सूर्या ट्रॉमा सेंटर पर सोच – एक फुटकर पोस्ट


मुझे अभी भी समझ नहीं आता कि सूर्य मणि जी ने इतनी उत्कृष्ट अस्पताल सुविधायें सूर्या ट्रॉमा सेंटर और अस्पताल, औराई जैसे ग्रामीण स्थान में क्यों प्लान की हैं. कमरों/वार्ड में सेरा और जाग्वार की फिटिंग्स हैं जब कि अधिकांश उपभोक्ता जनता अपने गांव और कस्बे के घरों में पाइप्ड पानी सप्लाई भी नहीं पाती.

अस्पताल के कमरे में W/C की सेरा और जगुआर की फिटिंग. इनसेट में श्री सूर्य मणि तिवारी

शायद गांव देहात के भविष्य की सोच उनके मन में है? अगर इस पूर्वांचल का विकास 7-8% की वार्षिक दर से हुआ तो बहुत संभव है हाईवे के साथ सटी पट्टी वैसे ही क्वॉसी-अर्बन हो जाए जैसे बड़ौदा – अहमदाबाद की पट्टी है.

पर फिलहाल तो इन सुविधाओं की वैसी दशा होने की आशंका है जैसी महामना और वन्दे भारत एक्सप्रेस की सुविधाओं की हुई थी. मरीजों और उनके तीमारदारी में आने वाले संबंधियों को अपना समान्य से बेहतर स्तर तो दिखाना ही होगा.

चाहे अस्पताल का फ्रंट हो या तीसरे तल पर सीढियां – कहीं कोई कूड़ा या पान का धब्बा नहीं दिखता

अस्पताल में अभी कोई कूड़ा या पान की पीक नहीं दिखती, जो पूर्वांचल की किसी सार्वजानिक सुविधा मे एक अजूबा है. :lol:

जैसे जैसे अस्पताल पर अधिक मरीजों का दबाव बढ़ेगा, अस्पताल के कर्मियों पर सुविधाएं स्तरीय बनाए रखने का दबाव बढ़ता जाएगा. कर्मी इसी इलाके से आते हैं. अधिकांश आसपास के गांवों से हैं. उनमें स्तरीय सुविधाएं बनाए रखने के लिए एक सेंस ऑफ प्राइड विकसित करना होगा – जो उनकी सतत ट्रेनिंग से ही संभव है.

मैं अस्पताल के प्रबंधक श्री ऋतम बोस से बात करता हूँ. वे एक समर्पित व्यक्ति हैं. वे भी कहीं न कहीं स्टाफ की उत्कृष्ट ट्रेनिंग या ट्रेंड स्टाफ को सेवा में लेने की सोचते हैं. लेकिन, फिलहाल तो मुझे लगता है कि नित्य की सुविधाओं का स्तर बनाये रखने के लिए फिरकी की तरह नाचते रहते हैं वे!

श्री ऋतम बोस

हाउस कीपिंग सम्भालने वाला नौजवान है दुर्गेश मिश्र. पास के गांव का है. मेट्रो शहरों में फाईव स्टार होटलों में हाउस कीपिंग का अनुभव है उसके पास. आधा दर्जन से कम कर्मियों के साथ लगा रहता है अप-कीप में.

दुर्गेश मिश्र, हाउस कीपिंग का काम उनके जिम्मे है.

उसने बताया कि सुबह शाम कर्मचारियों के साथ वह बातचीत करता है. समझाता है कि कहां कौन सा disinfectant प्रयोग में लाना है. कहाँ सूखा और कहां गीला पोछा लगाना है. कर्मचारियों के साथ डांट और पुचकार दोनों का इस्तेमाल करता है. वह एक प्रकार से ऑन जॉब ट्रेनिंग दे रहा है कर्मचारियों को. दुर्गेश का जोश मुझे आशा वादी बनाता है.

मेरे पिताजी लगता है अभी कुछ समय भर्ती रहेंगे इस अस्पताल में. वे रिकवर कर चार पांच साल चलेंगे या ऊपर चले जाएंगे, अभी कहा नहीं जा सकता. सो, जब तक यहां हूँ – और इस अस्पताल में चौबीसों घंटे रह रहा हूँ – तब तक इसी अस्पताल के बारे में ही विचार मन में आएंगे. वही मानसिक हलचल का दायरा है.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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