किसी ने कछार में खेत की बाड़ बनाने में एक खोपड़ी लगा दी है। आदमजात खोपड़ी। समूची। लगता है, जिसकी है, उसका विधिवत दाह संस्कार नहीं हुआ है। कपाल क्रिया नहीं हुई। कपाल पर भंजन का कोई चिन्ह नहीं। भयभीत करती है वह। भयोत्पादान के लिए ही प्रयोग किया गया है उसका। कछार में घूमतेContinue reading “खोपड़ी की कथा”
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लकड़ी
इलाहाबाद स्टेशन पर मैं कई बार स्त्रियों को देखता हूं – लकड़ी के बण्डल उठाये चलते हुये। मुझे लगता था कि ये किसी छोटे स्टेशन से जंगली लकड़ी बीन कर लाती हैं इलाहाबाद में बेचने। आज सवेरे भी एक महिला फुट ओवर ब्रिज पर लकड़ी का बण्डल सिर पर रखे जाती हुई दिखी। उस महिलाContinue reading “लकड़ी”
