हजरत सज्जब अली की मजार और मुख्तार से मुलाकात

सवेरे की साइकिल सैर में खड़ंजे वाली सड़क पर लसमड़ा से पूरब मुड़ा। आगे एक घर दिखा किसी मुसलमान का। घर पर हरा झंडा था। उसमें चाँद, तारा, मस्जिद बना था। झंडे पर उर्दू में कुछ लिखा था। एक दो और झण्डियां लगी थीं घर की छत पर। कुछ छोटे बच्चे खेल रहे थे। पास में एक नौजवान और एक मेरी उम्र का व्यक्ति था। उनसे बात करने की पहल की मैंने – यह झंडे पर क्या लिखा है?

नौजवान ने जवाब दिया – रबी… वह खुद भी सुनिश्चित नहीं था। शायद कुराअन की कोई आयत हो। और यह तो स्पष्ट था कि ये दोनो पढ़े लिखे या उर्दू-अरबी के जानकार नहीं थे। मैं समझ गया कि धर्म पर बात करना व्यर्थ है। वह इनके लिये “यह करो या यह न करो” से अलग कुछ नहीं है। हिन्दुओं में भी धर्म के मामले में जो गदहिया गोल के लोग होते हैं, जिनके लिये धर्म केवल अच्छत, रोली, चन्दन, माला, गंगाजल और पण्डिज्जी के बताये कुछ कर्मकाण्ड भर होते हैं, उनसे बढ़ कर कुछ नहीं हैं ये।

मुख्तार का घर। हरा झण्डा फहरा रहा है। चित्र लेते समय पूरा आ नहीं पाया।

ज्यादा उम्र वाले ने अपना नाम बताया – मुख्तार। वह असहज था मेरे विषय मे। कोई सरकारी मुलाजिम समझा मुझे। पर जब पता चला कि पास के गांव का हूं और दूबे जी मेरे साले साहब हैं, वह कुछ आश्वस्त हुआ।

घर के आगे एक मजार थी। उसके आगे कब्रिस्तान। कब्रिस्तान में इक्कादुक्का कब्रों पर पत्थर गड़े थे। सभी कब्रें कच्ची थीं। यह लग रहा था कि लोग गरीब होंगे। आसपास हैं भी सभी कम आय वाले लोग। नौजवान ने खुद बताया कि उसके पास थोड़ी सी जमीन है। बुनकर का हुनर भी नहीं है। जमीन इतनी नहीं कि काम चले। लेबर का काम करना होता है।

मैं जितनी भी देर वहां रहा, मुख्तार को सुरती (तंबाकू) मलते पाया।

मैं जितनी देर रहा, मुख्तार को हथेली पर सुरती मलते पाया। वह यन्त्रवत् सुरती मले जा रहा था और बात भी कर रहा था।

मजार किन्ही हजरत सज्जब अली की है। बताया कि कोई सौ साल पुरानी होगी मजार। कोई सन्त या फकीर नहीं थे सज्जब। नाम के आगे हजरत लगा था तो शायद हज कर आये रहे होंगे। बस। इससे कुछ ज्यादा नहीं बताया मुख्तार ने। मजार पर हरी चादर चढ़ी थी। चबूतरा ईंटों का मिट्टी की जुड़ाई वाला था और जगह जगह से उखड़ा हुआ था। बांस की बल्लियों पर झालर की छत सी बनी थी। कुल मिला कर गांव के सामान्य स्तर की फालोइंग लगती है मजार की। इसके अलावा, शायद मजार ग्रामसभा की जमीन पर पसरने को उपयुक्त कारण मुहैय्या कराती हो।

हजरत सज्जब अली की मजार।

कब्रिस्तान में कोई चारदीवारी, कोई स्ट्रक्चर नहीं था। बताया कि यहां आसपास के तीन चार गांव के मृतक दफ़नाये जाते हैं। एक दो माह पुरानी कब्र थी। कोई चकौड़ा (तीन किलोमीटर दूर) गांव का आदमी था। चकौड़ा में करीब सत्तर घर हैं मुसलमानों के, ऐसा मुख्तार ने बताया।

चकौड़ा के किसी मृतक की सबसे ताजा कब्र। दो माह पुरानी।

पास के गांव विक्रमपुर में एक नटों की बस्ती है नहर के किनारे। तीस चालीस लोग होंगे उनमें। राजन भाई ने बताया कि उनके बचपन में वे हिन्दू हुआ करते थे, अब मुसलमान हैं। वे अपने मृतक यहां दफ़नाते हैं। दो किलोमीटर उत्तर में डीह बड़गांव में मस्जिद है। आसपास के गांवों के लिये वही पूजा स्थल है। वहां कई परिवार हैं मुसलमानों के।

मुख्तार ने बताया कि इस गांव (उमरहां) में 150 घर हुआ करते थे मुसलमानों के। अब वे सब बाहर चले गये हैं। कोई मीरजापुर गया, कोई आजमगढ़, कोई गाज़ीपुर। अब केवल मुख्तार का कुटुम्ब ही बचा है इस कब्रिस्तान के आसपास। गांव की मुख्य बस्ती में कोई मुसलमान नहीं है।

मुख्तार 61 साल का है। राजन भाई 65 के हैं। उनके संज्ञान में उमरहां में कोई बड़ी बस्ती नहीं थी मुसलमानों की। और जो रहे भी होंगे, उन्हें किसी जोर जबरजस्ती का सामना तो कत्तई नहीं करना पड़ा होगा। “हिन्दू तो बेचारे गरीब थे। दो जून की रोटी का इन्तजाम करने में जिन्दगी निकल जाती थी। किसी धार्मिक उन्माद के लिये न तो ताकत थी, न समय था किसी के पास। उलटे कई हिन्दू यहां क्रिस्तान-मुसलमान बने हैं। मछली ताल के पास की नट बस्ती मेरी जान में ही मुसलमान बनी। इसलिये मुसलमानों का अन्य जगहों पर जा कर बसना किसी धार्मिक विद्वेष के कारण नहीं, जीविका की जरूरतों के कारण होगा…।” – राजन भाई ने स्पष्ट किया।

फिर भी हम दोनों ने तय किया कि उमरहां के किसी बड़े बूढ़े से पता करेंगे। शायद 80-85 साल के लीलापुर के मुराहू पण्डित (मुराहू उपाध्याय) कुछ प्रकाश डाल सकें। इस इलाके के इतिहास भूगोल के अच्छे जानकार हैं वे।

एक दो दिन बाद हम मुराहू पण्डित से मिलने जायेंगे लीलापुर (चार किमी दूर)। तब स्पष्ट होगा धार्मिक समूहों के री-लोकेशन का मामला। फिलहाल तो मुख्तार, उनका घर,कब्र, सज्जब अली की मजार आदि के चित्र यहां लगा दे रहा हूं – बाद में सन्दर्भ के लिये।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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