बंगाली कुटुम्ब के रात्रि-भोज में

श्री लाहिड़ी के यहां रात्रि भोज।
श्री लाहिड़ी के यहां रात्रि भोज।

बहुत बड़ा कुटुम्ब था वह। कई स्थानों से आये लोग थे। पिछले कई दिन से यहां पर थे – श्री प्रतुल कुमार लाहिड़ी के पौत्र शुभमन्यु (ईशान) के उपनयन संस्कार के अवसर पर। संस्कार 4 अप्रेल को हुआ था। पांच अप्रेल की रात समारोह के समापन के अवसर पर एक भोज समारोह था। सब उसी में इकठ्ठा थे।

जैसे सुरुचि की बंगला लोगों से अपेक्षा की जाती है, वैसी वहां दिख रही थी। सब कुछ व्यवस्थित और सभी कुछ आधुनिक वर्तमान में होते हुये भी परम्परा का निर्वहन करता हुआ। नयी पीढ़ी के दम्पति भी थे और अधेड़-वृद्ध भी। नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ियों का भरपूर और अनुकरणीय सम्मान करती दिखी। बच्चे कम दिखे – पूर्वांचली/यूपोरियन स्थानीय कुटुम्ब होता तो उनकी विशाल और अराजक (?) उपस्थिति होती जो यह भी अण्डर्लाइन करती कि यहां के लोग अपने बच्चों को उपयुक्त संस्कारयुक्त बनाने में रुचि नहीं रखते और मेहनत भी नहीं करते।

भोजन के समय श्री मैत्रा, श्रीमती मैत्रा और मेरी पत्नीजी।
भोजन के समय श्री मैत्रा, श्रीमती मैत्रा और मेरी पत्नीजी।

भोज में इग्यारह वर्षीय ईशान (पुत्र श्री अचिन्त्य लाहिड़ी) भी था। उपनयन के समय उसका मुण्डन हुआ था। इसलिये सिर पर लाल रंग का साफा पहने था। सुरुचिपूर्ण वेश। बालक प्रसन्न था – अपने चित्र-वीडियो खिंचा रहा था और बीच बीच में परिचय कराने पर आदर से लोगों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद भी ले रहा था। चरण स्पर्श की उत्तरप्रदेश में जो दुर्गति इस परम्परा की उपेक्षा करने और फंस जाने पर घुटना छूने भर की भदेस परिणिति में नरज आती है, वह नहीं थी उसमें।

उपनयन संस्कार का वीडियो।
उपनयन संस्कार का वीडियो।
सफ़ेद कमीज में श्री प्रतुल लाहिड़ी।
सफ़ेद कमीज में श्री प्रतुल लाहिड़ी।

श्री प्रतुल कुमार लाहिड़ी से मुलाकात हुई। लाहिड़ी जी ने बताया कि बंगाली गोरखपुर में सन् 1802 में आये। उनका परिवार तो यहां 1887 में आया और उनके पहले पर्याप्त संख्या में बंगाली आ चुके थे। सन् 1886 में – उनके परिवार के आने के पहले – गोरखपुर में दुर्गापूजा प्रारम्भ हो चुकी थी। श्री लाहिड़ी गोरखपुर के बारे में एनसाइइक्लोपीडियक जानकारी रखते हैं। उन्होने वेस्ट-डिस्पोजल, खरपतवार से कम्पोस्ट खाद बनाना और उसमें लगे लोगों को जीविका प्रदान करना, उनके स्वास्थ के विषय में जागरूक प्रयास करना आदि अनेक कार्य किये हैं। गोरखपुर के पुरातत्व के बारे में उन्हे गहन जानकारी है।

मैने श्री प्रतुल कुमार लाहिड़ी जी से अनुरोध किया कि भविष्य में मैं उनके साथ समय व्यतीत कर उनसे गोरखपुर और यहां के बंगाली समाज के बारे में जानकारी लेना चाहूंगा। सहर्ष स्वीकार किया उन्होने मेरे अनुरोध को।

श्री लाहिड़ी के विवेक होटल के लॉन में यह समारोह हो रहा था। एक कोने में प्रोजेक्टर स्क्रीन पर ईशान के यज्ञोपवीत संस्कार का वीडियो चल रहा था। सिर मुंड़ाये बालक को स्त्रियां हल्दी लगा रही थीं। सिर पर जल डाला जा रहा था। हवन का समारोह था। बालक कभी परेशान तो कभी प्रसन्न नजर आ रहा  था। सुन्दर चेहरे पर निश्छल मुस्कान थी… परम्परा निर्वहता सुरुचिपूर्ण समारोह, सुघड़ वीडियो।


उत्तर प्रदेशीय कुटुम्ब का समारोह होता तो भांय भांय म्यूजिक और चिंचियाऊ आवाज में डीजे बजता। इतना शोर होता कि आपस में बातचीत करना कठिन होता। बच्चे कोल्ड-ड्रिंक और खाने की चीजें लिये चलते-धकियाते-दौड़ते और जोर जोर से चिल्लाते दीखते। हवन और मन्त्रोच्चार बोझ से फास्ट-फारवर्ड मोड में चल रहे होते। :-( 


समारोह का समय कार्ड में शाम साढ़े सात बजे छपा था। हम – हमारे चीफ माल यातायात प्रबन्धक श्री आलोक सिंह, मेरी पत्नी रीता पाण्डेय और मैं – जब सवा आठ बजे पंहुचे तो लगभग 30-40 लोग लान में बैठे थे। धीरे धीरे लोग आये। भोजन प्रारम्भ होते समय काफी लोग थे। और जब हम विदा लेने लगे तो वह विस्तृत जगह भरी हुई थी। पूरे समारोह में हम लोगों की मेजबानी श्रीमती और श्री ए.के. मैत्रा ने की। श्री ए.के. मैत्रा रेलवे के अतिरिक्त सदस्य (यातायात) हैं। ये दम्पति भी विद्वता और अनेक गुणों से सम्पन्न हैं। उनके विषय में अलग से लिखूंगा।

इस भोज में उपस्थित होना और उसमें भी चुपचाप अलग थलग बैठने की बजाय लोगों से बातचीत करना/जानकारी लेना मेरी सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत था। पर मैने वह किया।

नयी जगह – गोरखपुर – में मैं अपने को सयास बदलने का प्रयास कर रहा हूं, शायद। और ब्लॉग पोस्टों में भी आगे दिखे वह! सम्भवत:!

भोज के अन्त में था ताम्बूल। क्या शानदार है तम्बोली!
भोज के अन्त में था ताम्बूल। क्या शानदार है तम्बोली!

 

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “बंगाली कुटुम्ब के रात्रि-भोज में

  1. बंगाल के सथ मेरा स्वनिर्मित आत्मीय सम्बन्ध है. यही कारण रहा कि बांग्ला साहित्य, फ़िल्में और लोग मेरे प्रिय हैं. इनसे जोड़े रखने में मेरा धाराप्रवाह (प्रवासी बंगालियों से बेहतर) बांगला बोलने का भी योगदान रहा है.
    बंगाल में निमंत्रण पत्रों की एक विशेष बात जो मैंने देखी है (पता नहीं गोरखपुर के मोइत्रा परिवार के इस निमंत्रण में वह थी या नहीं) वह है एक वक्तव्य जो अंत में नोट के तौर पर दिया होता है – “हम व्यक्तिगत रूप से आपके समक्ष उपस्थित होकर आपको निमंत्रित नहीं कर सके, इसके लिये हम क्षमा प्रार्थी हैं!”
    यह एक वाक्य उनकी गहरी सम्वेदनशीलता और सांस्कृतिक परम्परा को दर्शाता है. टाइम्स ऑफ इण्डिया के स्थान पर टेलिग्राफ़/स्टेट्समैन पढना अपनापन की श्रेणी में माना जाता है और बांगला आनन्द बाज़ार पत्रिका/जुगांतर पढना बैकवर्ड होने का प्रमाण नहीं!
    दरसल बंगाल का ज़िक्र आते ही मैं बहक जाता हूँ. क्षमा. उस बालक को मेरा भी आशीर्वाद और प्रतुल दा को मेरा नोमोश्कार!! आपकी कई पोस्टों के वे पात्र होने वाले हैं इसलिये उनका आभार!!

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  2. अब तो चरण स्पर्श वाई-फाई हो चुका है, घुटनों की तरफ हाथ लपकाया और हो गया…. :)

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  3. आपकी उत्सव-कमेंटरी जसदेव सिंह के टक्कर की है । प्रेक्षण और वर्णन यथातथ्य और हूबहू हम तक पहुंचा है । एक सुसंस्कृत समाज स्वच्छ दर्पण की तरह होता है । उसके आईने में अपने और अपने समाज के गुण-दोष साफ-साफ नज़र आते हैं । सिर्फ पूर्वाँचलियों या यूपोरियनों को नहीं बल्कि समस्त आत्ममुग्ध किस्म के उत्तर-भारतीयों को आपकी इस समालोचना पर उचित ध्यान देना चाहिए । आपने एक सच्चे और सुधाराकांक्षी ‘क्रिटिकल इनसाइडर’ की भूमिका निभाई है । आपका भला हो ! चेत जाए तो हिन्दी-समाज का भी भला हो । बटुक ईशान को शुभाशीष और लाहिड़ी परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !

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  4. सर, मैं आपकी नयी पोस्ट कि इंतज़ार में समझिये ताक लगाए बैठा रहता हूँ। आप कछार में अंतरात्मा रचे बसे दिखाई देते हैं लेकिन नए परिदृश्य के साथ ताल मिलाने के प्रयास में हैं। ।यह प्रत्यक्ष द्रिस्टीगोचर होता है। और तर्कसंगत हो जाना जीवन का हिस्सा भी! किन्तु आपसे अनुरोध है जो भी बदलाव आये वो प्राकृतिक आये और यही उचित भी प्रतीत होता है , किन्तु सहज वही है जो अंतर्मन से फूटता है। आपकी लय से ताल मिलाना अच्छा लगता है।

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  5. दक्षिणपूर्व रेलवे के समय बंगाली कुटुम्बों को पास से देखने का अवसर मिला है। संस्कृति के प्रति अगाध निष्ठा, आधुनिकता के प्रति खुलापन और बौद्धिकता के प्रति विशेष आग्रह, ये तीन इस समाज के स्पष्ट पदचाप हैं।

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