आज सवेरे अचानक मेरे तीन भाई (मेरी पत्नी जी के भाई) घर पर आये। वे लोग भदोही से लखनऊ जा रहे थे। रास्ते में यहां पड़ाव पर एक घण्टा रुक गये।
इनमें से सबसे बड़े धीरेन्द्र कुमार दुबे बेंगळूरु में प्रबन्धन की एक संस्था से जुड़े हैं। उनसे छोटे शैलेन्द्र दुबे प्रधान हैं। पिछला विधानसभा चुनाव लड़े थे भाजपा की ओर से। तीसरे, भूपेन्द्र कुमार दुबे अपनी डाटा प्रॉसेसिंग की संस्था चलाते हैं – भदोही-वारणसी में। चौथे, जो दिल्ली में होने के कारण नहीं आये थे, विकास दुबे हैं जो बस ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में हैं। ये सभी अपने उद्यम के नियंता हैं। केवल मैं हूं, जो नौकर हूं – सरकारी नौकर।
जाते समय एक ग्रुप फोटो लिया गया घर के लॉन में।

यह चित्र धीरेन्द्र के साले श्री रंजन उपाध्याय ने लिया था। अगले चित्र को मैने लिया है जिसमें मेरे अलावा शेष ऊपर के सभी हैं और रंजन उपाधाय हैं पीछे की पंक्ति में।

सबको शुभकामनायें, घर में भिन्न भिन्न व्यवसाय होने से अनुभव और सम्पन्नता पर्याप्त आती है।
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अच्छा लगा।
आपके चार हैं।
मेरा एक भी नहीं।
मेरे ससुर चार बेटियों के बाप थे, बेटा उनका एक भी नहीं
कई बार सोचता हूँ के मेरी बेटी और बेटा, मामाजियों से वंचित रह गए।
हमारे समुदाय में मामाजी का परिवार में विशेष स्थान है और शादियों में उनकी उपस्थिति, प्राय: अनिवार्य ही समझी जाती है।
आजकल हम फिर कैलिफ़ोर्निया आ गए हैं और अगले मार्च तक रहेंगे।
अपना नाती एक साल का हो गया है।
उसके देखबाल में हमारा सारा समय निकल जाता है।
एक अलग ई मेल में एक चित्र भेज रहा हूँ।
शुबकामनाएं
जी विश्वनाथ
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सुन्दर तस्वीरें।।
आपके भाइयों से मिलकर अच्छा लगा 🙂
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Dhanyavad Pandeyji /warm regards
Date: Wed, 27 Nov 2013 04:22:14 +0000
To: p.satyanarayan@hotmail.com
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