श्रमिक वापस जा रहे हैं। खबरें हैं मेट्रो शहरोंं से या पंजाब से; उत्तरप्रदेश या बिहार/झारखण्ड जा रहे हैं अपने घर को। शुरुआत में तो हड़बड़ी में निकले। बिना तैयारी। पैदल। या ठेले पर भी। अब थोड़ा व्यवस्थित तरीके से लौट रहे हैं। उनके पास कुछ भोजन की सामग्री भी है। अब जो अपने घर के लिये निकल रहे हैं उनके पास बेहतर सर्वाइवल किट है। वे साइकिल पर हैं।
आसपास की सडकों पर जो दिखते हैं, और बहुत नजर आते हैं, उनमें खिन्नता भी है और अकबकाहट भी। क्रोध भी है और नैराश्य भी। कोरोनावायरस के प्रति सतर्कता भी है, पर उससे ज्यादा अपने भविष्य को ले कर अनिश्चितता झलकती है व्यवहार में। सरकार के प्रति क्रोध बहुत मुखर नहीं है। पर है जरूर। इस भाव को भविष्य में विपक्ष, अगर सशक्त हुआ (जो फिलहाल लगता नहीं) तो अच्छे से भुना सकता है।
मैं सवेरे साइकिल सैर में निकला था। गंगा किनारे। घर से करीब सात किलोमीटर दूर निबड़िया घाट पर। वहां सामान्यत: मोटरसाइकिल/मॉपेड खड़ी कर घाट पर मछली खरीदने वाले जाते हैं। भोर में जो केवट जाल डाल कर मछली पकड़ते हैं, उनसे ये दुकानदार खरीद कर या तो कस्बे के बाजार में फुटपाथ पर, या गांवों में फेरी लगा कर बेचते हैं।
वहां, निबड़िया घाट के करार पर मुझे कुछ मोटरसाइकिलें दिखीं और कुछ साइकिलें भी। लोग, जो साइकिल के साथ थे, अपने पीठ पर रुकसैक (पिठ्ठू) लादे थे। वे निश्चय ही मछली खरीदने वाले नहीं थे।
यह दृष्य सामान्य से अलग लगा।

वे लोग आपस में मिर्जापुर जाने की बात कर रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि नाव से गंगा पार करें या सड़क पर बढ़ते जायें। मुझसे पूछा कि सड़क मिर्जापुर की ओर जायेगी?
जब उनका मंतव्य पूछा तो पता चला कि भदोही के मजदूर हैं। कार्पेट व्यवसाय के। कोरोना संक्रमण के लॉकडाउन में कार्पेट का काम खतम हो गया है। मालिक ने कहा है कि रहने का कोई फायदा नहीं। आगे कब काम मिलेगा, कह नहीं सकते। इसलिये वे वापस लौट रहे हैं। उन्हे झारखण्ड जाना है।
झारखण्ड में कहां?
लातेहार।

लातेहार के मजदूर यहां भदोही में काम करते हैं। कार्पेट व्यवसाय में पता नहीं क्या करते होंगे। सामान्यत: भट्ठा मजदूर के रूप में झारखण्ड के लोग यहां देखे हैं। कार्पेट में भी वहां के लोग हैं, यह मेरे लिये खबर थी। दूसरी खबर यह थी मजदूरों का व्युत्क्रमित पलायन सम्पन्न प्रांतों से ही नहीं; उत्तरप्रदेश के इस (अपेक्षाकृत पिछड़े) जिले से भी हो रहा है।
उन्होने बताया कि वे हाईवे पर नहीं चल रहे, वहां रास्ता सील किया हुआ है। गांव की सड़कों से होते हुये वे मिर्जापुर की ओर निकलेंगे। वहां से सोनभद्र/राबर्ट्सगंज के रास्ते बिहार/झारखण्ड में प्रवेश करेंगे। करीब 400 किलोमीटर का रास्ता तय करेंगे। अगर सब सामान्य तरीके से हुआ तो चार दिन में घर पंहुचेंगे।
ज्यादा देर रुके नहीं वे, कि मैं उनसे और बातचीत कर पाता। नाव से गंगा पार करने का इरादा त्याग कर वे सड़क पर आगे बढ़ गये। उन्हें अंततोगत्वा पूर्व दिशा में जाना था लातेहार के लिये, पर सड़क पर वे पश्चिम की ओर चले। आगे पुल पार करेंगे मिर्जापुर के लिये। मैं उन्हें गूगल मैप खोल कर रास्ता समझाना चाहता था, पर वे मेरे मोबाइल पर सर्च के लिये इंतजार नहीं किये।

जाते जाते देखा; उनमें से एक पोलियोग्रस्त पैर वाला भी था। बैसाखी लिये। बेचारे मजदूर। एक साइकिल पर दो लोग चलने वाले। कैरियर पर बैठ कर। हर एक के पास एक साइकिल भी नहीं थी। उन्हे देख मुझे सरकार पर क्रोध भी हुआ। पर उस क्रोध का क्या जो कोई समाधान न दे सके!
अर्थव्यवस्था और समाज में जो अवरोध आयेगा, वह जल्दी भर नहीं पायेगा। ये लोग शायद जिंदगी भर न भूल पायें यह त्रासदी!
ap svayam sarakari seva me rahe hai / mai bhi kendriy sarakar ke protocal me kuchch samay ke liye adhikari raha hu / ab mai ardhshashakiy nursing college me principle hu / kya sara kam sarakar kare , saval yah hai ? isame kisaki kami hai aur kis tarah ki kami hai ??emergency situation me kya aur kis tarah adesh ka palan karana chahiye yah sab apko batane ki jarurat nahi hai ????raha achanak majduro ki samasya ka , to ye vyakti vyakti par nirbhar karata hai ki koi kis tarah se masale ko tackle karata hai / mai majduro ke khilaf nahi hu lekin yah us uncertainity ka natija hai jisake bare me kisi ko bhi nahi pata hai ki anewale dino me kya hoga ? ek saval yah hai ki logo ke pas duni kimat me sharab pine ke liye paise hai to isaka kya arth nikala jay ???????
LikeLike