द्वारिकापुर गांव में सड़क किनारे किसी यादव जी का घर है. उसकी दीवार पर यह व्यक्ति शिव जी का चित्र उकेर रहा था. उसे देख मुझे प्रयागराज के पेंट माई सिटी अभियान की याद हो आई. यह कलाकार भी उसी स्तर का पेंट कर रहा था. मैंने सवेरे के अपने भ्रमण की साइकिल यात्रा को वहीं पॉज दिया.

कलाकार ने बताया कि कल काम शुरू किया था, पर “बूँदिया पड़ई लागि”. बारिश होने से कल काम रोक दिया था. आज सवेरे ही काम चालू कर दिया है. उम्मीद है आठ घंटे मैं, दिन भर में पूरा कर लेगा.

मुझे चित्र लेता देख आसपास दो चार लोग जमा हो गए. एक उनमें से पहचानता था, तो उसने मेरा पैर भी छू लिया. मकान मालिक ने भी गुरुजी (ब्राह्मण को दिया जाने वाला संबोधन) कह कर आदर दिया.
उन्होंने बताया कि कलाकार का नाम राकेश है. तिउरी गांव (5 किमी दूर) के हैं. “आपको भी चित्र बनवाने हों तो आपके गांव के पास पड़ेगा इनका गांव”.
राकेश चुपचाप काम करते रहे. शिव जी के एक फ्रेम किए चित्र को सामने रख कर उसकी अनुकृति बना रहे थे दीवार पर. पहले चित्र की आउट लाइन उकेरी थीं उसके बाद पेंट करने का काम.
इस इलाके में ग्रामीण अपने कच्चे मिट्टी के दीवारों वाले घर के फर्श और दीवार गोबर – मिट्टी के पेस्ट से लीपते हैं. उसके बाद दिवाली के अवसर पर स्त्रियां कुछ फूल पत्ती बनाती हैं. पर वह कोई उत्कृष्ट कलाकारी नहीं होती. मधुबनी पेंटिंग की वह रज मात्र भी नहीं होता. भदोही के भदेस चरित्र में कलात्मकता का अभाव है. जो कलात्मकता है वह कार्पेट की बुनाई में है. बस.
अतः द्वारिकापुर के ग्रामीण द्वारा अपने घर की दीवार पर चित्र पेंट कराना आकर्षक लगा मुझे. कभी मुझे भी अपने घर में दीवारों पर कुछ पेंट कराने का मन हुआ तो तिउरी के इस कलाकार को तलाशूंगा.
