गांव में रीवर्स माइग्रेट करने के बाद मैंने जो कुछ नया देखा उसमें भेड़ पालकों की दुनियां भी थी। एक भेड़ पालक शिवशंकर से ही नाम सुना – भेड़िअहा (भेड़ें पालने वाला)। गांव में सबसे पहले मैंने मिश्री पाल पर एक पोस्ट लिखी थी। उसके बाद ट्विटर और फेसबुक पर अनेकानेक स्टेटस पोस्ट किये होंगे, पर उन सब को तलाशना टेढ़ी खीर है। इसीलिये मैं अब अपना अधिकांश लेखन-पोस्टन ब्लॉग पर ही करने लगा हूं।
भेड़ पर कुछ पोस्टें –
आजकल अतिवृष्टि के समय में सभी गांव वालों को परेशानी है और भेड़िअहों, गड़रियों को तो और भी है। बारिश में खुद के लिये कमरा-मड़ई होना ही कठिन बात है, भेड़ों और बकरियों के लिये इंतजाम करना और कठिन। चरने के लिये भी हरी घास की कमी नहीं है, पर हर जगह इतना दलदल है और जब तब बारिश हो जा रही है कि रेवड़ चराना भी कठिन काम है। खुले बाड़े में भेड़ें रहती थीं; इस मौसम में वे दिखती नहीं हैं। पता नहीं उनके लिये छत का इंतजाम कैसे करते होंगे वे भेड़िअहे।

उस दिन द्वारिकापुर गंगा घाट देखने गया तो मौसम खुल गया था। सवेरे भेड़ें ले कर चराने निकलने की बजाय वह लड़की एक चारदीवारी पर बैठ कर दतुअन कर रही थी। उसकी भेड़ें एक पेड़ के नीचे बैठी थीं। एक औरत – शायद लड़की की माँ, एक मोटी भेड़ से बातें कर रही थी – “देख तू इतनी मोटी हो गयी है। बाकी सब का हिस्सा भी खा जाती है। औरन क खियाल रखु। थोर खावा करु (औरों का ख्याल कर। कुछ कम खाया कर।)”

लड़की से मैंने पूछा कितनी भेड़ें हैं? मुझे लगा वह अंदाज से बतायेगी। पर वह दातुन की लार थूक कर एग्जेक्ट नम्बर बोली – पैंतालीस! भेडें उनकी जमा पूंजी हैं। उनका बैंक बैलेंस! दिन में दो तीन बार वे गिनते ही होंगे, बहुत कुछ वैसे जैसे हजार दो हजार के बैंक अकाउण्ट वाला ग्रामीण दिन में तीन बार अपनी पासबुक देखता होगा! भेड़ों का अर्थशास्त्र जानो जीडी। भले ही वे भेड़ों के साथ भेड़ों जैसे लगते हों, पर बाभन ठाकुर अपनी जमीने बेच रहे हैं और वे खरीदने की हैसियत में आते जा रहे हैं।
लोग गाय पालते हैं और उससे स्नेह से बातचीत करते हैं। कुछ लोग तोता पालते हैं और मिट्ठूराम से भी बतियाते हैं। भेड़ से स्नेह जताना और बात करना मैंने पहली बार देखा। … छियासठ साल के होने आये जीडी और अब भी बात बात में यह कहते हो कि फलानी चीज, फलाना अनुभव पहली बार हुआ। कब तक नया देखने और नोटिस करने की ललक अपने में भरे रखोगे?!

दूसरा उदाहरण मिश्री पाल का। वह पड़ोस के गांव पठखौली में रहता है। मेरी कार उसकी भेड़ों के पीछे फंस गयी थी। वाहन चालक भेड़ों की चाल से कार चला रहा था। मिश्री पाल और उसका जोड़ीदार (शायद भाई) पूरी कोशिश कर रहे थे कि भेड़ें सड़क छोड़ कर बगल हो जायें। पर बारिश के मौसम में सड़क से नीचे उतरने की जगह ही नहीं मिल रही थी। गांव की पतली सड़क के दोनो ओर घर थे और जहां खाली जगह थी, वहां पानी भरा था। काफी देर भेड़चाल से कार चली। पीछे की सीट पर बैठा मैं अपना मोबाइल जितना आगे बढ़ा सकता था, बढ़ा कर चित्र लेने में लगा था। ड्राइवर को जल्दी हो रही थी। वह कुछ बुदबुदा भी रहा था; पर मुझे भेड़ों के पीछे चलने में आनंद आ रहा था। बड़ी मुश्किल से एक जगह मिश्री पाल अपनी भेड़ों को सड़क से उतार कर हमें रास्ता दिया। कई दुपहिया वाहन वाले भी फंसे थे। वे भी निकले।

मिश्री पाल बारिश के मौसम में भेड़ों की तरह ही गंधाता होगा। वर्ना उसके पास बैठ कर बरसात के मौसम में हो रही समस्याओं पर बात करने का मन था। … कभी करूंगा। रिटायर्ड आदमी और क्या करेगा? यही सब जानने का प्रयास करेगा। नहीं?! 😆