
कुछ दिन पहले मैने मोटर ट्रॉली का चित्र फेसबुक पर लगाया था तो अनेक प्रश्न और जिज्ञासायें आयीं। लोग समझते थे कि ट्रॉली वह होती है, जिसे चार ट्रॉली-मैन धकेलते हैं। मोटर ट्रॉली नये प्रकार की चीज लगी उन्हें। मैने कहा था, वहां फेसबुक पर, कि मैं मोटर ट्रॉली पर एक ब्लॉग पोस्ट लिखने का प्रयास करूंगा। वही अब कर रहा हूं।
मैने अपने सहयोगी चीफ ट्रैक इंजीनियर श्री उमाशंकर सिंह यादव से कहा कि वे किसी अधिकारी से मुझे मिलवा दें जो मोटर ट्रॉली के बारे में पुख्ता जानकारी दे सकें।

श्री यादव ने श्री निहाल सिंह को मेरे पास भेजा। निहाल सिंह पूर्वोत्तर रेलवे के उप मुख्य अभियंता (ट्रैक मशीन) हैं। पूर्वोत्तर रेलवे की सभी ट्रैक से सम्बन्धित मशीनों का प्रबन्धन उनके पास है। बड़े ही मिलनसार प्रकृति के व्यक्ति लगे श्री निहाल सिंह। मैने उन्हे कहा कि मेरे पाठक उनसे ट्रैक मशीनों के बारे में जानना चाहेंगे, पर आज मैं उनसे मोटर ट्रॉली/पुश ट्रॉली के बारे में ही पूछूंगा।
श्री निहाल सिंह ने जानकारी दी – मोटर ट्रॉली में डीजल इंजन लगा होता है उसे मोटिव पावर देने के लिये। यह 10 बी.एच.पी. (ब्रेक हॉर्सपावर) का होता है। मोटर 5000आर.पी.एम. की होती है। मोटर ट्रॉली तीस किमीप्रघ की रफ्तार से चल सकती है पर इसे ठीक से कण्टोल करने के लिये 15-20 किमीप्रघ की चाल से चलाया जाता है – अमूमन। मोटर ट्रॉली भारी होती है – लगभग 350 किलोग्राम की। इस पर चार ट्रॉली-मैन के साथ लगभग 7-9 व्यक्ति चल सकते हैं। इसे आसानी से रेल पटरी से उतारा/चढ़ाया नहीं जा सकता। इस लिये यह रेल सेक्शन में फुल ब्लॉक पर चलती है। फुल ब्लॉक का आर्थ है कि यह सुनिश्चित किया जाता है कि दो स्टेशनों के बीच के पूरे खण्ड में एक ही वाहन – मोटर ट्रॉली, या अन्य कोई ट्रेन रहे। एक से अधिक स्वतंत्र वाहन के होने पर दोनों के टकराव से दुर्घटना हो सकती है।

मोटर ट्रॉली की अपेक्षा पुश-ट्रॉली – जो ट्रॉली-मैन अपनी हाथ से धकेलते चलाते हैं और जिसमें कोई इंजन/मोटर नहीं लगे होते, अपेक्षा कृत कम वजन की होती है। उसे सरलता से ट्रैक पर चढ़ाया/उतारा जा सकता है। यह किसी खण्ड में बिना ब्लॉक के भी चल सकती है। इसके चलते हुये एक ट्रॉली-मैन पीछे की ओर भी देखता रहता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई अन्य वाहन अगर आता हो तो समय रहते पुश ट्रॉली को रेलपथ से उतार लिया जाये। पुश ट्रॉली को उतार कर पटरी के समीप रखने के लिये ट्रॉली-रिफ्यूज बने होते हैं। सीधे रेलपथ पर ये 1000मीटर या उससे कम दूरी पर ट्रॉली रखने के लिये समतल जगहें होती है। जहां ट्रैक कटिंग में या ऊंचे बैंक पर ट्रैक हो तो ट्रॉली रिफ्यूज 200 मीटर दूरी पर होते हैँ। ट्रैक गोलाई में हो तो रिफ्यूज 100 मीटर पर होते हैं। लम्बे पुलों पर 100 मीटर या प्रति पीयर पर एक ट्रॉली-रिफ्यूज होता है।

रेलवे की सिगनलिंग व्यवस्था पहले मेकेनिकल थी। स्टेशनों पर लीवर से तार खींच कर सिगनल उठाये या गिराये जाते थे। अब सिगनल बिजली से चलने वाली मोटरों से नियंत्रित होते हैं। इनके लिये रेल की पटरी कण्डक्टर – रिटर्न कण्डक्टर का काम करती है (दोनो पटरियों में लगभग 1-1.1 वोल्ट का विभव रहता है)। अत: अब अगर मोटर ट्रॉली या पुश ट्रॉली के पहिये विद्युत के चालक हुये तो सिगनल सरक्यूट को शॉर्ट कर फेल कर सकते हैं। इस लिये अब ये ट्रॉलियां इंस्यूलेटेड होनी अनिवार्य हैं; ऐसा निहाल सिंह जी ने बताया।

मैने श्री निहाल सिंह से पूछा कि पूर्वोत्तर रेलवे में कितनी मोटर और कितनी पुश ट्रॉली होंगी? उन्होने बताया कि हर असिस्टेण्ट इंजीनियर या ऊपर के अधिकारी जिनके पास रेल खण्ड के रखरखाव की जिम्मेदारी है; के पास मोटर ट्रॉली है। और उससे नीचे के सुपरवाइजर/जूनियर इंजीनियर के पास पुश-ट्रॉली। इस तरह पूर्वोत्तर रेलवे में लगभग 30 मोटर ट्रॉली और 100-120 पुश ट्रॉली होंगी। एक असिस्टेण्ट इंजीनियर के पास 300-500 किमी और इंस्पेक्टर के पास 100-120 किमी का रेलखण्ड होता है रखरखाव के लिये।
श्री निहाल सिंह का फोन नम्बर अपने पास मैने रख लिया है – भविष्य की अपनी और आपकी ट्रैक मशीन से सम्बन्धित जिज्ञासाओं के शमन के लिये।
अच्छी जानकारी!
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Nice write-up. you have covered all the the necessary points.
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I feels good to read you.
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पुश-ट्रॉली को देखकर अनुभव होता था कि यह एक प्रकार से टॉर्चर है उस इंसान के लिये जो उसे धकेलता हुआ गति प्रदान करता है… बहुत कुछ कोलकाता के हाथ-रिक्शा की तरह.. मेरा अनुमान था कि पुश-ट्रॉली भी फुल-ब्लॉक पर चलती है, आज जाना कि कितने ख़तरे के साथ चलती थी वो. मोटर-ट्रॉली आधुनिकता और तकनीकी विकास का नमूना है!!
अच्छा लगा यह परिचय और आपका एक लम्बे समय के पश्चात आगमन!!
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पुश ट्राली ‘ को धक्का देने वाले रेलवे के उन जाबाज़ मजदूरों को भी सलाम , जो रेल की पटरियों पर पैर जमा कर ‘ सरपट ‘ भाग लेते थे ! एक ‘ आर्टिकल ‘ उन पर होना चाहिए ,,,!!
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बहुत बढ़िया जानकारी ….थोड़ी त्रुटी भी कर गए आप पर हो सकता है आप सही भी हों मैं गलत होऊं..इसलिए पहले स्वयं अन्तःपाशन को एक बार पुनः समझूंगा।
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मैने पोस्ट में सिगनल व्यवस्था के सरक्यूट को और स्पष्ट करने का प्रयास किया है। वास्तव में ट्रॉली के पहिये अगर दोनो रेलों को शॉर्ट कर दें तो सिगनल का रिले पिक-अप कर जायेगा और सिगनल फ्लाई-बैक हो सकता है। यह फ्लाई-बैक इस प्रकार होता है कि किसी प्रकार की कोई दुर्घटना नहीं होती। फेल-सेफ।
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जानकारी के लिए आभार।
महसूस हुआ कि यह काफी खतरनाक है और एक्सीडेंट का कारण कभी भी बन सकता है,
क्या ऐसा संभव नहीं कि इसमें दो या चार पहिये ट्यूबलेस डमी लगे हों, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसे डाउन कर पटरी पर अवस्थित पहियों को ऊँचा कर मैनुअली ट्रॉली को पटरी से हटाया जा सके या पटरी पर लाया जा सके
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मोटर ट्रॉली चूंकि फुल-ब्लॉक (पूरे खण्ड में एक समय में एक ही वाहन, या एक साथ की दो-तीन मोटर ट्रॉली) पर ही चलती है, दुर्घटना नहीं हो सकती। उस प्रकार से यह खतरनाक नहीं है।
बाकी; नियम पालन में अगर असावधानी बरती जाये तो कभी भी दुर्घटना हो सकती है! चाहे मोटर ट्रॉली हो, या कोई अन्य वाहन।
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Motar trolly ke bare me bahut acchi jankari mili trolly refuge ki distance alag alag geographical condition me sarahneey hai
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