सन 2003 के अक्तूबर से लगभग पौने दो साल मैने गोरखपुर में गुजारा था। वहां की कुछ स्मृतियां हैं। रेलवे कालोनी, मोहद्दीपुर में रहते थे हम लोग। घर में लीची और आम के वृक्ष थे। बहुत ज्यादा नहीं घूमा मैं गोरखपुर में और जितना घूमा, उससे कम स्मृतियों में संजोया। एक बार पुन: पूर्वोत्तर उत्तरप्रदेश का वह इलाका देखने और उसके बारे में ब्लॉग पर लिखने का मन था।
इस लिये जब रेलवे के यातायात विभाग के मुखिया श्री देवीप्रसाद पाण्डे ने मुझे वहां पदस्थ करने का प्रस्ताव पिछले महीने किया, तो अपनी बीमार माता, वृद्ध पिता और परिवार की इलाहाबाद में आवश्यकताओं के बावजूद मैने अपनी पत्नीजी से सलाह कर उसे स्वीकार कर लिया।
अब निकट भविष्य में मुझे पूर्वोत्तर रेलवे के परिचालन विभाग का कार्यभार देखना है और मेरा मुख्यालय गोरखपुर होगा।

रेलवे के कार्य के अतिरिक्त मेरे पास अवसर होगा तराई का क्षेत्र, गंगा की सहायक नदियां, वाराणसी-गाजीपुर-छपरा-देवरिया-गोरखपुर-बस्ती-गोण्डा-बरेली-उत्तराखण्ड का निचला हिस्सा आदि देखने, समझने और लिखने का।
मेरे मन में कुछ ब्लॉगिंग के प्रॉजेक्ट कुलबुला रहे हैं। रेलवे का काम बहुत समय और ऊर्जा लेगा। निश्चय ही। रेलवे भी मुझे वहां कुछ अपेक्षा में ले कर जा रही होगी। पर व्यक्तिगत तौर पर और क्रियेटिव तौर पर इस अवसर का पूरा उपयोग करना चाहूंगा मैं।

good wishes and i hope it all goes well for you and your family, who will be staying away from you. is gorakhpur related to gorakhnath? was he real or mythical?
waiting for your posts
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गुरु गोरक्षनाथ तो इतिहास कम मॉइथॉलॉजी के चरित्र अधिक हैं। उनके बारे में जितना जानता हूं, उससे कहीं ज्यादा जानने की इच्छा है।
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स्वागत है सर आपका मेरे शहर में , आशा है दर्शन लाभ का अवसर मिलेगा :)
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जरूर मिला जायेगा, अवनीश!
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Courageous Step!!
Wish You All The Best!!!
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धन्यवाद!
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Once responsibility is accepted duty to be discharged with sincerely. un-bias delegation of authority provides power to command people they bound to obey – respect fully.
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जी हां। काम तो लोगों को ही करना है…
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“वाराणसी-गाजीपुर-छपरा-देवरिया-गोरखपुर-बस्ती-गोण्डा-बरेली-उत्तराखण्ड का निचला हिस्सा आदि”
इसमें आपने मेरे जिले कुशीनगर का नाम जानबूझकर तो नहीं छोड़ा होगा। गोरखपुर से केवल पचास किलोमीटर दूर हाई-वे पर है। देवरिया लाइन और कप्तान गंज लाइन से बराबर दूरी पर स्थित यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र अभी रेलमार्ग से जोड़ा जाना बाकी है। आपकी देखरेख में शायद काम शुरू हो जाय।
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मैत्रेय बुद्ध की विशाल प्रतिमा लगाने का प्रॉजेक्ट था कुशीनगर क्षेत्र में। रेलवे से पर्यटन की भी सम्भावनायें थीं। वह पता करूंगा अब! :)
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हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
आजकल हम कैलिफ़ोर्निया में हैं।
मार्च १८ को बंगलौर लौट रहे हैं
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स्वागत विश्वनाथ जी!
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मुझे तो बेहद खुशी है कि आप गोरखपुर आ रहे हैं। मेरे घर आने-जाने का एक प्रमुख पड़ाव है गोरखपुर। आपको कभी-कभी तंग भी कर सकता हूँ। खुश आमदीद। :)
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All the best Sir……mera agar kabhi Gorakhpur aana hua to aapse milne ki koshish karoonga…..
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धन्यवाद गौरव!
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आप के गोरखपुर के प्रवास के दौरान अगर घर आने का कार्यक्रम बना तो मुलाकात होने की प्रबल संभावनायें होंगी|
कभी सिद्धार्थनगर (‘नौगढ़’ स्टेशन गोरखपुर-गोण्डा लूप लाइन, अभी ब्रॉड गेज़ कंप्लीट नही हुआ है), तुलसीपुर और बलरामपुर भी हो आइयेगा| मूलतः हम लोग बस्ती से हैं, पर सिद्धार्थनगर (‘नौगढ़’) मे माता-पिता जी लगभग ३५ साल पहले आ गये थे और अब हम लोग वहीं रहते हैं|
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ये स्थान भी देखने का यत्न करूंगा, ज्ञानेन्द्र जी!
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उपेक्षित जिला है (सिद्धार्थनगर), लुंबिनी और कपिलवस्तु (गौतमबुद्ध का जन्मस्थल) से ४० किलोमीटर से कम दूरी पर है| यह जिला अपने खास किस्म के चावल के लिए भी प्रसिद्ध है, पर कम लोग ही जानते हैं, कालानमक चावल कई मामलों में बासमती को टक्कर देता है|
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साहस का काम किया है आपने, शुभकामनायें!
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मेरी पत्नीजी कह रही हैं कि साहस तो उन्होने दिखाया है।
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सत्य ही है|
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