रामप्रसाद तीर्थयात्री का निमन्त्रण

शाम का समय। सूर्यास्त से कुछ पहले। एक बस मेरे गांव के पास रुकी थी। अच्छी टूरिस्ट बस। उसके यात्री नेशनल हाईवे 19 की मुंड़ेर पर बैठे थे। एक बड़े पतीले में गैस स्टोव पर कुछ गर्म हो रहा था। एक व्यक्ति आटा गूंथ रहा था। सब्जियां भी कट रही थीं। शाम का भोजन बनने की तैयारी हो रही थी। बस बनारस से प्रयागराज की ओर जा रही थी।

पूर्णिमा के एक दिन पहले की शाम थी। चांद उग गया था। लगभग गोल। अगले दिन प्रयागराज में माघी पूर्णिमा का शाही स्नान था। सवेरे लोग संगम पर स्नान करेंगे शायद।

वही निकला। इटावा लिखा था बस पर लेकिन लोग कोटा-बूंदी (राजस्थान) के थे। उनकी बोली से भी स्पष्ट होता था। पूछने पर एक सज्जन आगे आये। बताया कि बनारस के घाट देख चुके हैं। बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन कर चुके हैं। अगले दिन संगम पर नहायेंगे और वहीं से चित्रकूट को निकल जायेंगे। पूरी बस है। पचास तीर्थ यात्री हैं। सब इन्तजाम साथ ले कर निकले हैं। उन्होने अपना नाम बताया – रामप्रसाद।  

महिला ने मुझे सम्बोधित कर कहा – आप तो मन्दिर बणवाओ सा। हम सब आयेंगे कार सेवा करने।

राजन भाई के साथ शाम के समय मैं लौट रहा था। रुक कर हम उन्हें देखने-सुनने लगे थे। आम तौर पर किसी बस के रुकने और यात्रियों के इस तरह बैठने बतियाने का दृष्य नहीं होता है गांव के आसपास। हम में कौतूहल था।

दूर के स्थान पर रहते लोग राम के नाम पर किस आस्था से जुड़े हैं! यह आस्था किसी डेमॉगॉग के भाषण से नहीं उपजी। यह आस्था युगों युगों की आस्था है।

उन्ही के समूह के चार-पांच लोग आपस में राम मन्दिर की बात कर रहे थे। एक महिला ने मुझे सम्बोधित कर कहा – आप तो मन्दिर बणवाओ सा। हम सब आयेंगे कार सेवा करने।

बूंदी की महिला मुझे – अयोध्या से ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर के व्यक्ति (मुझ) को – अयोध्या से जोड़ कर देख रही है। वह मान कर चलती है कि राम मन्दिर बनवाने का कार्य प्रारम्भ करना “पूर्वांचल के लोगों का कर्तव्य” है। और वह शुरू करने पर उसमें अपना हिस्सा बटाने को वह और उसके साथ के लोग तैयार हैं।

एक अन्य सज्जन बोले – मैं आया था कार सेवा में। सबसे पहली वाली कार सेवा में। मुलायम सिंह के जमाने में। अब मन्दिर बनना शुरू हुआ तो जरूर आऊंगा।

एक अन्य सज्जन बोले कि वे पहली बार वाली कार सेवा में तो वे नहीं आये थे, पर उस वाली में थे जब कल्याण सिंह की सरकार थी और ढांचा गिराया गया था। सब उन्हें अच्छी तरह याद है। उसमें तो उनको और साथ के कई को जेल भी हुई थी।

राजन भाई (साइकिल पर) रामप्रसाद जी से बात करते हुये।

वे लोग मन्दिर के नाम पर चार्ज्ड थे। शायद उन्हें लग रहा था कि मन्दिर बनना आसन्न है। तीर्थयात्रा के लिये निकले 50 लोगों के बस जत्थे में जैसी सामुहिक भावनायें होती हैं, वैसी दिखीं। मुझे यह भी अहसास हुआ कि साबरमती एक्सप्रेस में उस अशुभ कोच के लोगों में किस तरह की भावना-उत्तेजना रही होगी। … अपने अपने काम में लगे, एक दूर के स्थान पर रहते लोग राम के नाम पर किस आस्था से जुड़े हैं! यह आस्था किसी डेमॉगॉग के भाषण से नहीं उपजी। यह आस्था युगों युगों की आस्था है। इस आस्था को लग रहा है कि अब मन्दिर की सोच के सफलीभूत होने का समय आ रहा है।

मदिर मुद्दे पर मैने कुछ नहीं जोड़ा। मैं रामप्रसाद जी से बात करने लगा। रामप्रसाद जी ने भोजन का निमन्त्रण दिया। उसे सविनय अस्वीकार करने पर उन्होने मुझसे मेरा फोन नम्बर मांगा। बाद में एक-डेढ़ घण्टे बाद उनका फोन मेरे पास आया – साहब, भोजन तैयार हो गया है। सभी लोग रिक्वेस्ट कर रहे हैं कि आप आयें।

मैने उन्हे निमन्त्रण के लिये धन्यवाद दिया और आशा व्यक्त की कि इस बार नहीं, आगे कभी मिलना हुआ तो जरूर भोजन करूंगा उनके साथ।

रामप्रसाद जी का नम्बर है मेरे पास। आगे कभी राम मन्दिर बनने का संयोग हुआ तो फोन कर उनका और उनके साथियों का विचार जानने का प्रयास करूंगा। क्या पता, वह समय कब आता है। और आता भी है या नहीं!



Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

2 thoughts on “रामप्रसाद तीर्थयात्री का निमन्त्रण

  1. आपको भोजन प्रसाद ले लेना चाहिए था, तीर्थ यात्रियों का मान रहता और बामण भोजन का पुण्‍य भी उन्‍हें मिल जाता 🙂

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