जाते जाते देखा; उनमें से एक पोलियोग्रस्त पैर वाला भी था। बैसाखी लिये। बेचारे मजदूर। एक साइकिल पर दो लोग चलने वाले। कैरियर पर बैठ कर। हर एक के पास एक साइकिल भी नहीं थी। उन्हे देख मुझे सरकार पर क्रोध भी हुआ। पर उस क्रोध का क्या जो कोई समाधान न दे सके!
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
जाते जाते देखा; उनमें से एक पोलियोग्रस्त पैर वाला भी था। बैसाखी लिये। बेचारे मजदूर। एक साइकिल पर दो लोग चलने वाले। कैरियर पर बैठ कर। हर एक के पास एक साइकिल भी नहीं थी। उन्हे देख मुझे सरकार पर क्रोध भी हुआ। पर उस क्रोध का क्या जो कोई समाधान न दे सके!