विजया रेस्तरॉं की री-विजिट

सवेरे दस बजे निकलना होता है बटोही (साइकिल) के साथ। एक डेढ़ घण्टे भ्रमण के लिये। साथ में घर से सहेजे फुटकर काम निपटाने होते हैं। आज महराजगंज से अपनी जरूरी दवायें खरीदीं और लौटते समय विजय तिवारी जी के रेस्तरॉं के पास रुका। तिवारी जी वहीं थे। सामान्यत: वे वाराणसी या अपने गांव पर होते हैं। पर आज मिल ही गये।

तिवारी जी उगापुर (दस किमी दूर) के रहने वाले हैं। उनका कुटुम्ब कार्पेट के व्यवसाय में अग्रणी है भदोही जिले में। उगापुर के कार्पेट फैक्टरी में उनकी भी हिस्सेदारी है। पच्चीस बीघा की बटाई पर दी गयी खेती है। वाराणसी में लंका में मकान है। पर कारपेट और खेती से इतर कुछ करने का मन बना तो यह रेस्तरॉं खोला उन्होने। उनके लड़के (नितिन तिवारी) ने मुझे बताया था कि वे यह एक सोची समझी व्यवसायी तकनीक के अनुसार चलाना चाहते हैं जिससे पूंजी पर वांछित रिटर्न्स भी मिलें और वर्किंग केपिटल की कभी किल्लत भी न महसूस हो।

विजया रेस्तरॉं का बैठने का हॉल

उनका रेस्तरॉं देख कर लगता भी है कि पैसे का अनावश्यक टीम टाम में खर्च नहीं किया है। अगर वे अपनी सर्विस और भोज्य पदार्थ की गुणवत्ता मेण्टेन कर लेते हैं और अपने रेस्तरॉं के लिये एक लॉयल कस्टमर बेस बना पाते हैं तो छ लेन के बनते नेशनल हाईवे NH-19 के किनारे,
कस्बे के नजदीक, इससे बेहतर कोई व्यवसाय नहीं हो सकता।

मुझे इस उपक्रम की तुलना करने के लिये अपनी रेलवे की कमर्शियल पोस्टिंग्स के दौरान देखे केटरिंग ज्वाइण्ट्स याद आते हैं। उनके चलाने वाले जिस प्रकार के मेहनती और विनयशील लोग हुआ करते थे; विजय उनसे किसी भी प्रकार से कमतर नजर नहीं आते। जिस प्रकार से वे लोग सफल थे, उसी तरह से विजय जी के भी सफल होने की पूरी सम्भावनायें हैं। उनमें से कई रेलवे, सिविल के छोटे-बड़े-बहुत बड़े अफसरों और विधायकों-सांसदों के साथ अच्छी नेटवर्किंग रखते थे। विजय भी उसी तरह की नेटवर्किंग में सक्षम प्रतीत होते हैं।

विजय तिवारी

बातचीत के दौरान उन्होने कई जिलाधीशों, सचिवों और राजनैतिक लोगों के नाम लिये। उनमें मेरी रुचि नहीं थी। उस तरह के लोगों में से एक होने और उनके रसूख की वेल्यू और असलियत जानने का समय पीछे छोड़ आया हूं और अब मनमौजियत के लिये साइकिल की शरण में हूं। नेमड्रॉपिंग में मेरी रुचि पहले भी नहीं थी और रिटायरमेण्ट के बाद तो तनिक भी नहीं रही; पर विजय जी के वह सब बताने को मैने बड़े शान्त भाव से सुना। … एक ब्लॉगर के रूप में जब आप अपना परिवेश देखने परखने के लिये निकलते हैं तो रुचि-अरुचि को ताक पर रख कर विशुद्ध ऑब्जर्व करते हैं। वही मैने किया।

विजय तिवारी जी ने बताया कि रेस्तरॉं में दिनों दिन ग्राहकी बढ़ रही है। ज्यादातर लोग शाम-रात में आते हैं। रात 8-10 के बीच भोजन करने वाले अधिक होते हैं। उन्हे आवश्यकता महसूस हो रही है रोटी सुगढ़, तेज बेलने, बनाने वाले कारीगर की। भोजन को आतुर ग्राहक रोटी का इन्तजार पसन्द नहीं करता।

शाम के समय छोटे मोटी पार्टी करने वाले ग्राहक भी आते हैं। आठ-दस लोगों का झुण्ड जन्मदिन जैसा सामुहिक उत्सव मनाने आता है। विजय जी इसके लिये सिवाय भोजन के आइटमों की कीमत के, कोई अतिरिक्त चार्ज नहीं लेते। उन्हें आशा है कि भविष्य में इस प्रकार के ग्राहक भी बढ़ेंगे। बढ़ती समृद्धि लोगों को इस प्रकार के आमोद प्रमोद की ओर प्रेरित करती है। … हाईवे पर गुजरते ग्राहक तो मिल ही रहे हैं; आसपास के और बाजार करने आने वाले ग्राहक भी रेस्तरॉं का प्रयोग कर रहे हैं।


बातचीत के दौरान उन्होने कई जिलाधीशों, सचिवों और राजनैतिक लोगों के नाम लिये। उनमें मेरी रुचि नहीं थी। उस तरह के लोगों में से एक होने और उनके रसूख की वैल्यू और असलियत जानने का समय पीछे छोड़ आया हूं और अब मनमौजियत के लिये साइकिल की शरण में हूं। नेमड्रॉपिंग में मेरी अरुचि है; पर विजय जी के वह सब बताने को मैने बड़े शान्त भाव से सुना। … एक ब्लॉगर के रूप में जब आप अपना परिवेश देखने परखने के लिये निकलते हैं तो रुचि-अरुचि को ताक पर रख कर विशुद्ध ऑब्जर्व करते हैं। वही मैने किया।


विजय जी ने मेरे लिये अच्छी कॉफी बनवाई। अपने लिये भी एक कप कॉफी ली और पास में बैठ कर एक सुहृद की तरह बातचीत की। उन्होने यह भी आश्वासन दिया कि मेरे लिये इलेक्ट्रिक साइकिल वे जल्दी ही खरीदवा देंगे। विजय जी ने मेरे (स्वर्गीय) श्वसुर जी की भी प्रशंसा की और अपने राजनैतिक आकांक्षाओं के बारे में भी बताया। फिलहाल वे प्रधानी के चुनाव में अपने गांव से या इस महराजगंज कस्बे से जोर आजमाईश करना चाहेंगे। उन्हें शायद (सही) लगता है कि पूर्वांचल में सफलता राजनैतिक हैसियत से टैग रहती है।

चलते समय विजय जी ने मुझसे स्नेह बनाये रखने का आग्रह किया और आते जाते रहने का अनुरोध भी किया। वे मुझसे कॉफी का पैसा नहीं लेना चाहते थे, पर मैने कहा कि वह लेते रहें; अन्यथा मुझे यहां आने में संकोच होने लगेगा और आना बन्द हो जायेगा।

मेरा महराजगंज कस्बे तक आना जाना चलता रहेगा और विजया रेस्तरॉं की विजिट्स भी होती रहेंगी। इस रेस्तरॉं का बदलता स्वरूप और उसके रूरर्बन (rural+urban) पक्ष पर लेखन चलता रहेगा। … विजय तिवारी मेरे ब्लॉग के एक नये और महत्वपूर्ण चरित्र बनेंगे; ऐसा मेरा सोचना है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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