आज घर के बाहरी हिस्से में सन्नाटा है। पिण्टू का काम (भाग 1, भाग 2) खतम हो गया है। उसका पेमेण्ट भी कर दिया। कुल सात दिन उसने और उसके एक सहायक ने काम किया। उन्होने घर में बची हुई पूरी और आधी ईंटों को एकत्रित किया। उनसे करीब सवा सौ वर्ग फुट खडंजा बिठाया। खड़ंजे पर बालू-सीमेण्ट का लेपन किया। एक टप्पर बनाया बर्तन साफ करने वाली महिलाओं की छाया के लिये। सुबह से शाम तक रहते थे वे दोनो।
बाकी बची बालू और ईंटें सहेज कर रख दी हैं उन्होने।
मेरे भाई (शैलेंद्र) ने कहा कि इनका मेहनताना इनकी पत्नियों को देना चाहिये। ये तो पियक्कड़ हैं। उड़ा जायेंगे। अगर इनकी पत्नियों के पास भी पैसा हो तो किसी न किसी बहाने उनसे निकाल लेते हैं। … पिण्टू को मैने कई बार समझाया है। उसका एक ही जवाब होता है – बुआ, इतना थक जाते हैं कि रात में बिना पिये नींद नहीं आती।
पिण्टू बहुत मेहनती है। उसके काम में नफासत भी है। मेहनत के अनुपात में (गांव के हिसाब से) कमाता भी है। पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है।
पिण्टू