आज घर के बाहरी हिस्से में सन्नाटा है। पिण्टू का काम (भाग 1, भाग 2) खतम हो गया है। उसका पेमेण्ट भी कर दिया। कुल सात दिन उसने और उसके एक सहायक ने काम किया। उन्होने घर में बची हुई पूरी और आधी ईंटों को एकत्रित किया। उनसे करीब सवा सौ वर्ग फुट खडंजा बिठाया। खड़ंजे पर बालू-सीमेण्ट का लेपन किया। एक टप्पर बनाया बर्तन साफ करने वाली महिलाओं की छाया के लिये। सुबह से शाम तक रहते थे वे दोनो।
बाकी बची बालू और ईंटें सहेज कर रख दी हैं उन्होने।
मेरे भाई (शैलेंद्र) ने कहा कि इनका मेहनताना इनकी पत्नियों को देना चाहिये। ये तो पियक्कड़ हैं। उड़ा जायेंगे। अगर इनकी पत्नियों के पास भी पैसा हो तो किसी न किसी बहाने उनसे निकाल लेते हैं। … पिण्टू को मैने कई बार समझाया है। उसका एक ही जवाब होता है – बुआ, इतना थक जाते हैं कि रात में बिना पिये नींद नहीं आती।
पिण्टू बहुत मेहनती है। उसके काम में नफासत भी है। मेहनत के अनुपात में (गांव के हिसाब से) कमाता भी है। पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है।
पिण्टू
पिण्टू का काम मुझे बहुत रुचता है। यहां गांव में जब से हम शिफ्ट हुये, तब से किसी न किसी काम के लिये उसे बुलाते ही रहते हैं। शुरू में, जब हम दरवाजे पर पॉलिश करने के लिये किसी कारीगर की तलाश में थे तो मेरे चचेरे भाई ने इसे मेरे पास भेजा था। तब हमने दरवाजे और फर्नीचर उससे पॉलिश करवाये। इसीसमय घर में ऊपर की मंजिल पर एक कमरे का सेट बन कर तैयार हुआ तो पिण्टू ने लपक कर उसकी रंगाई-पुताई का काम अपने हाथ में ले लिया। कमरे की पुट्टी और पुताई बहुत लगन से की उसने। उसने खुद ही बताया कि वह राज मिस्त्री का काम भी करता है। हरफनमौला है पिण्टू।
इस तरह घर के हर प्रकार के काम में पिण्टू की जरूरत पड़ने लगी और पिण्टू ने कभी निराश नहीं किया।
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पिण्टू काम के साथ साथ सलाह भी देता है। हंसमुख चेहरे वाला पिण्टू कभी मेहनताने के लिये चिकचिक नहीं करता। उसे विश्वास रहता है कि इस घर में उसे पैसा सही मिलेगा और समय पर मिलेगा।
पिण्टू गोपी का पोता है। गोपी का नाम लेते ही बचपन की यादों के अनेक चित्र आंखों के सामने आ जाते हैं। गांव के हमारे पैत्रिक घर में गोपी हर समस्या का समाधान हुआ करते थे। जब हल-बैल से खेती होती थी तो गोपी हरवाह थे। बाद में वे ट्रेक्टर चलाते थे, पंपिंग सेट का मोटर ठीक कर लेते थे। हर कमरे में बिजली के तार जोड़ना, ठीक करना या बल्ब लगाना गोपी का ही काम था। घर की महिलाओं के बाहर की दुनियां के बड़े सम्पर्क सूत्र गोपी ही थे। उन्ही को वे अपनी समस्यायें बताती थीं और गोपी द्वारा उनके समाधान में कोई कमी नहीं रहती थी। गोपी भले ही हरिजन थे, पर नेतृत्व के बहुतसे गुण उनमें थे। काम करने वालों को ले आना, उनकी दिहाड़ी बांटना और उनके काम को सुपरवाइज करना गोपी के जिम्मे होता था। हमारे घर की महिलायें गोपी का सम्मान करती थीं और उनके आने पर माथे तक साड़ी खींच लेना जरूरी होता था। बच्चे गोपी से बड़े अदब से बात करते थे और उनसे डरते भी थे।
इस तरह पिण्टू के साथ तार आज से नहीं, उसके दिवंगत बाबा के जमाने से जुड़े हैं। गांव में वह एक प्रिय चरित्र है और उसका हमारे घर आना जाना लगा ही रहता है।
अभी, इस बार जो पिण्टू से काम कराया है, उससे लगभग आधा ट्रॉली बालू बच गयी है। कुछ ईंटें भी बची हैं। हम लोगों के मन में जल्दी ही कुछ न कुछ और विचार कुलबुलायेगा। कुछ न कुछ काम निकलेगा इस बालू-ईंट का “सदुपयोग” करने के लिये। और पिण्टू की फिर गुहार लगेगी!
पिण्टू और उसका सहायक