भेड़ चराता है वह. उसके अनुसार उसके पास सत्तर भेड़ें हैं. अगियाबीर के पठार पर दो बीघा जमीन भी है. उसमें से आधी ही खेती के काम की है. खेती करने के लिए उसने एक जोड़ी बैल भी रखा है. बैल बूढ़े हो गए हैं, पर उनको रखे हुए है – “कसाई को देने का मन नहीं होता”.
पूछने पर वह बताता है – भेड़ें गाभिन हों तो छह हजार तक की बिक जाती हैं. कसाई तो तीन हजार में लेता है. दस महीने में तैयार हो जाते हैं पशु बेचने के लिए.
मैं शाम के समय उससे द्वारिकापुर के पास खेतों में उससे मिलता हूं. उसका रेवड़ देख अंदाज लगता है कि करीब तीन लाख रुपये का कुल होगा.
मोटे हिसाब से उसके बिजनेस का टर्नओवर 20-25 हजार रुपये का नजर आता है मुझे. खराब नहीं है गांव के हिसाब से. दिन भर चराने में लगता है और भेड़ों के साथ भेड़ जैसी जिन्दगी होती है; पर बीस हजार महीने की कमाई कई शहरी लोगों की नहीं होती होगी.
मैं शिवशंकर को कहता हूँ कि अपने हल बैल से मेरा एक एकड़ का खेत जोत दे. वह सिरे से नकारता है, विनम्रता से. “भेड़िअहा (शब्द पहली बार सुना – भेड़ चराने वाला) के पास इतना समय ही कहाँ है खेत जोतने का. दिन भर इनहीं में लग जाता है”.
मैं उसे नहीं जानता पर वह मुझे अच्छे से जानता है. साइकिल पर आते जाते देखता है. यह भी जानता है कि उसके गांव के गुन्नी पांड़े के यहां मैं जाता आता हूँ. मेरे साथ में राजन भाई हैं. उनके बारे में तो कहता है कि बड़े जमीनदार को को कौन न जानेगा? यह सुन कर राजन भाई के चेहरे पर आई प्रसन्नता ढलते सूरज की लालिमा लिए रोशनी में साफ पढ़ लेता हूँ मैं.
आधा घंटा व्यतीत करता हूं शाम के भ्रमण में शिवशंकर भेड़िअहा के समीप. इस दौरान वह बात भी करता है और नजर अपनी भेड़ों पर भी रखता है. कोई भेड़ इधर-उधर जाने लगते है तो भेड़ों को समझ में आने वाली ध्वनि निकलता है. एक छोटा पत्थर टेढ़े मेढ़े जाने वाली भेड़ के आसपास फैंकता है. भेड़ ही जिन्दगी है उसकी. उन्हे चराता है, खेतों में ठेके पर बिठाता है, दुह कर दूध निकालता है. अगर बाड़े में रहें तो उनकी मींगने घूरे पर जमा करता है. वह घूर भी खाद बन जाता है.

कई कई बार गिनता होगा उन भेड़ों को. उसका इनवेस्टमेंट हैं वे. जैसे हम अपना पोर्टफ़ोलियो बार बार देखते हैं और नेट वर्थ निकलते हैं – वैसा ही वह कुछ भेड़ों के साथ करता होगा. भेड़ वह करेंसी है जो नोटबंदी का शिकार नहीं होगी. यह कभी नहीं होगा कि आधी रात के बाद पुराने मॉडल की भेड़ मान्य नहीं होगी.
शिवशंकर का भेड़-बैंक रिजर्व बैंक से कई माने में ज्यादा पुख्ता, ज्यादा साउंड है.
गांव देहात का मामला है – सांझ ढलने के पहले मुझे घर पंहुच जाना चाहिए. मैं शिवशंकर के पास से रवाना होता हूँ. अकस्मात. बिना दुआ सलाम के. शिवशंकर अपनी भेड़ों को समेटने लग जाता है. शायद उसके भी घर लौटने का समय हो गया है.
आदरणीय सर
ये पाल सरनेम लगाते जो गड़ेरिया समूह के लोग हैं अगली बार पूँछ लीजियेगा गड़ेरिया जाति कि कौन सी उपजाति या गोत्र है?? और उत्तर धनगर ही मिलेगा…केंद्र राज्य सरकार की सूची में धनगर अनुसूचित जाति में आते हैं जिनका जाति प्रमाण पत्र तहसीलदार गड़ेरिया बता कर जाति प्रमाण पत्र नही बना रहे है और इनको ओबीसी गड़ेरिया का जाति प्रमाण पत्र बनवाना पड़ता है इनको तो संवैधानिक अधिकारों के बारे में पता भी नही की अनुसूचित जाति में आते हैं। थोड़ा बता दिया करें जिससे ये लोग संवैधानिक अधिकारों का लाभ ले सकें ।।बाकी उत्तर प्रदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय का शासनादेश हम आपको भेज देंगे। अगली बार जब मिले तो थोड़ा इस बात पर भी बात करने की कृपा करें
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धन्यवाद. मिलने पर पता करूंगा.
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