लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई!


फ़ेसबुक में यह प्रवृत्ति देखता हूं। लोगों के पास आपका कहा, लिखा और प्रस्तुत किया पढ़ने की तलब नहीं है। आप उनका फ़्रेण्डशिप अनुरोध स्वीकार करें तो दन्न से मैसेंजर में उनका अनुरोध आता है फोन नम्बर मांगता हुआ। वे नेट पर उपलब्ध मूल भूत जानकारी भी नहीं पढ़ते। मसलन वे मेरे बारे में जानना चाहेंContinue reading “लाहे लाहे नेटवर्किंग करो भाई!”

बंगाली कुटुम्ब के रात्रि-भोज में


बहुत बड़ा कुटुम्ब था वह। कई स्थानों से आये लोग थे। पिछले कई दिन से यहां पर थे – श्री प्रतुल कुमार लाहिड़ी के पौत्र शुभमन्यु (ईशान) के उपनयन संस्कार के अवसर पर। संस्कार 4 अप्रेल को हुआ था। पांच अप्रेल की रात समारोह के समापन के अवसर पर एक भोज समारोह था। सब उसीContinue reading “बंगाली कुटुम्ब के रात्रि-भोज में”

झरे हुये पत्ते


रेलवे कालोनी, गोरखपुर में पेड़ बहुत हैं। हरा भरा क्षेत्र। सो पत्ते भी बहुत झरते हैं। सींक वाली बेंट लगी बड़ी झाड़ुओं से बुहारते देखता हूं सवेरे कर्मियों को। बुहार कर पत्तों की ढेरियां बनाते पाया है। पर उसके बाद प्रश्न था कि क्या किया जाता है इन सूखी पत्तियों का? कहीं कहीं जलाया हुआContinue reading “झरे हुये पत्ते”

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