
हमारी निरीक्षण स्पेशल ट्रेन धीमी हो गयी थी – उस जगह पर एक ट्रैक का घुमाव था और उस घुमाव का निरीक्षण करना था महाप्रबन्धक और उनके विभागाध्यक्षों की टीम को। चालक धीमी चाल से बढ़ रहा था कि नियत स्थान पर खड़ा कर सके ट्रेन को। हम लोग अन्तिम डिब्बे में बैठे पीछ देख रहे थे।
ट्रैक के घुमाव पर लगभग आठ दस लोग थे जो अपेक्षा कर रहे थे कि स्पेशल वहां रुकेगी। पर वह आगे बढ़ती रही हो वे लोग तेज चाल से ट्रेन की ओर चलते रहे। उनके हाथ में मालायें थीं। वे पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबन्धक से मिलना चाहते थे और सम्भवत: ज्ञापन आदि देना चाहते थे।
उन लोगों में एक वृद्ध थे। सफ़ेद धोती कुरता पहने। कृषकाय शरीर। चेहरे पर गोल चश्मा। हाथ में लाठी थी। तेज चाल से चल रहे थे। उनकी काया, लाठी और चाल से बरबस डाण्डी मार्च करते गांधी जी की याद हो आयी। उनके साथ बाकी लोग अधेड़-जवान-बच्चे थे, अत: वे अलग से पहचाने जा रहे थे।

निरीक्षण स्पेशल रुकी। वे महाप्रबन्धक महोदय से मिले। माला पहनाई। फिर अपने साथ वालों से बोले – “मिठईया केहर बा हो?!” (मिठाई कहां है भाई?)
एक व्यक्ति मिठाई का डिब्बा लिये था। वे महाप्रबन्धक महोदय का मुंह मीठा कराना चाहते थे। मिठाई के लिये उन्हे पूरी विनम्रता से मना किया गया और उनसे उनकी बात कहने को कहा गया।

उन्होने जो बताया वह था कि वे पास के संहुआरी गांव के रहने वाले हैं। रेल लाइन के दोनो ओर बसा है गांव। गांव वालों को बड़ी परेशानी है कि कोई लेवल-क्रासिंग-फाटक नहीं है। वे पास में चकरा हॉल्ट के पास एक लेवल क्रॉसिंग बनाने की मांग कर रहे थे।
रेलवे पूरा प्रयास कर रही है कि ओवर/अण्डर ब्रिज बना कर या ट्रैक के किनारे किनारे सड़क बना कर आगे किसी फाटक से उन्हे जोड़ कर किसी प्रकार लेवल-क्रॉसिंग-फाटकों की संख्या कम की जाये। ये फाटक दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं और इन्हे गेट-मैन द्वारा चलित करना बहुत खर्चीला है। अत: प्रथम-दृष्ट्या उन वृद्ध का अनुरोध माना नहीं जा सकता था। उन्हे यही बताया गया कि सम्भव तो नहीं लगता, पर उनका अनुरोध ’एग्ज़ामिन किया’ जायेगा। फिर महाप्रबन्धक और अन्य अधिकारी गण ट्रैक की गोलाई का निरीक्षण करने आगे बढ़ गये।
मेरी जिज्ञासा उन वृद्ध में हो गयी थी। मैं रुक गया। वृद्ध ने मुझे कोई कनिष्ठ रेल कर्मी समझा। बातचीत के लिये यह समझना ठीक रहा।
उन्होने अपना नाम बताया – राजेन्द्र मिश्र। फिर उन्होने महाप्रबन्धक (उन्हे यह नहीं मालुम था कि वे महाप्रबन्धक हैं। वे समझ रहे थे कि बड़े साहब शायद डीआरएम/जीएम हैं) महोदय का नाम पूछा। यह बताने पर कि वे राजीव मिश्र हैं; उनके चेहरे पर यूपोरियन प्रसन्नता झलकी जो अपने बिरादरी के लोगों के परिचय पर झलकती है। उन्होने मेरा नाम भी पूछा। पाण्डेय बताने पर भी उन्हें संतोष ही हुआ। मुझसे उन्होने अनुरोध किया कि महाप्रबन्धक जी के साथ उनका एक फोटो खिंच जाये…
वे अपने बचपन की सुनाने लगे। हाई स्कूल-इण्टर के छात्र थे। लालबहादुर शास्त्री जी उनके इलाके में आये थे। लोग बोल रहे थे कि यह क्षेत्र तो पहले स्वतन्त्रता सेनानियों के इशारे पर अन्ग्रेजी हुकूमत के जमाने में रेल पटरी उखाड़ता था, अब शास्त्रीजी के इशारे पर उसकी रक्षा करेगा।
राजेन्द्र मिश्र जी ने स्वत: बताया कि उनका पोता आई.ए.एस. में आ गया है। सन 2011 बैच का है। बिहार काड़र में। सचिवालाय में है। मिथिलेश मिश्र। मेरे यह बताने पर कि मैं गोरखपुर का नहीं, इलाहाबाद का रहने वाला हूं, तो उन्होने तुरन्त कहा कि उनके पोते की शादी इलाहाबाद हुई है।
मैने उन वृद्ध को छेड़ा – दैजा कस के लिये होंगे आप?! (दहेज खूब लिया होगा आपने?!)। राजेंद्र जी तुरन्त सफ़ाई के मोड़ में चले गये कि वैसा कुछ भी नहीं हुआ। मैने उन्हे बधाई दी कि दहेज न ले कर बहुत अच्छा किया। राजेन्द्र जी के चेहरे पर पोते की बातचीत कर निरन्तर गर्व का भाव बना रहा। दहेज न लेने की बात तो उन्होने कही, पर यह भी बता दिया कि दो करोड़ तक मिल रहा था।
लगभग 75 की उम्र। राजेन्द्र मिश्र जी छरहरे शरीर के साथ स्वस्थ नजर आ रहे थे। उनका रेल पटरी के किनारे तेज चलते हुये आना और अपनी मांग रखना बहुत सुखद लगा मुझे। मन में यह भाव आया कि उनकी उम्र तक मेरे में भी ऐसी ऊर्जा बनी रहे तो कितना अच्छा हो!
उनकी ऊर्जा, उनका सेंस-ऑफ-अचीवमेण्ट उनके पोते के आई.ए.एस. बन जाने में झलक रहा था। हर एक वृद्ध अपने जीवन का प्राइड-मूमेण्ट चुनता है। राजेन्द्र मिश्र जी का वह मूमेण्ट था पोते का आई.ए.एस. बन जाना… निरीक्षण स्पेशल के चलने का समय हो गया। और बात नहीं हो पायी उनसे। वे लोग ट्रेन चलने पर भी काफी समय खड़े रहे उस जगह पर। शायद जो मिठाई का डिब्बा वे साथ लाये थे, उसका सामुहिक जलपान करने वाले हों वे लोग…
२ करोड़ ! आईएएस की कीमत २ करोड़ है ? बहोत महंगा हो गया है। अब साधारण आदमी तो आईएएस खरीद ही नहीं सकता है।
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खरीदने नहीं, बनने की सोचे।
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Very good description with good picture reflection of rural India
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चकाचक निरीक्षण चर्चा!
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