श्यामबिहारी का परिचय पूछा मैंने। मेरे घर के पास उनकी गुमटी है। दो लडके हैं। बंबई में मिस्त्री के काम का ठेका लेते हैं। पहले श्यामबिहारी ही रहते थे बंबई। मिस्त्री का काम दिहाड़ी पर करते थे। बाईस साल किये। फिर उम्र ज्यादा हो गयी तो बच्चे चले गए उनकी जगह।
महानगर को माइग्रेशन का यही मॉडल है गाँव का। बहुत कम हैं जो गए और वहीँ के हो गए। अधिकाँश जाते आते रहते हैं। परिवार यहीँ रहता है। बुढापे में गाँव लौटना होता है। महानगर को जवान लोग चाहियें। श्रम करने वाले।
श्याम बिहारी की उम्र साठ की हो गयी। खेत में धान की रोपाई कर रहे हैं। तीन दिन से लिपटे हैं रोपाई में।
कितने बजे उठते हो?

“रात बारह बजे। रात में नींद नहीं आती। इधर उधर घूमता हूँ। नींद बीच बीच में सो कर पूरी हो जाती है”।
श्यामबिहारी को कोइ समस्या नहीं नींद के पैटर्न से। मुझे नहीं लगता कि अनिद्रा या इन्सोम्निया नाम से कोई परिचय होगा उसका।
साठ की उम्र। कोई रिटायरमेंट नहीं। काम करते कम से कम एक दशक और निकालना होगा श्यामबिहारी को। उसके बाद भी सुकून वाला बुढापा होगा या नहीं, पता नहीं।
श्यामबिहारी काँधे पर फरसा लिए चाय की चट्टी पर आये। अरुण से एक प्लेट छोला माँगा और सीमेंट की बेंच पर बैठ खाने लगे। खाने के बाद एक चाय के लिए कहा। “जल्दी द, नाहीं अकाज होये”। जल्दी दो, देर हो रही है।
चाय पीते ही वे निकल लेते हैं खेत की तरफ फावड़ा ले कर।
I read your blog, it’s simply awesome.
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बहुत ही उम्दा ….. Very nice collection in Hindi !! 🙂
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@उसके बाद भी सुकून वाला बुढापा … ये शाब्दिक भावना मात्र सरकारी अफसरों (मात्र अफसरों, चतुर्थ क्लास को नहीं) को ही सुहाती है. बाकि व्यापारी वर्ग या फिर उद्यमी या किसान के लिए इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं रह जाता. बहुत अच्छा लगा आज आपके ब्लॉग पर आकर., वर्षों बाद यहाँ टीप भी दी है.
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I read your tweets.. accidentally founnd your twitter account. I grew up in a small ton in Haryana, remained all those years eager to leave and live in a metro, now live in Greater Noida, UP. To me your efforts to live a life around your ancestral village is fascinating as well as enlightening. Keep writing. I like your uncomplicated world-view.
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बहुत धन्यवाद गाथा जी|
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