा रहा सप्पा, भजप्पा या बासप्पा के पंजों से… और जो व्यक्ति आपका या किसी का भी दिन बना दे, तो वो ज़रूर इमोशनल होगा… वैसे भी यह एक लुप्तप्राय नस्ल है देश में!!
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जवाहिरलाल मुझसे फोटो “हैंचने” की अपेक्षा जरूर करता है, ऐसा मुझे लगता है! :
शुरू में (सन 2009 की पोस्ट) असहज हो जाया करता था:
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आम आदमी में भी अपार संभावनाएँ हैं, जरूरत है तो बस खंगालने की 🙂
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किताबों और नसीहतों से बाहर भी जिंदगी लिखी-पढ़ी जाती रहती है.
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जवाहिर लाल बौंड्री बनवा कै लौटा है तो सूर्योदय कितना सुंदर है। वास्तविक सौंदर्य श्रम में ही बसता है। सरसों में पड़ते दाने भी उसी की उपज हैं।
पर ताऊ लोग उस के ठेके की बाकी रकम अदा करेंगे या खा जाएंगे, पता नहीं?
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यह तो महीने भर बाद पूछूंगा कि बकाया मिला कि नहीं!
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आज ठेकेदार (हो सकता है कि बड़ा होकर पोंटी चड्ढा हो जाए ये) से मिलना अच्छा लगा ☺
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इन महान सज्जन चढ्ढा जी के बारे में जवाहिरलाल से पूछा जाये तो जरूर कहेगा – होईहीं कौनो ससुर! (होगा कोई ससुर!) 😆
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गंगा किनारे जवाहिर और इतना सौन्दर्यपूर्ण सबेरा..बस और क्या चाहिये…
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जय हो कोटेश्वर महादेव की !
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जवाहिरलाल बहादुरपुरी मछलीशहरी c/o मानसिक हलचल ब्लॉग @ शिवकुटी का घाट
ठेकेदारी कर सकते हैं, यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है – बन्दा दुनियादार है.
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उसकी दुनियाँदारी पर पक्का यकीन नहीं, बन्दा बहुत इमोशनल है! 😦
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