देखा कि गांव की सड़कें जो योगी सरकार ने आते ही ठीक करवाई थीं, अब साढ़े चार साल में उधड़ गयी हैं। उनपर सवार हो कर वोट नहीं खींचे जा सकते। सो बारिश का मौसम बीतते ही वोट-खींचक यज्ञ (या मतदाता वशीकरण यज्ञ) प्रारम्भ कर दिया गया है। सड़क किनारे अलकतरा के ड्रम सीधे खड़े कर उन्हें गरम किया जा रहा है।
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सतर्क रेल कर्मी, बसंत चाभीवाला
आठ किलोमीटर की पेट्रोलिंग करता है बसंत रोज। उसके कंधे पर जो औजार और फ्लैग पोस्ट होता है, उसका वजन आठ-दस किलो होता है। सवेरे सवेरे, भोर की वेला में सर्दी-गर्मी-बरसात झेलता उस वजन के साथ रेल पटरी-गिट्टी पर चलता है बसंत। निगाहें पटरी की दशा और चाभियों की कसावट पर रखनी होती है। … आजकल सेना के जवानों का प्रशस्ति गायन फैशन में हैं। पर बसंत चाभीवाले की नौकरी कौन कम साधुवाद की है?!
काशीनाथ पाठक का मुरब्बा व्यवसाय – पुरानी पोस्ट
मेरे सामने ठोस और सफ़ल ग्रामीण उद्यमिता का उदाहरण उपस्थित था! इण्डिया अन-इन्कार्पोरेटेड! भारत की हजारों साल की रस्टिक उद्यमिता का प्रमाण। एक बेरोजगार व्यक्ति न केवल स्वयं की आजीविका कमा रहा है, वरन गांव की कई महिलाओं को रोजगार भी दे रहा है।
अपने ब्लॉग, मानसिक हलचल, पर सोच विचार
वैसे मैं ब्लॉग पर ट्रैफिक के आंकड़े देखता हूं तो पाता हूँ कि हिन्दी ब्लॉगिंग के स्वर्णिम (?) काल की बजाय आज उसपर आने वालों की संख्या दैनिक आधार पर तिगुनी है. लोग टिप्पणियाँ नहीं (या बहुत कम) कर रहे हैं, पर पढ़ने वाले पहले से ज्यादा हैं.
हेमेन्द्र सक्सेना जी के संस्मरण – पुराने इलाहाबाद की यादें (भाग 4)
भारत के उज्वल भविष्य की हमारी आशायें किसी अनिश्चय या भय से कुन्द नहीं हुई थीं। हम यकीन करते थे कि आम आदमी की जिन्दगी आने वाले समय में बेहतर होने वाली है।
हेमेन्द्र सक्सेना, रिटायर्ड अंग्रेजी प्रोफेसर, उम्र 91, फेसबुक पर सक्रिय माइक्रोब्लॉगर : मुलाकात
हेमेन्द्र जी ने अपने संस्मरण टुकड़ा टुकड़ा लिखे हैं. उनके लगभग 14 पन्ने के हस्त लिखित दस्तावेज की फोटो कॉपी मेरे पास भी है. कभी बैठ कर उसका हिन्दी अनुवाद कर ब्लॉग पर प्रस्तुत करूंगा.