आंधी पानी

कल रात नौ बजे तेज आंधी आई। बवण्डर। करीब डेढ़ घण्टा ताण्डव चला। हम अपने पोर्टिको में बैठे पेड़ों का झूमना-लचकना और डालियों का टूटना देख रहे थे। दिन भर की उमस से राहत भी थी। लेकिन जब पोर्टिको की खाली कुर्सियां हवा में नाचने लगीं और उलट गयीं, गमले गिरने लगे, तो हमने घर के अंदर जाने में ही भलाई समझी।

बहुत तेज थी हवा। उसके बाद पानी बरसने लगा पर पानी बरसने पर भी हवा की गति कम नहीं हुई।

आज सवेरे साइकिल ले कर घूमने निकलने में उहापोह था। सैर का कुछ हिस्सा पगडण्डी वाला होता है। मिट्टी अगर गीली होगी तो साइकिल धंस सकती है, रपट सकती है और गिरने पर चोट लग सकती है या कपड़े गंदे हो सकते हैं। पर मन में आंधी के प्रभाव को देखने की उत्सुकता भी थी। निकल ही लिया।

आम तथा पेड़ों की टहनियां बीनने वाले बालक, युवा, अधेड़ और वृद्ध सक्रिय हो गये थे। कहावत है early bird gets the worm; उसकी तर्ज पर early kid gets the mango and twigs.

एक बच्चे ने बहुत से आम बीने थे पन्नी में। उसका फोटो लेने लगा तो वह बड़ी जोर से चिंचिया कर भागा।

पर बच्चे फोटो खिंचाने में बहुत लजा रहे थे। एक बच्चे ने बहुत से आम बीने थे पन्नी में। उसका फोटो लेने लगा तो वह बड़ी जोर से चिंचिया कर भागा। शायद गूंगा था।

एक और बच्चा आम के पेड़ के नीचे भर आये पानी में से आम बीनने का प्रयास कर रहा था। उस उपक्रम में पानी में उसकी चप्पल निकल गयी थी। अब वह आम भी तलाश रहा था और चप्पल भी।

बच्चा आम भी तलाश रहा था और चप्पल भी।
लू चलने से जीव त्रस्त हो जाते थे, तब मौसम बदलता था। तब आते थी आंधी-पानी। इस साल तो अप्रेल महीने से ही नियमित अंतराल पर आंधी आ रही है और बरसात हो जा रही है।

वहींं पास के सड़क किनारे मकान के पास तीन लोग बात कर रहे थे। “आन्ही बहुत तेज रही। हम त बिचिया के कमरा में बैठि क ओथा जपई लागे। गायत्री मंत्र। (बहुत तेज थी आंधी। मैंं तो बीच के कमरे में जा बैठा और गायत्रीमंत्र का जाप करने लगा।)” एक और को कहते सुना – लॉकडाउन में ऐसी आंधियां आती रहींं तो कोरोना अपने से डर कर भाग जायेगा।

बगल के गांव मेदिनीपुर में एक व्यक्ति ने सर कह कर नमस्कार किया। शायद वह स्टेशन पर काम करता है। कोई रेलवे कर्मचारी। स्टेशन से लौटा था तो आम बीनता आया। उसने अपनी पोटली दिखाई, करीब तीन किलो आम होंगे। वह दुखी भी था, उसके गाय गोरू बांधने के कमरे (गोरूआर) का छप्पर आंधी में उड़ गया था।

तीन किलो आम बीने से रेलवे स्टेशन के पास।

एक सज्जन तो और भी दुखी थे। उन्होने तो घर के आगे स्टील शीट्स का शेड बनाया था। वह भी आंधी ने नोच कर फैंक दिया था। बताया कि अठारह सौ रुपये की एक शीट आयी थी पिछले ही साल।

आंधी ने घर के सामने के शेड की स्टील शीट्स नोच कर फैंक दी थीं।

कार्पेट व्यवसायी के अहाता में नीम का विशालकाय हरा भरा पेड़ टूट कर धराशायी हो गया था। जगह जगह पेड़ों की टहनियां टूटी पड़ी थीं। मेरे अपने घर में केले का एक पेड़ और छितवन की डाल टूट गयी है। जगह जगह बहुत बरबादी दिख रही है।

पहले मृगशिरा (इस साल 8 जून से 21 जून तक) नक्षत्र में धरती तपती थी। जून के बीच जब तापक्रम 44-45 डिग्री सेल्सियस रहता था एक पखवाड़े भर (या उससे ज्यादा); और लू चलने से जीव त्रस्त हो जाते थे, तब मौसम बदलता था। तब आते थी आंधी-पानी। इस साल तो अप्रेल महीने से ही नियमित अंतराल पर आंधी आ रही है और बरसात हो जा रही है। तापक्रम 38 डिग्री से ऊपर चढ़ ही नहीं रहा। उपर से कोरौनवा का भी भय व्याप्त है। अजब गजब समय है। अजब गजब मौसम।

मई महीने के शुरुआत में महुआरी में पानी भर जाये, पहले कभी होता नहीं था।

जो कुछ हो रहा है, वैसा वीयर्ड (weird) घटित हुआ हो, याद नहीं पड़ता।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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